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इत्वरिक तप के प्रकार
१. तप की परिभाषा
तवो णाम तावयति अट्ठविहं कम्मगंठ नासेतित्ति वृत्तं भवइ । (जिचू पृ १५ ) जो आठ प्रकार की कर्मग्रन्थियों को तपाता हैउनका नाश करता है, वह तप है ।
तपति पुरोपात्तकर्माणि क्षपणेनेति तपो यदर्हद्वचनानुसारि तदेव समीनमुपादीयते । ( उशावृ प ५५६ ) जो पूर्व उपार्जित कर्मों को क्षीण करता है, वह तप है | आर्हत प्रवचन के अनुकूल तप ही सम्यक् तप है और वही उपादेय है ।
२. तप के प्रकार
सो तवो दुविहो वृत्तो, बाहिरब्भंतरो तहा । बाहिरो छव्विहो वुत्तो, एवमभंत तवो ॥" traणमूरिया, भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ । कायकिलेसो संलीणया य, बज्भो तवो होइ ॥ पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । भाणं च विउस्सग्गो, एसो अभितरो तवो ॥ ( उ ३० ७, ८,३०) तप दो प्रकार का है - बाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य तप छह प्रकार का है
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१. अनशन
२. ऊनोदरिका
३. भिक्षाचर्या
आभ्यन्तर तप छह प्रकार का है
१. प्रायश्चित्त
२. विनय
३. वैयावृत्त्य
४. रस - परित्याग ५. कायक्लेश
६. प्रतिसंलीनता ।
४. स्वाध्याय
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५. ध्यान
६. व्युत्सर्गं ।
३. बाह्य आभ्यन्तर के भेद के हेतु
बाह्यं– बाह्यद्रव्यापेक्षत्वात् प्रायो मुक्त्यवाप्ति बहिरङ्गत्वाच्च । अभ्यन्तरं तद्विपरीतं । यदिवा लोकप्रतीतत्वात्कुती थिकेश्च स्वाभिप्रायेणासेव्यमानत्वाद् बाह्यं तदितरत्त्वाभ्यन्तरम् ।
लोके परसमयेषु च यत्प्रथितं तत्तपो भवति बाह्यम् । आभ्यन्तरमप्रथितं कुशलजनेनैव तु ग्राह्यम् ॥ ( उशावृ प ६०० ) अनशन आदि निम्न कारणों से बाह्य तप कहलाते
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१. इनमें बाहरी द्रव्य -अशन, पान आदि का त्याग होता है ।
२. ये मुक्ति के बहिरंग कारण होते हैं ।
३. ये सर्वसाधारण के द्वारा तपस्या के रूप में स्वीकृत होते हैं ।
४. लोक में इनकी स्पष्ट प्रतीति होती है। अन्यतीर्थिक भी अपने-अपने मत के अनुसार इनका पालन करते हैं ।
प्रायश्चित्त आदि निम्न कारणों से आभ्यन्तर तप कहलाते हैं
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१. इनमें बाहरी द्रव्यों की अपेक्षा नहीं होती । २. ये मुक्ति के अन्तरंग कारण होते हैं ।
३. ये विशिष्ट व्यक्तियों के द्वारा तप के रूप में स्वीकृत होते हैं ।
४. ये लोकप्रसिद्ध नहीं हैं लोक में इनकी स्पष्ट प्रतीति नहीं होती है। कुशल आध्यात्मिक व्यक्ति के द्वारा ही ग्राह्य होते हैं ।
तप
४. इत्aरिक तप के प्रकार
जो सो इत्तरियतवो, सो समासेण छव्विहो । सेदितवो पयरतवो घणो य तह होई वग्गो य ॥ तत्तोय वग्गग्गो उ, पंचमो छुट्टओ पइण्णतवो । '''' ( उ ३०११०, ११)
इत्वरिक तप के छह प्रकार हैं
१. श्रेणी तप
२. प्रतर तप
३. घन तप
४. वर्ग तप
५. वर्गवर्ग तप
६. प्रकीर्ण तप ।
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श्रेणी तप
श्रेणी - पंक्तिस्तदुपलक्षितं तपः श्रेणितपः । तच्चतुदिक्रमेण क्रियमाणमिह षण्मासान्तं परिगृह्यते ।
( उशावृ प ६००, ६०१ ) श्रेणी का अर्थ है - पंक्ति । पंक्तिबद्ध जो तप किया जाता है, वह श्रेणितप है । इसमें उपवास से प्रारम्भ कर छह मास पर्यन्त क्रमपूर्वक तपस्या की जाती है ।
प्रतर तप
श्रेणिरेव श्रेण्या गुणिता प्रतर उच्यते, तदुपलक्षितं तपः प्रतरतपः, इह चाव्यामोहार्थं चतुर्थषष्ठाष्टमदशमाख्यपदचतुष्ट्यात्मिका श्रेणिविवक्ष्यते सा च चतुर्भि
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