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चारित्र
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चारित्र (शील) के अठारह.. सिज्झइ बुज्झइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ । चारित्ररहित प्राणी के सम्यक्त्व हो भी सकता है
और नहीं भी होता। परन्तु जो चारित्रयुक्त होता है भंते ! चारित्रसम्पन्नता से जीव क्या प्राप्त करता उसके सम्यक्त्व निश्चित ही होता है। है? चारित्रसंपन्नता से वह शैलेशी भाव को प्राप्त होता है । शैलेशी दशा को प्राप्त करने वाला अनगार चार १२. केवलिसत्क कर्मों को क्षीण करता है। उसके पश्चात् वह निच्छयनयस्स चरणायविषाय नाणदंसणवहोऽवि । सिद्ध, बुद्ध (प्रशांत), मुक्त, परिनिर्वृत होता है और सब ववहारस्स उ चरणे हयं मि भयणा उ सेसाणं ।। दुःखो का अन्त करता है।
(पिनि १०५) १२. चारित्र और सम्यक्त्व
चारित्र का नाश होने पर ज्ञान, दर्शन भी नष्ट हो सम्मत्तं अचरित्तस्स हुज्ज भयणाइ नियमसो नत्थि । जाते हैं-यह निश्चय नय का अभिमत है । चारित्र नष्ट जो पुण चरित्तजुत्तो तस्स उ नियमेण सम्मत्तं ॥ होने पर ज्ञान-दर्शन का नाश होता भी है, नहीं भी
(आवनि ११६२) होता-यह व्यवहार नय का अभिमत है । १४. चारित्र (शील) के अठारह हजार अंग
जोगे करणे सण्णा इंदिय भोमादि समणधम्मे य । सीलंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स उप्पत्ती ।। (दनि ८२) (जे णो करंति मणसा, णिज्जियआहारसन्ना सोइंदिये ।
पुढविकायारंभ, खंतिजुत्ते ते मुणी वंदे ॥) जे णो जे णो । जे णो । करंति कारयंति समणुजाणंति
६००० ६००० मणसा
वयसा कायसा २०००
२००० णिज्जिय णिज्जिय णिज्जिय णिज्जिय आहार- भय- मेहुणसन्ना सन्ना सन्ना
सन्ना ५०० ५०० श्रोत्रेन्द्रिय चक्षुरिन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय | रसनेन्द्रिय | स्पर्शनेन्द्रिय
१०० | १०० १०० पृथिवी अप् । तेजस् वायु | वनस्पति द्वीन्द्रिय | त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय अजीव
१० १० १० । १० । १० । १०__१० क्षान्ति । मुक्ति । आजव मार्दव लाघव । सत्य । सयम - तप । त्याग । आकचन
२०००
परिग्गह
१०
|
सत्य
२
यह एक गाथा है । दूसरी गाथा में 'खंति' के स्थान 'चतुरिंदिय', 'पंचेंदिय' और 'अजीव' ये दश शब्द आएंगे । पर 'मुत्ति' शब्द आएगा, शेष ज्यों का त्यों रहेगा। प्रत्येक के साथ दश धर्मों का परिवर्तन होने से (१०x१०) तीसरे में 'अज्जव' आएगा। इस प्रकार १० गाथाओं में १०० गाथाएं हो जाएंगी। १०१ गाथा में सोइंदिय के दश धर्मों के नाम क्रमशः आएंगे । फिर ग्यारहवीं गाथा स्थान पर 'चक्खरिदिय' शब्द आएगा। इस प्रकार पांच में 'पूढवि' के स्थान पर 'आउ' शब्द आएगा । पुढवि के इंद्रियों की (१०० x ५) ५०० गाथाएं होंगी। फिर साथ १० धर्मों का परिवर्तन हआ था। उसी प्रकार ५०१ में 'आहारसन्ना' के स्थान पर 'भयसन्ना' फिर 'आउ' शब्द के साथ भी होगा। फिर 'आउ' के स्थान पर 'मेहणसन्ना' और 'परिग्गहसन्ना' शब्द आएंगे। एक संज्ञा क्रमशः 'तेउ', 'वाउ', 'वणस्सइ', ,बेइंदिय', 'तेइंदिय', के ५०० होने से ४ संज्ञा के (५००x४) २००० होंगे।
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