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आभिनिबोधिक ज्ञान
अवाय : परिभाषा
'सामान्य ग्रहण के अनन्तर सत अर्थ की मीमांसा ३. चित्त की जड़ीभूत अवस्था-अवस्तु की करना ईहा है। नैश्चयिक अर्थावग्रह के अनन्तर यह निश्चायकता। मीमांसा होती है कि यह शब्द है अथवा अशब्द ? ४. सुप्त की भांति सर्वात्मना वस्तु का अनवबोध । व्यावहारिक अर्थावग्रह के अनन्तर यह मीमांसा होती है-यह शब्द शंख का है अथवा सींग का ?
१. चित्त सदर्थ-विवक्षित अर्थ के हेतु और उपपत्ति पर्याय
(संभाव्य व्यवस्थापन) की प्रवृति में संलग्न । तीसे णं इमे एगदिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच
२. अमिथ्या, अमोघ चित्त ।
३. यथार्थ के ग्रहण और अयथार्थ के परित्याग में नामधिज्जा भवंति, तं जहा-आभोगणया, मग्गणया, गवेसणया, चिता, वीमंसा ।
(नन्दी ४५)
तत्पर ।
४. निश्चयाभिमुखता। ईहा के नाना घोष और नाना पर्याय वाले पांच . एकार्थक हैं
न हि 'किमयं स्थाणुः, पुरुषो वा' इत्यादि रूपः संशय १. आभोगनता, २. मार्गणा, ३. गवेषणा, ४.
ईहाऽभ्युपगम्यते । अन्वयधर्मघटन-व्यतिरेकधर्मनिराकर
णाभ्यां निश्चयाभिमुखो बोध ईहा। न चायं संशयः, चिन्ता, ५. विमर्श।
निश्चयाभिमुखत्वात् । नापि निश्चयः, तत्प्रत्यासत्तिमात्रप्रकार
प्राप्तत्वात्।
(विभामवृ पृ १५७) ईहा छव्विहा पण्णत्ता, त जहा-साइदियइहा, 'यह स्थाणु है या पुरुष' इस प्रकार का संशयात्मक चक्खिादयाहा, पाणिदियइहा, राजाभादयाहा, कासिदिय- ज्ञान ईहा नहीं है। अन्वयधर्मों के स्वीकरण तथा ईहा, नोइं दियईहा।
(नन्दी ४४)
व्यतिरेक धर्मों के निराकरण द्वारा जो निश्चयाभिमुखी ईहा के छह प्रकार हैं -
बोध है, वह ईहा है । निश्चय के अभिमुख होने के कारण १. श्रोत्रेन्द्रिय ईहा, २. चक्षुरिन्द्रिय ईहा, ३. घ्राणे
यह संशय नहीं है। निश्चय के प्रत्यासन्न होने मात्र से न्दिय ईहा. ४. जिव्हेन्द्रिय ईहा, ५. स्पशेनेन्द्रिय इहा, यह निश्चय भी नहीं है। ६. नोइन्द्रिय ईहा।
१०. अवाय : परिभाषा ईहा अज्ञान नहीं
महराइगुणत्तणओ संखस्सेव त्ति जन संगस्स । ईहा संसयमेत्तं केई, न तयं तओ जमन्नाणं ।
विण्णाणं सोऽवाओ अण् गम-वइरेगभावाओ ।। मइनाणं सा चेहा, कहमन्नाणं तई जुत्तं ?
(विभा २९०) (विभा १८२)
यह शब्द मधुर है, स्निग्ध है, इसलिए यह शंख का कुछ दार्शनिक मानते हैं -ईहा संशयमात्र हैं । संशय ही होना चाहिए, सींग का नहीं इस प्रकार अन्वय अज्ञान है, इसलिए ईहा अज्ञान है -यह कथन मिथ्या है। धर्मो और व्यतिरेक धर्मों के आधार पर किया जाने ईहा मतिज्ञान का अंश है। वह ज्ञान है। उसे अज्ञान
वाला निश्चयात्मक ज्ञान अवाय है। मानना युक्त नहीं है।
पर्याय ईहा और संशय में अंतर
तस्स णं इमे एगडिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच जमणेगत्थालं बणमपज्जुदासपरिकुंठियं चित्तं । नामधिज्जा भवंति, तं जहा-आवट्टणया, पच्चावट्टणया, सेय इव सव्वप्पयओ तं संसयरूवमन्नाणं ।। अवाए, बुद्धी, विण्णाणे ।
(नन्दी ४७) तं चिय सयत्थहेऊववत्तिवावारतप्परममोहं । __ अवाय के नाना घोष और नाना पर्याय वाले पांच भूयाभूयविसेसायाणच्चायाभिमुहमीहा ॥
एकार्थक हैं
(विभा १८३, १८४) १. आवर्तनता, २. प्रत्यावर्तनता, ३. अवाय, ४. संशय है
बुद्धि, ५. विज्ञान । १. चित्त की अनेकार्थ अवलंबनता।
प्रकार.
. । २. अपर्युदास -निषेध का अभाव ।
अवाए छविहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियअवाए,
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