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चारित्र
१०. संकप्पे से वहाय होइ ।
११. सोवक्से गिहवासे । निरुवक्केसे परियाए । १२. बंधे गिवासे । मोक्खे परियाए ।
१३. सावज्जे गिहवासे । अणवज्जे परियाए । १४. बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा । १५. पत्तेयं पुण्णपावं ।
१६. अणिच्चे खलु भो ! मनुयाण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले ।
१७. बहुं च खलु पावं कम्मं पगडं । १८. पावाणं च खलु भो ! कडाणं कम्माणं पुव्वि 'दुच्चिण्णाण दुप्पडिक्कंताणं वेयइत्ता मोक्खो, नत्थि अवेत्ता, तवसा वा झोसइत्ता । अट्ठारसमं पयं भवइ । (दचूला १ सूत्र १ - १८ ) निर्ग्रन्थ-प्रवचन में जो प्रव्रजित है किन्तु उसे मोहवश दुःख उत्पन्न हो गया, संयम में उसका चित्त अरति-युक्त हो गया, वह संयम को छोड़ गृहस्थाश्रम में चला जाना चाहता है, उसे संयम छोड़ने से पूर्व अठारह स्थानों का भलीभांति आलोचन करना चाहिए । अस्थितात्मा के लिए इनका वही स्थान है, जो अश्व के लिए लगाम, हाथी के लिए अंकुश और पोत के लिए पताका का है। अठारह स्थान इस प्रकार हैं
वे
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१०. चारित्र का मूल्य
सुबहुपि सुयमहीयं किं काही चरणविप्पहीणस्स ? अंधस्स जह पलित्ता दीवसयसहस्सकोडीवि ॥ अप्पंपि सुय महीयं पयासयं होइ चरणजुत्तस्स । एक्कोऽवि जह पईवो, सचक्खुअस्सा पयासेइ ।। जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स । एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी न हु सोगईए । ( आवनि ९८ - १०० ) पढ़ा हुआ बहुत ज्ञान भी आचारहीन को क्या लाभ देगा ? अंधे व्यक्ति के सामने करोड़ों दीपक जलाने २ गृहस्थों के कामभोग स्वल्प सार सहित (तुच्छ ) का क्या अर्थ है ? पढ़ा हुआ अल्पज्ञान भी आचारऔर अल्पकालिक हैं ।
१. ओह ! इस दुःषमा ( दुःखबहुल पांचवें आरे) मे लोग बड़ी कठिनाई से जीविका चलाते हैं ।
वान को प्रकाश से भर देता है । चक्षुष्मान को प्रकाश देने के लिए एक दीपक भी काफी है ।
३. मनुष्य प्राय: माया बहुल होते हैं ।
४. यह मेरा परीषहजनित दुःख चिरकालस्थायी नहीं
होगा ।
५. गृहवासी को नीच जनों का पुरस्कार करना होता है— सत्कार करना होता है ।
६. संयम को छोड़ गृहवास में जाने का अर्थ है - वमन को वापस पीना ।
७. संयम को छोड़ गृहवास में जाने का अर्थ हैनारकीय जीवन का अङ्गीकार ।
८.
ओह! गृहवास में रहते हुए गृहियों के लिए धर्म का स्पर्श निश्चय ही दुर्लभ है ।
९. वहां आतंक वध के लिए होता है ।
चारित्र सम्पन्नता..''
१३. गृहवास सावद्य है और मुनिपर्याय अनवद्य । १४. गृहस्थों के कामभोग बहुजनसामान्य हैं - सर्वसुलभ हैं ।
१५. पुण्य और पाप अपना-अपना होता है ।
१६. ओह ! मनुष्यों का जीवन अनित्य है, कुश के अग्र भाग पर स्थित जलबिन्दु के समान चंचल है । १७. ओह ! मैंने इससे पूर्व बहुत ही पापकर्म किए हैं । १८. ओह ! दुश्चरित्र और दुष्टपराक्रम के द्वारा पूर्वकाल में अर्जित किए हुए पापकर्मी को भोग लेने पर अथवा तप के द्वारा उनका क्षय कर देने पर ही मोक्ष होता है । उन्हें भोगे बिना मोक्ष नहीं होताउनसे छुटकारा नहीं होता ।
१०. वहां संकल्प वध के लिए होता है । ११. गृहवास क्लेश सहित है और मुनिपर्याय क्लेश रहित । १२. गृहवास बन्धन है और मुनिपर्याय मोक्ष ।
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चन्दन का भार ढोने वाला गधा केवल भार का भागी होता है, चन्दन का नहीं । उसी प्रकार चरित्रहीन ज्ञानी केवल जान लेता है, सद्गति को प्राप्त नहीं कर सकता । दसारसीहस्स य सेणियस्सा, पेढालपुत्तस्स य सच्चइस्स । अणुत्तरा दंसणसंपया तया, विणा चरित्तेणऽहरं गई गया ।। ( आवनि १९६० ) दशारसिंह, श्रेणिक, पेढालपुत्र और सत्यकी अनुत्तर दर्शन सम्पन्न होने पर भी चारित्र के अभाव में अधोगति को प्राप्त हुए ।
११. चारित्र सम्पन्नता के परिणाम
चरित संपन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जणइ ? चरितसंपन्नयाए णं सेलेसीभावं जणयइ । सेलेसि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा
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