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नोइन्द्रियप्रत्यक्ष की परिभाषा
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या
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प्रति साक्षात्""वर्तते यज्ज्ञानं तत्प्रत्यक्षम् ।
इन्द्रियज्ञान : संव्यवहार प्रत्यक्ष
(विभामवृ पृ ५०) एगंतेण परोक्खं लिंगियमोहाइयं च पच्चक्खं । जो समस्त पदार्थों का पालन/रक्षण और उपभोग
इंदियमणोभवं जं तं संववहारपच्चक्खं ।। करता है, वह अक्ष जीव है। साक्षात् अक्ष से होने वाला
( भा ९५) ज्ञान प्रत्यक्ष है।
हेतु से होने वाला अनुमान ज्ञान वास्तविक परोक्ष परिभाषा
है । अवधि, मन पर्यव और केवलज्ञान वास्तविक प्रत्यक्ष जं सयं चेव जीवो इंदिएण विणा जाणति. तं हैं। इन्द्रिय और मन से होने वाला ज्ञान सांव्यावहारिक पच्चक्खं भण्ण ति ।
(आवचू १ पृ७)
प्रत्यक्ष है। इन्द्रियों की सहायता के बिना आत्मा स्वयं जिससे
इंदियमणोनिमित्तं पि नाणुमाणा हि भिज्जए किंतु । ज्ञेय को जानती है, वह प्रत्यक्ष ज्ञान है।
नाविक्खइ लिगंतरमिइ पच्चक्खोवयारो स्थ ।।
(विभा ४७१) इन्द्रियमनोनिरपेक्षमात्मन: साक्षात् प्रवृत्तिमत्प्रत्यक्षम् ।
इन्द्रिय और मन के माध्यम होने वाला ज्ञान भी (आवमवृ प १६)
अनुमान से भिन्न नहीं है। किन्तु इसमें धूम आदि अन्य इन्द्रिय और मन से निरपेक्ष केवल आत्मा से होने
लिंग या निमित्त की अपेक्षा नहीं रहती, इसलिए इंद्रियवाला ज्ञान प्रत्यक्ष है।
मनोज्ञान को उपचार से प्रत्यक्षज्ञान का गया है। प्रकार
भाविदियोवयारपच्चक्खत्तणतो एतं पच्चक्खं । परमपच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा -इंदियपच्चक्खं च स्थओ पुण चितमाणं एतं परोक्खं । परा दविदिया, नोइंदियपच्चक्खं च।
(नन्दी ४) भाविदियस्स य तदायत्तप्पणतो। (नन्दीच ११५) प्रत्यक्ष के दो प्रकार -१. इन्द्रिय प्रत्यक्ष ।
भावेन्द्रिय के कारण इन्द्रियज्ञान को प्रत्यक्ष कहा २. नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष । गया है । परमार्थतः यह पगेक्ष है क्योंकि द्रव्येन्द्रियां 'पर' ८. इन्द्रिय प्रत्यक्ष की परिभाषा -
हैं और भावेन्द्रियां द्रव्येन्द्रियों के अधीन हैं। - पूग्गलेहिं संठाणणिव्वत्तिरूवं दवदियं । सोइंदिय- इन्द्रियज्ञान परोक्ष मा दइंदियाणं सव्वातप्पदेसेहिं स्वावरणक्खतोवसमातो जा जीवो च्चेव चक्मा दिएहिं रूवाईणं विसयत्थाणं लद्धी तं भाविदियं । तस्स पच्चक्खं ति इंदियपच्चक्खं। गाहतो । कहं ? जम्हा जीवोवओगविरहियाणि इंदियाणि
(नन्दीच पृ १४) णो उवलभंति । अओ जं इंदिएहिं उवलब्भति तं णाणं पूदगलों जो इन्द्रिय-संस्थान निर्मित होता है, वह लिंगितं, ""परनिमित्तणिप्फण्णं । (आव ११७) द्रव्येन्द्रिय है। सर्व आत्मप्रदेशों में श्रोत्र आदि इन्द्रियों के जीव ही चक्षु आदि इन्द्रियों के माध्यम से रूप आवरण का क्षयोपशम होन से श्रोत्र आदि इन्द्रियों की आदि विषयों को ग्रहण करता है। क्योंकि जीव के उपलब्धि ज्ञान करने की क्षमता को भावेन्द्रिय कहते हैं। योग से शन्य इन्द्रियां कुछ भी उपलब्ध नहीं कर जो भावेन्द्रिय के प्रत्यक्ष है, वह इन्दिर प्रत्यक्ष है। सकतीं। इसलिए इन्द्रियों के द्वारा जो उपलब्ध होता प्रकार
है वह ज्ञान परोक्ष है, परनिमित्त से निष्पन्न है। इंदियपच्चक्खं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-सोइंदिय- 8. नोइन्द्रियप्रत्यक्ष को परिभाषा पच्चक्खं, चक्खिदियपच्चक्खं, घाणिदियपच्चक्खं,
नोइंदियपच्चक्खं ति इदियातिरित्तं ।(नन्दीच पृ१५)
नो जिभिदियप क्खं, फासिंदियपच्चक्खं । (नन्दी ५) नोइन्द्रियप्रत्यक्षं यत् इन्द्रियप्रत्यक्षं न भवा ।
इन्द्रियप्रत्यक्ष पांच प्रकार का है--१. श्रोत्रेन्द्रिय- नोशब्दः सर्वनिषेधव ची। तेन मनसोऽपि कथञ्चिदिप्रत्यक्ष, २. चक्षु रिन्द्रियप्रत्यक्ष, ३. घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष, न्द्रियत्वाभ्युपगमात्तदाश्रितं ज्ञानं प्रत्यक्षं न भवतीति । ४. रसनेन्द्रियप्रत्यक्ष, ५. स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्ष ।
नन्दीमत् प ७६) अतीन्द्रियज्ञान नोइन्द्रियप्रत्यक्ष है।
पाहा
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