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________________ २२६ केवलज्ञान भवस्थ केवलज्ञान • वह अन्य ज्ञानों के सदृश नहीं है, इसलिए कर्म क्षीण नहीं होते, तब तक वह भवस्थ केवलज्ञान असाधारण है। कहलाता है। • ज्ञेय अनन्त हैं, इसलिए वह अनन्त है। भवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णतं, तं जहा-सजोगि. २.केवलज्ञान का विषय भवत्थकेवलनाणं च अजोगिभवत्थकेवलनाणं च । (नन्दी २७) तं समासओ चउम्विहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ, भवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का हैखेत्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ सयोगी भवस्थ केवलज्ञान और अयोगी भवस्थ केवलदव्वओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। ज्ञान । खेत्तओ णं केवलनाणी सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ । कालओ णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ-पासइ । सयोगी भवस्थ केवलज्ञान भावओ णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ-पासइ। केवलणाणसमप्पत्तीओ आरब्भ जाव पंचहस्सक्खरियं (नन्दी ३३) सेलेसिं ण पडिवज्जति ताव सयोगिभवत्थकेवलणाणं केवलज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का है- भन्नति ।। (आवचू १ पृ ७४) द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः । केवलज्ञान की प्राप्ति से लेकर जब तक पंच ह्रस्वाद्रव्य की अपेक्षा से केवलज्ञानी सभी द्रव्यों को जानता- क्षरिक शैलेशी अवस्था प्राप्त नहीं होती, तब तक वह देखता है। केवलज्ञान सयोगी भवस्थ केवलज्ञान कहलाता है। क्षेत्र की अपेक्षा से-केवलज्ञानी सभी क्षेत्रों को जानता सजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णतं, तं जहादेखता है । पढमसमयसजोगि भवत्थकेवलनाणं च अपढमसमयसजोगिकाल की अपेक्षा से -केवलज्ञानी सभी कालों को जानता भवत्थकेवलनाणं च। अहवा चरमसमयसजोगिभवत्थदेखता है। केवलनाणं च अचरमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च । भाव की अपेक्षा से-केवलज्ञानी सभी भावों को जानता (नन्दी २८) देखता है। सयोगी भवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का है-प्रथम ३. केवलज्ञान के प्रकार समय सयोगी भवस्थ केवलज्ञान, अप्रथम समय सयोगी केवलनाणं विहं पण्णत्तं, तं जहा- भवत्थकेवलनाणं भवस्थ केवलज्ञान । अथवा-चरम समय सयोगी भवस्थ च सिद्धकेवलनाणं च । (नन्दी २६) केवलज्ञान, अचरम समय सयोगी भवस्थ केवलज्ञान । केवलज्ञान के दो प्रकार हैं भवस्थ केवलज्ञान और अयोगी भवस्थ केवलज्ञान सिद्ध केवलज्ञान । ___ जाहे पुण पंचहस्सक्खरियं सेलेसि पडिवन्ने भवति ४. भवस्थ केवलज्ञान : परिभाषा एवं प्रकार ताहे अजोगिभवत्थकेवलणाणं भन्नति। मणुस्सभवट्ठितस्स जं केवलनाणं तं भवत्थकेवलनाणं । (आवच १ पृ ७४) (नन्दीचू पृ २५) जब पंच हस्वाक्षरिक शैलेशी अवस्था प्राप्त हो भवत्थकेवलणाणं नाम जं मणस्सभवे चेव अवस्थितस्स जाती है, तब वह अयोगी भवस्थ केवलजान कहलाता है। चरहिं घातिकम्मेहिं खीण हिं समुप्पज्जति । तं जाव अजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहाचउरो केवलिकम्मा अक्खीणा ताव भवत्थकेवलणाणं पढमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च अपढमसमयभन्नति । __ (आवचू १ पृ.७४) अजोगिभवत्थकेवलनाणं च । अहवा-चरमसमयअजोगि___ मनुष्य भव में स्थित मनुष्य का केवलज्ञान भवस्थ केवलज्ञान है। भवत्थकेवलनाणं च अचरमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं । भवस्थ केवलज्ञान वह है, जो मनुष्यभव में अवस्थित (नन्दी २९) व्यक्ति के ज्ञानावरणीय आदि चार घातिकर्मों के क्षीण अयोगी भवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का हैहोने पर उत्पन्न होता है। जब तक शेष चार अधाति- १. प्रथम समय अयोगीभवस्थ केवलज्ञान २. अप्रथम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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