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ऊनोदरी
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उपकरण तथा भक्तपान ऊनोदरी
तरी
| दिवस के चार प्रहरों में जितना अभिग्रहकाल हो २. ऊनोदरी के दो प्रकार
उसमें भिक्षा के लिए जाऊंगा, अन्यथा नहीं-- इस प्रकार • उपकरण तथा भक्तपान ऊनोदरी
चर्या करने वाले मुनि के काल से अवमौदर्य तप होता • भाव ऊनोदरी * पूर्ण आहार का प्रमाण
है । अथवा कुछ न्यून तीसरे प्रहर (चतुर्थ भाग आदि (द्र. आहार)
न्यून प्रहर) में जो भिक्षा की एषणा करता है, उसे काल १. ऊनोदरी के पांच प्रकार
से अवमौदर्य तप होता है। ओमोयरियं पंचहा, समासेण वियाहियं ।
भाव ऊनोदरी दव्वओ खेत्तकालेणं, भावेणं पज्जवेहि य॥
इत्थी वा पुरिसो वा, अलंकिओ वाणलंकिओ वा वि । (उ ३०।१४)
अन्नयरवयत्थो वा, अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥
अन्नेण विसेसेणं, वण्णणं भावमणमयंते उ। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यव की दष्टि से
एवं चरमाणो खलु, भावोमाणं मुणेयव्वो ।। ऊनोदरी तप पांच प्रकार का है। प्रव्य ऊनोदरी
(उ ३०।२२, २३) जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे ।
स्त्री अथवा पुरुष, अलंकृत अथवा अनलंकृत, अमुक जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दव्वेण ऊ भवे ।। वय वाले, अमुक वस्त्र वाले, अमुक विशेष प्रकार की
(उ ३०।१५)
दशा, वर्ण या भाव से युक्त दाता से भिक्षा ग्रहण करूंगा, जिसका जितना आहार है, उससे जो जघन्यतः एक अन्यथा नहीं - इस प्रकार चर्या करने वाले मुनि के भाव सिक्थ (धान्य कण) और उत्कृष्टतः एक कवल कम खाता है, उसके द्रव्य से अवमौदर्य तप होता है।
पर्यव ऊनोदरी क्षेत्र ऊनोदरी
दवे खेत्ते काले, भावम्मि य आहिया उ जे भावा । गामे नगरे तह रायहाणि निगमे य आगरे पल्ली। एएहि ओमचरओ, पज्जवचरओ भवे भिक्ख ।। खेडे कव्वडदोणमुहपट्टणमडंबसंबाहे ॥
(उ ३०।२४) आसमपए विहारे, सन्निवेसे समायघोसे य ।
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में जो पर्याय कहे गए थलिसेणाखंधारे, सत्थे संवट्टकोट्टे य॥
हैं, उन सबके द्वारा अवमौदर्य करने वाला भिक्ष पर्यववाडेसु व रच्छासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं ॥ चरक होता है। कप्पइ उ एवमाई, एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥ २. ऊनोदरी के दो प्रकार
(उ ३०।१६-१८)
सा दुविहा--दव्वे भावे य। (दअच् पृ १३) मुनि ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली,
ऊनोदरी के दो प्रकार हैं---द्रव्य ऊनोदरी और भाव खेड़ा, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, मंडप, संबाध, आश्रमपद,
ऊनोदरी। विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिविर, सार्थ, संवर्त, कोट, पाड़ा, गलियां, घर-इनमें अथवा उपकरण तथा भक्तपान ऊनोदरी इस प्रकार के अन्य क्षेत्रों में से पूर्व निश्चय के अनुसार दव्वे उवकरणे भत्तपाणे य । उवकरणे एगवत्थधारित्तं निर्धारित क्षेत्र में भिक्षा के लिए जा सकता है। इस एवमादि । भत्तपाणोमोदरिया अप्पप्पणो मुहप्पमाणेण प्रकार यह क्षेत्र से अवमौदर्य तप होता है।
कवलेणं पंचविगप्पा-अप्पाहारोमोदरिया, अवड्ढोकाल ऊनोदरी
मोदरिया, दुभागोमोदरिया, पमाणोमोदरिया, किंचूणोदिवसस्स पोरुसीणं, चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे कालो। मोदरिया।।
(दअचू पृ १३) एवं चरमाणो खलु, कालोमाणं मुणेयव्वो॥
द्रव्य ऊनोदरी के दो प्रकार हैंअहवा तइयाए पोरिसीए, ऊणाइ घासमेसंतो।
१. उपकरण ऊनोदरी-एक वस्त्र धारण करना चउभागूणाए वा, एवं कालेण ऊ भवे ॥
आदि। (उ ३०।२०, २१) २. भक्तपान ऊनोदरी-अपने मुखप्रमाण ग्रास के
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