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कुलकर
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विमलवाहन का पूर्वभव
चक्षुष्मान, यशस्वी और प्रसेनजित् लाल वर्ण वाले, तीन दण्डनीतियां थीं-हाकार, माकार और अभिचन्द्र चन्द्रमा के समान गौर वर्ण वाले और शेष धिक्कार । प्रथम और द्वितीय कुलकर के समय हाकारकुलकर स्वर्ण आभा वाले थे।
नीति का प्रयोग होता था। तीसरे और चौथे कुलकर के कुलकर अंगनाओं का संहनन, संस्थान तथा ऊंचाई समय माकार और अंतिम तीन कुलकरों के समय अपने-अपने पति कुलकर के समान थी। सबका वर्ण धिक्कारनीति का प्रयोग होता था। प्रियंगु था।
६. विमलवाहन कुलकर का पूर्वभव ६. कुलकर-आयु
अवरविदेहे दो वणिय वयंसा, माइ उज्जुए चेव । पलिओवमदसभाए पढमस्साउं तओ असं खिज्जा।
कालगया इह भरहे, हत्थी मणुओ अ आयाया । ते आणुपुग्विहीणा पुव्वा नाभिस्स संखेज्जा ।
दर्छ सिणेहकरणं गयमारुहणं च नामणिप्फत्ती । जं चेव आउयं कुलगराण तं चेव होइ तासिपि ।
परिहाणि गेहि कलहो सामत्थण विन्नवण हत्ति ।। जं पढमगस्स आउं तावइयं चेव हथिस्स ।।
(आवनि १५३,१५४) (आवनि १६१,१६२) तेसिं च जातिसरणं जायं। ताहे कालदोसेण ते प्रथम कुलकर विमलवाहन की आयु पल्योपम का रुक्खा परिहायंती..."तेस परिहायंतेसू कसाया उप्पण्णा। दसवां भाग थी। चक्षुष्मान् आदि कुलकरों की आयु .."तेहिं सो विमलवाहणो एस अम्हेहितो अहितो त्ति असंख्येय पूर्व और अन्तिम कुलकर नाभि की आयु ठवितो। संख्येय पूर्व थी। कुलकर-अंगनाओं की आयु कुलकरों के तस्स य चंदजसा भारिया। तीए समं भोगे भंजतस्स समान थी। उनके हाथियों की आयु भी उतनी ही अवरं मिथणं जायं। तस्स वि कालंतरेण अवरं, एवं ते थी।
एगवंसम्मि सत्त कुलगरा उप्पण्णा । पूर्वभवाः खल्वमीषां ७. कुलकरों को गति
प्रथमानुयोगतोऽवसेयाः । (आवहावृ १ पृ.७४) ...ते पयणु पिज्जदोसा सव्वे देवेसु उववण्णा ॥
___ अपरविदेह में दो वणिक् मित्र थे-एक ऋजु,
दूसरा मायावी । ऋजु वणिक मरकर भरतक्षेत्र में योगदो चेव सुवणेसुं उदहिकुमारेसु हुंति दो चेव ।
लिक रूप में उत्पन्न हुआ। मायावी वणिक उसी प्रदेश दो दीवकुमारेसुं एगो नागेसु उववण्णो ॥
में श्वेत, चतुर्दन्त हाथी बना। दोनों ने एक-दूसरे को हत्थी छच्चित्थीओ नागकुमारेस हंति उववण्णा ।
देखा, प्रीति उत्पन्न हुई, वह हाथी पर आरूढ हो गया । एगा सिद्धि पत्ता मरुदेवी नाभिणो पत्ती॥ ... (आवनि १६४-१६६)
लोगों ने देखा-यह व्यक्ति हम सबसे अधिक अतिशायी
है, इसका वाहन विमल है- इस प्रकार उसका नाम सभी कुलकरों के रागद्वेष प्रतनु थे। अतः वे सभी
विमलवाहन हो गया। उसने जातिस्मृति से जान लिया मरकर देवगति में उत्पन्न हुए। दो कुलकर सुपर्णकुमार,
कि अब कालदोष से कल्पवक्षों में क्षीणता आयेगी, इससे दो उदधिकुमार, दो द्वीपकुमार तथा एक नागकुमार देवों
ममत्वभाव बढ़ेगा, कलह होगा- यह जान लेने पर में उत्पन्न हए । सातों हाथी और छह कुलकर-अंगनाएं
लोगों ने विमर्शपूर्वक विमलवाहन को अपना अधिपति ये सब नागकुमारदेवों में उत्पन्न हुए। नाभि कुलकर की पत्नी मरुदेवी सिद्धि को प्राप्त हुई।
बनाया, जो प्रथम कुलकर कहलाया। उसने हाकार
नीति का प्रवर्तन किया । चंद्रयशा उसकी भार्या थी। ८. कुलकर और दंडनीति
उसने एक युगल को जन्म दिया। उस युगल ने कालांतर हक्कारे मक्कारे धिक्कारे चेव दंडनीईओ।...
में अन्य युगल को जन्म दिया। इस प्रकार एक वंश में पढमबीयाण पढमा तइयचउत्थाण अभिनवा बीया । सात कुलकर उत्पन्न हुए। उनके पूर्वभव 'प्रथमानुयोग' से पंचमछट्टस्स य सत्तमस्स तइया अभिनवा उ । ज्ञातव्य हैं।
(आवनि १६७,१६८)
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