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ज्ञान
समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं । '३. मतिज्ञान आदि के क्रम का हेतु
किमेस मतिनाणादियो कमो ? सकारणो उवण्णासो । इमे य ते कारणा -तुल्लसामित्तणतो सव्वकालाविच्छेदतित्तणतो इंदियाऽणिदियणिमित्तत्तणतो तुल्लक्खतोवसमकारणत्तणतो सव्वदव्व' दिविसयसामण्णत्तणतो परुक्खसामन्नत्तणओ य तब्भावे य सेसणाणसंभवातो अतो आदी मति-सुताई कताई ।
मति सुयसमाण कालत्तणतो मिच्छद्दंसणपरिग्गहतणतो तव्विवज्जय साहम्मत्तणतो सामिसाहम्मत्तणतो य कत्थइ कालेगलाभत्तणतो य मतिसुताणंतरं अवधि ति भणितो ।
ततो य छउमत्थसामिसामण्णत्तणतोय पुग्गलविसयसामण्णत्तणतो य खयोवसमभावसामण्णत्तणतो य पच्चक्खभावसामण्णत्तणतोय अवहिसमणंतरं मणपज्जवनाणं
ति ।
सव्वाणुत्तमत्तणतो सव्वविसुद्धत्तणतो य विरतसामसामण्णत्तणतो य सव्वावसाणलाभत्तणतो सबुत्तमलद्धित्तणओ य तदंते केवलं भणितं ।
य
( नन्दी पृ १४ ) मति और श्रुत को सर्वप्रथम रखा गया है, क्योंकि दोनों के होने पर ही शेष ज्ञान संभव हैं। दोनों के अधिकारी तुल्य / समान हैं, दोनों की स्थिति समान है, दोनों इन्द्रियनिमित्तज हैं, दोनों का क्षयोपशम तुल्य है, दोनों का विषय समान है, दोनों परोक्ष ज्ञान हैं ।
मति श्रुत और अवधिज्ञान का कालमान समान है, अधिकारी समान हैं । ये मिथ्यादृष्टि के भी हो सकते हैं / इनका विपर्यय भी होता है । कभी-कभी तीनों की प्राप्ति एक साथ भी हो जाती है - इन समानताओं के कारण मति श्रुत के पश्चात् अवधिज्ञान का क्रम रखा गया है । अवधि और मनः पर्यवज्ञान- दोनों के अधिकारी छद्मस्थ होते हैं। दोनों का विषय है - पुद्गल / रूपी द्रव्य । दोनों क्षायोपशमिक प्रत्यक्ष ज्ञान हैं । अतः अवधि के बाद मनः पर्यव का क्रम उपन्यस्त है ।
मनःपर्यव और केवलज्ञान के अधिकारी मुनि / व्रती होते हैं । केवलज्ञान सब ज्ञानों में उत्तम है, सर्वविशुद्ध है, सर्वोत्तम लब्धि है, सबसे अन्त में प्राप्त होता है, अत: वह अंत में निरूपित है ।
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४. चार ज्ञान क्षयोपशमभाव
....खओवसमिया
प्रत्यक्ष ज्ञान का निर्वचन
आभिणि बोहियनाणलद्धी, खओवसमिया सुयनाणलद्धी, खओवसमिया ओहिनाणलद्धी, खओवसमिया मणपज्जवनाणलद्धी ।
( अनु २८५ )
चार ज्ञानलब्धियां क्षयोपशम- निष्पन्न हैं१. आभिनिबोधिक ज्ञानलब्धि ३ अवधिज्ञानलब्धि २. श्रुतज्ञानलब्धि ४. मनः पर्यवज्ञानलब्धि |
५. ज्ञान-प्राप्ति के विकल्प
दोहिं वा मति सुतेहि । तिहि वा मति सुता ऽवहीहिं अहवा मति सुय-मणपज्जवेहिं । चतुर्हि वा मतिसुतावहि-मणपज्जवेहि । एक्केण वा केवलनाणेण संपण्णं । ( अचू पृ १३८ )
एक साथ ज्ञान प्राप्ति के चार विकल्प - १. दो ज्ञान -मति और श्रुत ।
२. तीन ज्ञान - ( १ ) मति, श्रुत और अवधि । (२) मति, श्रुत और मनः पर्यव ।
३. चार ज्ञान - मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यव । ४. एक ज्ञान - केवलज्ञान ।
६. ज्ञान के दो प्रकार
तं समासओ दुविहं पण्णत्तं तं जहा पच्चक्खं च परोक्खं च । ( नन्दी ३) ज्ञान के दो प्रकार हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष ।
७. प्रत्यक्ष ज्ञान का निर्वचन
जीव अक्ख अत्थव्वावण - भोयणगुणणिओ जेण । तं पट्टइ नाणं जं पच्चक्खं .........
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( विभा ८९ ) पणता अत्थे असइ त्ति इच्चेवं जीवो अक्खो, णाणभावेण वावेति । अक्खं पति वट्टति त्ति पच्चक्खं । अदिति वृत्तं भवति । ( नन्दीचू पृ १४ ) जो ज्ञानात्मा से सभी अर्थों-पदार्थों में व्याप्त होता है, वह अक्ष / जीव है । अक्ष द्वारा होने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष है । यह अनिन्द्रिय ज्ञान है ।
अश्नाति समस्त त्रिभुवनान्तर्वर्तिनो देवलोक समृयादीनर्थान् पालयति भुंक्ते वेति अक्ष: । '''' तमक्षं
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