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आनुपूर्व
पूर्वी
एक द्रव्य की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, संख्येय भागों का स्पर्श करते हैं, असंख्येय भागों का स्पर्श करते हैं अथवा समूचे लोक का स्पर्श करते हैं ।
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गम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई कालओ केवच्चिरं होंति ? एगदव्वं पडुच्च जहणणेणं एवं समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वद्धा ।
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नैगम और व्यवहार नय-सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते, असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं । संख्येय भागों का स्पर्श नहीं करते, असंख्येय भागों का स्पर्श नहीं करते, समूचे लोक का स्पर्श नहीं करते ।
क्षेत्र और स्पर्शना में अंतर
अवगाहणाइरितं पिफुसइ बाहिं जहाणुणोभिहियं । एगएसं खेत्त सत्तपएसा य से
गम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाणं अंतरं कालओ एगदव्वं पडुच्च जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं अनंतं कालं । नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं । फुसणा ॥ गम-ववहाराणं ( विभा ४३२ ) terroraari एगदव्वं क्षेत्रस्पर्शनयोरयं विशेषः - क्षेत्रमवगाहमात्रं स्पर्शना पडुच्च जहणणेणं एवं समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । ( अनु १२७) तु स्वचतसृष्वपि दिक्षु तद्बहिरपि वेदितव्येति । यथेह नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं । परमाणोरेकप्रदेशं क्षेत्र सप्तप्रदेशा स्पर्शनेति । स्यादेतद्नगम और व्यवहार नय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्यों में एवं सत्यणोरेकत्वं हीयत इति । उक्तं च 'दिग्भागभेदो कालकृत अन्तर एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्यतः एक समय यस्यास्ति, तस्यैकत्वं न युज्यते' - इत्येतदयुक्तं, अभिप्रायापरिज्ञानात् । नह्य शतः स्पर्शना नाम काचिद्, अपि नैरन्तर्यमेव स्पर्शना ब्रूम इति । ( अनुहाव पृ ३५ ) क्षेत्र पदार्थ द्वारा अवगाहित मात्र होता है और स्पर्शना में अनन्तरित आकाश-प्रदेशों का भी ग्रहण होता है । जैसे परमाणु द्वारा अवगाहित क्षेत्र एक प्रदेश है पर वह स्पर्श सात आकाश प्रदेशों का करता है । चार दिशाओं में चार प्रदेश और ऊर्ध्व व अध: दो दिशाओं में दो प्रदेश तथा एक प्रदेश वह जिसमें वह अवगाढ हैइस प्रकार स्पर्शना सात प्रदेश की हो जाती है ।
और उत्कृष्टतः अनन्त काल का होता है । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा उनमें कालकृत अन्तर नहीं होता ।
तु
T
प्रश्न उपस्थित होता है यदि सात आकाश प्रदेशों की स्पर्शना हो तो अणु का एकत्व या अविभाजित्व खण्डित हो जाता है, वह निरंश नहीं रह पाता । जिसका दिग्भाग होता है उसका एकत्व युक्ति-संगत नहीं होता। इसका समाधान यह है कि स्पर्शना के द्वारा परमाणुओं के अंशों का निर्देश नहीं किया गया है अपितु उनका आकाश के साथ निरन्तर स्पर्श का निर्देश किया गया है ।
५. काल
एवं दोणि वि । ( अनु १२६ ) नैगम और व्यवहार नय-सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य काल की दृष्टि से कितने समय तक होते हैं ?
एक द्रव्य की अपेक्षा वे जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्य काल तक होते हैं । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमत: सर्वकाल में होते हैं । इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों के काल का भी प्रतिपादन करना चाहिए ।
६. कालकृत अंतर
भाव
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नैगम और व्यवहार नय-सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्यों में कालकृत अन्तर एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्येय काल का होता है । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा उनमें कालकृत अन्तर नहीं होता ।
७. भाग
नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई सेसदव्वाणं'''' नियमा असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा । नेगमववहाराणं पुविदव्वाई सेसदव्वाणं असंखेज्जइभागे होज्जा । ""एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि । ( अनु १२८ ) नैगम और व्यवहार नय-सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य नियमतः शेष द्रव्यों के असंख्येय भागों में होते हैं । अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य शेष द्रव्यों के असंख्यातवें भाग में होते हैं ।
८. भाव
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गम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं .......नियमा साइपारिणामिए भावे होज्जा । एवं दोणि वि ।
( अनु १२९ ) नैगम और व्यवहार नय-सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य
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