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________________ संपादकीय कर केवल उनका शाब्दिक अर्थ दिया है और शेष जानकारी के लिए द्रष्टव्य (द्र०) लिखकर उसकी सूचना दी गई है। जैसे--अवग्रह (द्र० आभिनिबोधिक ज्ञान)। अन्य ज्ञातव्य तथ्य जहां मूल पाठ की लम्बी संलग्नता थी, वहां उसे अनेक उपशीर्षकों में बांट दिया गया है। जैसे भिक्ष कौन ? इसका पूरा विवरण दो अध्ययनों (उत्तराध्ययन १५ और दशवकालिक १०) में है। उसे विभिन्न उपबिन्दुओं में विभक्त कर यथास्थान योजित किया गया है। इससे वह विषय विशद और सहज बुद्धिगम्य बन गया है। . कहीं-कहीं निर्यक्ति अथवा भाष्य की गाथाओं का संग्रहण कर विषय की विशदता के लिए चूणि अथवा वृत्ति के आधार पर उनका विस्तृत अनुवाद दिया गया है और अन्त में उसके संदर्भ-स्थल का निर्देश भी कर दिया गया है। जैसे ---आत्मा (आत्मा की अस्तित्व सिद्धि), तीर्थकर (संगम के उपसर्ग), बाहबली आदि । ० अपूर्ण पाठ को हमने...."इन बिन्दुओं से द्योतित किया है। • व्याख्या ग्रंथों में कुछेक विषय ऐसे हैं, जिनमें सभी मनीषी एक मत नहीं हैं । उन विषयों की खंडनमंडनात्मक चर्चा यत्र-तत्र उपलब्ध है। हमने इस जटिलता को प्रस्तुत कोश में स्थान नहीं दिया है। परिशिष्ट २ में इन विषयों के संदर्भो का सकेत कर दिया गया है, जिससे जिज्ञासु पाठक वहां उनको समग्रता से देख सके । ० कुछेक जैन पारिभाषिक शब्दों का इन निर्धारित ग्रन्थों में विवेचन नहीं है हमने उन शब्दों का संग्रहण कर उनकी मात्र परिभाषा, अर्थबोध अथवा सामान्य विवरण दिया है। जैसे--अस्पृशद्गति, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी आदि । इसी प्रकार कुछेक शब्दों की अतिसंक्षित्त जानकारी भी इसमें दी गई है, जैसे- काकिणी, छद्मस्थ, छविपर्य, भूतिप्रज्ञ आदि । बाहुबली, भरत, मरुदेवा, राजीमती आदि के संक्षिप्त जीवनवृत्त भी उल्लिखित हैं। ० शब्द के निर्वचन आदि में हमने प्राचीनतम स्रोत को उद्धृत करने का प्रयत्न किया है। जहां व्याख्या-ग्रंथों के भिन्न-भिन्न मत हों तो वहां हमने सभी को क्रमशः उल्लिखित किया है। जहां सभी एकमत हों वहां प्राचीन स्रोत को ग्रहण किया है। विषय की विवेचना में जहां कुछ एक भिन्नता के साथ सभी एक मत हों तो वहां स्पष्ट विवेचना को स्थान दिया है । इसमें गद्य-पद्य की सुबोधता का भी ध्यान रखा है। कुछेक व्याख्याकार एक ही विषय को क्लिष्टतम शब्दों में विवेचित करते हैं तो कुछ उसी विवेचना को सहज-सरल शब्दों में प्रस्तुत करते हैं। हमने सहज सुबोध उद्धरण को प्राथमिकता दी है। ० एक ही विषय की विवेचना में यदि व्याख्याकार कोई नई बात प्रस्तुत करते हैं तो हमने उस नए तथ्य को चाहे छोटा हो या बड़ा, समादृत किया है। __० अनुयोगद्वार तथा नन्दी-इन दो आगमों तथा उनके व्याख्या-ग्रन्थों में विवेचित अनेक विषयों का हमने प्रस्तुत कोश में इसलिए ग्रहण नहीं किया कि अभी-अभी ये दोनों ग्रन्थ आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा सुसंपादित, विवेचित और विश्लेषणात्मक टिप्पणों से युक्त तैयार हए हैं। अनुयोगद्वार प्रकाशित हो चुका है और नन्दी प्रकाशनाधीन है। उनमें विवेचित अंशों को पुन: यहां उद्धत करने के बदले उन्हीं ग्रन्थों से उन विषयों की अवगति प्राप्त करने की सूचना दे दी गई है। . जिन विषयों की विस्तृत जानकारी सूयगडो, ठाणं, समवाओ आदि आगमग्रन्थों अथवा उनके टिप्पणों में है, उनका संबंध भी प्रस्तुत कोश के साथ यथास्थान जोड़ दिया गया है। जैसे--अवधिज्ञान के संस्थान (देखें-- भगवती ८।९७-१०३ का भाष्य), लेश्या (देखें-पण्णवणा पद १७), वाद (देखें -सूयगडो १।१२।१ का टिप्पण) । विषय की स्पष्टता के लिए कहीं-कहीं ससंदर्भ कथाएं भी उद्धृत हैं। जैसे--प्रतिक्रमण, बुद्धि, सामायिक आदि । परिशिष्ट १ में कथाओं का ससंदर्भ सकेत दिया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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