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तप
तप का उद्देश्य गुणिता षोडशपदात्मकः प्रतरो भवति, अयं चायामतो वर्ग के ४०९६ पदों को ४०९६ से गुणा करने पर वर्गवर्ग विस्तरतश्च तुल्यः ।
तप के ४०९६४४०९६=१६७७७२१६ पद होते हैं। श्रेणि को श्रेणि पदों से गुणा करने पर प्रतर तप प्रकीर्ण तप होता है । जैसे - उपवास, बेला, तेला और चोला- इन
प्रकीर्णतपयच्छण्यादिनियतरचनाविरहितं स्वशक्त्यचार पदों की श्रेणी है। इनको चार से गुणा करने पर
पेक्षं यथाकथञ्चिद्विधीयते। तच्च नमस्कारसहितादि ४४४=१६ पद होते हैं। स्थापना इस प्रकार है--
पूर्वपुरुषाचरितं यवमध्यवज्रमध्यचन्द्रप्रतिमादि च। १ । उपवास | बेला | तेला | चोला
(उशावृ प ६०१)
जो तप श्रेणी आदि निश्चित पदों की रचना ___ २ । बेला । तेला | चोला । उपवास |
किए बिना ही अपनी शक्ति के अनुसार किया जाता है,
वह प्रकीर्ण तप है। नमस्कारसहिता, यवमध्यप्रतिमा, ___३ | तेला । चोला | उपवास | बेला
बेला | वज्रमध्यप्रतिमा, चन्द्रप्रतिमा आदि तप भी इसके अन्तर्गत ४ | चोला | उपवास | बेला । तेला । ५. तप चारित्र से पृथक क्यों ? घन तप
चारित्रभेदत्वेऽपि तपसः पृथगुपादानमस्त्यैव क्षपणं अत्र च षोडशपदात्मकः प्रतरः पदचतुष्टयात्मिकया ।
प्रत्यसाधारणहेतुत्वमुपदर्शयितुम् । (उशावृ प ५५६) श्रेण्या गणितो घनो भवति, आगतं चतुःषष्टिः ६४,
तप चारित्र का ही एक प्रकार है, किन्तु मोक्षमार्ग
में इसको पृथक् रूप से ग्रहण किया गया है, क्योंकि कर्मस्थापना तु पूर्विकैव नवरं बाहल्यतोऽपि पदचतुष्ट्या
___ क्षय करने का यह असाधारण हेतु है । त्मकत्वं विशेषः, एतदुपलक्षितं तपो घनतप उच्यते।
(उशाव प ६०१) ६. तप का उद्देश्य प्रतर तप के १६ पदों को चार पदात्मक श्रेणी से चउव्विहा खलु तवसमाही भवइ, तं जहा-नो गुणा करने पर घन तप होता है। इसके १६४४=६४ इहलोगट्ठयाए तवमहिठ्ठज्जा । नो परलोगट्टयाए पद होते हैं।
तवमहिछेज्जा। नो कित्तिवण्णसद्दसिलोगट्ठयाए तवमहि
ठेज्जा । नन्नत्थ निज्जरट्रयाए तवमहिछेज्जा । वर्ग तप
(द ९।४।सू ६) घन एव धनेन गुणितो वर्गो भवति, ततश्चतुःषष्टि
तप-समाधि के चार प्रकार हैंश्चतुःषष्ट्यैव गुणिता जातानि षण्णवत्यधिकानि चत्वारि
१. इहलोक (वर्तमान जीवन की भोगाभिलाषा) के सहस्राणि, एतदुपलक्षितं तपो वर्गतपः । (उशाव प ६०१) निमित्त तप नहीं करना चाहिए।
घन को धन से गुणा करने पर वर्ग तप होता है। २. परलोक (पारलौकिक भोगाभिलाषा) के निमित्त घन तप के ६४ पद हैं। इनको ६४ से गुणा करने पर तप नहीं करना चाहिए। वर्ग तप के ६४४६४=४०९६ पद होते हैं।
३. कीर्ति, वर्ण शब्द और श्लोक के लिए तप नहीं
--- करना चाहिए। वर्गवर्ग तप
४. निर्जरा के अतिरिक्त अन्य किसी भी उद्देश्य से तप वर्ग एव यदा वर्गेण गुण्यते तदा वर्गवर्गो भवति, तथा
नहीं करना चाहिए। च चत्वारि सहस्राणि षण्णवत्यधिकानि तावतैव गुणितानि
विविहगुणतवोरए य निच्चं, जातका कोटि: सप्तषष्टिलक्षा: सप्तसप्ततिसहस्राणि द्वे
भवइ निरासए निज्जरट्ठिए । -शते षोडशाधिके अङ्कतोऽपि १६७७७२१६ एतदुपलक्षितं तवसा धुणइ पुराणपावगं, तपो वर्गवर्गतप इत्युच्यते। (उशावृ प ६०१)
जुत्तो सया तवसमाहिए॥ वर्ग को वर्ग से गुणा करने पर वर्गवर्ग तप होता है।
(द ९।४।४)
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