________________
संहनन संस्थान- वर्णं
कुल सात हैं
१. उग्र भगवान् ऋषभ ने जिनकी नियुक्ति की थी, वे उग्र कहलाये । वंशजों को भी उग्र कहा गया है ।
२. भोज - जो गुरुस्थानीय थे, वे तथा उनके वंशज ।
३. राजन्य - जो मित्रस्थानीय थे, वे तथा उनके वंशज ।
४. क्षत्रिय - रक्षा का दायित्व वहन करने वाले । ५. इक्ष्वाकु – भगवान् ऋषभ के वंशज ।
६. ज्ञात -- भगवान् महावीर के वंशज ।
७. कौरव - भगवान् शान्ति के वंशज ।
१. सात कुलकर
२. कुलकर- अंगना
३. उत्पत्ति-काल- क्षेत्र
कुलकर - यौगलिक युग में कुल को व्यवस्था करने
वाले पुरुष ।
(देखें - ठाणं ६ ३५ का टिप्पण)
४. कुलकर- अवगाहना
५. संहनन संस्थान वर्ण
आरक्षक वर्ग के रूप में
उनके
६. कुलकर- आयु
७. कुलकरों की गति
८. कुलकर और दंडनीति
* यौगलिक-जीवन चर्या
* यौगलिक युग के पश्चात् समाज व्यवस्था
९. विमलवाहन कुलकर का पूर्वभव
१. सात कुलकर
पढमित्थ विमलवाहण चक्खुम जसमं तत्तो अ पसेणइए मरुदेवे चेव
(द्र. मनुष्य )
Jain Education International
(व्र. तीर्थंकर)
चउत्थमभिचंदे । नाभी य ॥
( आवनि १५५ )
कुलकर सात हैं - विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वी, अभिचन्द्र, प्रसेनजित्, मरुदेव और नाभि ।
२. कुलकर - अंगना
चंदजसचंदकंता सुरूव पडिरूव चक्खुकंता य । सिरिकंता मरुदेवी कुलगरपत्तीण नामाई ॥ ( आवनि १५९ )
२२३
कुलकर
कुलकरों की पत्नियों के क्रमशः ये नाम हैंचन्द्रयशा, चन्द्रकांता, सुरूपा, प्रतिरूपा, चक्षुकान्ता, श्रीकान्ता, मरुदेवी ।
३. उत्पत्ति-काल-क्षेत्र
ओपिणी इमीसे तइयाऍ समाएँ पच्छिमे भागे । पलिओम भाए सेसं मि कुलगरुप्पत्ती ॥ अद्धभर मज्झिल्लुतिभागे गंगसिंधुमभूमि । बहुमज्भदेसे उप्पण्णा कुलगरा सत्त ॥ ( आवनि १५०, १५१ ) तीसरे अर ( सुषमदुष्षमा) के का आठवां भाग शेष रहने पर
इत्थ
इस अवसर्पिणी के पश्चिम भाग में पत्योपय कुलकरों की उत्पत्ति हुई ।
अर्धभरत के मध्य भाग में गंगा-सिंधु के मध्य सात
कुकर पैदा हुए।
४. कुलकर- अवगाहना
उ
वधयाय पढमो अट्ठ य सत्तद्धसत्तमाई च । छच्चेव अद्धछट्टा पंचसया पण्णवीसं तु ॥
( आवनि १५६ )
कुलकर
विमलवाहन
चक्षुष्मान्
यशस्वी
अभिचन्द्र
प्रसेनजित्
मरुदेव
नाभि
५. संहनन संस्थान - वर्ण
अवगाहना
For Private & Personal Use Only
९०० धनुष
८००
७००
६५०
६००
५५०
५२५
"1
11
11
11
19
"
वज्जरिसहसंघयणा समचउरंसा य हुंति संठाणे । ... चक्खुम जसमं च पसेणइअं एए पिअंगुवण्णाभा । अभिचंदो ससिगोरो निम्मलकणगप्पभा सेसा ॥ संघयणं संठाणं उच्चत्तं चैव कुलगरेहि समं । वणेण एकवण्णा सव्वाओ पिअंगुवण्णाओ ॥ ( आवनि १५७, १५८, १६० )
सब कुलकर वज्रऋषभनाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं ।
www.jainelibrary.org