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एषणा के प्रकार
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एषणासमिति
आधार पर इसके पांच प्रकार हैं
३. उद्गम-उत्पादन की परिभाषा १. अल्पाहार-- आठ ग्रास प्रमाण ।
४. उद्गम बोषों के प्रकार और विवरण २. अपार्द्ध -- बारह ग्रास प्रमाण ।
५. उदगम : विशोधिकोटि-अविशोधिकोटि ३. द्विभाग- सोलह ग्रास प्रमाण ।
६. उत्पादन दोषों के प्रकार ४. प्रमाणोपेत-चौबीस ग्रास प्रमाण ।
७. ग्रहणषणा की परिभाषा ५. किंचित ऊनोदरी- इकतीस ग्रास प्रमाण ।
८. ग्रहणषणा के प्रकार और विवरण भाव ऊनोदरी
९. नवकोटि शुद्ध भिक्षा भावोमोयरिया चउण्हं कसायाणं उदयनिरोहो उदय- १०. अनेषणीय आहार आदि के दुष्परिणाम प्पत्तविफलीकरणं च ।
(दअचू पृ १३)
* एषणा : समिति का एक प्रकार (द्र. समिति) क्रोध आदि चार कषायों के उदय का निरोध और * एषणा के सात प्रकार (द्र. भिक्षाचर्या) उदयप्राप्त का विफलीकरण भाव ऊनोदरी है।
* औद्देशिक आदि अनाचार (द्र. अनाचार)
* निर्दोष आहार ग्रहण-विधि (द्र. गोचरचर्या) ऋजुमति-मनःपर्यवज्ञान का एक भेद ।
* सदोष भिक्षा और कायोत्सर्ग (द्र. कायोत्सर्ग)
(द्र. मनःपर्यवज्ञान) ऋजुसूत्र-वर्तमान पर्याय को स्वीकार करने वाला १. एषणा को परिभाषा
अभिप्राय । वर्तमान क्षण को ग्रहण एषणासमिति म गोचरगतेन मुनिना सम्यगुप
करने वाला दृष्टिकोण। (द्र. नय) युक्तेन नवकोटिपरिशुद्धं ग्राह्यम् । (आवहावृ २ पृ८४) ऋद्धि-ऐश्वर्य।
(द्र. लब्धि
गोचरचर्या के समय मनि सावधानी से नवकोटि
) ऋषभ-प्रथम तीर्थंकर
द्र. तीर्थंकर) परिशुद्ध भिक्षा ग्रहण करता है, इसे एषणा समिति कहा
जाता है। एकत्व भावना-अपने आपमें अकेलेपन का अनुभव
एत्थ य समणसुविहिया परकडपरनिट्ठियं विगयधूमं । करना। (द्र. अनुप्रेक्षा) आहारं एसंति जोगाणं साहणट्ठाए । एकसिद्ध-एक समय में एक जीव का सिद्ध होना ।
(दनि ४३) (द्र. सिद्ध) संयमयोगों की साधना के लिए श्रमण दूसरों के लिए एकेन्द्रिय-वे जीव जिनके केवल एक स्पर्शनेन्द्रिय कृत --निष्पन्न, धूम आदि दोषों से मुक्त आहार की ही होती है।
(द्र. जीव) एषणा करते हैं। एवंभत-क्रिया की परिणति के अनरूप ही शब्द २. एषणा के प्रकार
के प्रयोग को स्वीकार करने वाला गवसणाए गहणे य, परिभोगेसणा य जा। अभिप्राय। (द्र, नय) आहारोवहिसेज्जाए, एए तिन्नि विसोहए ।।
(उ २४१११) एषणासमिति-कल्पनीय आहार, पानी आदि को
एषणा के तीन प्रकार हैं--गवेषणा, ग्रहणषणा और गवंषणा करना। समिति का परिभोगैषणा । मुनि आहार, उपधि और शय्या के विषय तीसरा भेद।
में इन तीनों का विशोधन करे।
उग्गमुप्पयणं पढमे, बीए सोहेज्ज एसणं । १. एषणा की परिभाषा
परिभोयंमि चउक्कं, विसोहेज्ज जयं जई ।। २. एषणा के प्रकार
(उ २४/१२) ० गवेषणा-उदगम और उत्पादन के दोष
यतनाशील यति प्रथम एषणा में उद्गम और उत्पादन • ग्रहणषणा-एषणा के दोष
के दोषों का शोधन करे। दूसरी एषणा में एषणा * परिभोगषणा-मांडलिक दोष (द्र. आहार)
) सम्बन्धी दोषों का शोधन करे और परिभोगैषणा
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