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संपादकीय
पाठक की सुगमता के लिए जीवनवृत्त आदि से संबंधित आंकड़ों के यंत्र (चार्ट) कोश में संलग्न हैं । जैसे - कुलकर, गणधर चक्रवर्ती, तीर्थकर, लेश्या, वासुदेव ।
कहीं-कहीं स्थापनाओं और चित्रों का भी उपयोग हुआ हैं, जैसे—आनुपूर्वी, चारित्र ( अठारह हजार शीलांग), संस्थान, काकिणी, लोक, संख्या (पल्य) और संहनन ।
प्रस्तुत कोश में १७८ विषय संगृहीत हैं। पहला विषय है 'अंगप्रविष्ट' और अन्तिम विषय हैस्वाध्याय । कोश के अंत में दो परिशिष्ट हैं
परिशिष्ट १ :
इसमें लगभग ५०० कथाओं के संकेत हैं । इसके तीन विभाग हैं
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प्रथम विभाग में कथाओ और दृष्टांतों का विषयगत विभाजन, कथा-संकेत और सन्दर्भ-स्थल निर्दिष्ट है । जो कथा जिस विषय के प्रसंग में आई है, उसे प्रायः उसी विषय के अन्तर्गत लिया गया है । जैसे—अनुयोग, एषणा, परीषह, बुद्धि, योगसंग्रह आदि । कहीं-कहीं विषयों का निर्धारण स्वतन्त्र रूप से भी किया गया है । जैसे - अंगुलि -निर्देश, अनुग्रह, अनुशासन, ईर्ष्या, जुगुप्सा, निर्जरा आदि । यदि एक ही कथा सब व्याख्या-ग्रंथों में है तो उन सबके संदर्भ ग्रंथ के कालानुक्रम से एक साथ दे दिये गये हैं ।
द्वितीय विभाग में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, प्रत्येकबुद्ध, निह्नव, नगरों की उत्पत्ति --इनसे संबद्ध जीवनवृत्तों तथा घटनाओं के ससंदर्भ संकेत हैं ।
तृतीय विभाग में आचार्य, मुनि, राजा तथा अन्य प्रसिद्ध कथानायकों का अकारादि क्रम से ससंदर्भ नामांकन है ।
परिशिष्ट २ :
प्रस्तुत परिशिष्ट में पांच आगमों आवश्यक, दशवेकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी और अनुयोगद्वार तथा इनके व्याख्या -ग्रन्थों -निर्युक्ति, चूणि, वृत्ति आदि में विश्लेषित दार्शनिक और तात्त्विक चर्चा स्थलों का ससंदर्भ संकेत है । कहीं-कहीं आचार सम्बन्धी विमर्श भी संगृहीत है । विषयों का संकेत एक - एक ग्रन्थ के अनुसार पृथक्पृथक् दिया गया है. इसलिए कुछेक विषयों की पुनरावृत्ति भी हुई है ।
कृतज्ञता के स्वर
आगमपुरुष गणाधिपति पूज्य गुरुदेव एवं प्रज्ञापुरुष आचार्यप्रवर की सतत प्रेरणा, मार्गदर्शन एवं समाधान ने हमारा पथ प्रशस्त किया है। इन पूज्यवरों की तीव्र अन्तः अभीप्सा का ही एक पर्याय है - प्रस्तुत आगम विषय कोश |
अन्य कुछेक कार्यों को गौणकर केवल इसी कार्य में प्रमुख रूप से संलग्न रहकर हमने इस अल्पकालावधि में यह कार्य सम्पन्न किया - यह सब महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा श्रीकनकप्रभाजी के अनुग्रह की ही फलश्रुति है । इस कोश को समृद्ध और सुव्यवस्थित बनाने में अनन्य योग रहा है मुनिश्री दुलहराजजी का । व्यवहारभाष्य के निरीक्षण और समायोजन में तथा अन्य कार्यों में संलग्न होते हुए भी उन्होंने इस कोश में निष्ठापूर्ण सहयोग किया, उसी का परिणाम है कि यह कोश इतना शीघ्र प्रकाश में आ सका ।
कोश निर्माण की संपूर्ण पद्धति का अवबोध मिला डॉ० सत्य रंजन बनर्जी से । गणित से संबंधित विषयों में मुनिश्री श्रीचन्दजी एवं मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी का सहयोग रहा। साध्वी संचितयशाजी ने प्रतिलिपि, चित्र एवं चार्ट बनाने में अपना पूर्ण श्रम एवं समय लगाया । समणी उज्ज्वल प्रज्ञाजी ने प्रतिलिपि प्रूफनिरीक्षण एवं परिशिष्ट निर्माण में अनन्य सहयोग किया। साध्वी अमृतयशाजी, साध्वी दर्शनविभाजी आदि साध्वियां, समणियां
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