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स्पर्शना
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गम और व्यवहार नयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य हैं या नहीं ? वे नियमतः हैं ।
२. द्रव्यप्रमाण
गम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई कि संखेज्जाई ? असंखेज्जाई ? अनंताई ? नो संखेज्जाई नो असंखेज्जाई, अणताई । एवं दोणि वि । ( अनु १२३ )
नैगम और व्यवहार नय-सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य संख्येय हैं ? असंख्येय हैं ? या अनन्त हैं ? वे संख्येय नहीं हैं, असंख्येय नहीं हैं, अनन्त हैं ।
इस प्रकार अनानुपूर्वी द्रव्य और अवक्तव्य द्रव्य भी अनन्त हैं।
असंख्येयप्रदेशात्मके च लोकेऽनन्तानामानुपूर्व्यादिद्रव्याणां सूक्ष्मपरिणामयुक्तत्वादवस्थानं भावनीयमिति । ( अनुहावृ पृ ३४ ) सूक्ष्म परिणति के कारण अनन्त आनुपूर्वी द्रव्य भी असंख्य - प्रदेशात्मक लोक में समा जाते हैं । ३. क्षेत्र
नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई लोगस्स कति भागे होज्जा ? ... एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, सव्वलोए वा होज्जा । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा ।
गम-ववहाराणं अापुव्विदव्वाई एगदव्वं पडुच्च लोगस्स नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो सव्वलोए होज्जा । नाणादव्वाई पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा । एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि । ( अनु १२४ ) नगम और व्यवहार नय- सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग में हैं ?
आनुपूर्वी द्रव्य एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातव भाग में हैं, असंख्यातवें भाग में हैं, संख्येय भागों में हैं, असंख्येय भागों में हैं अथवा समूचे लोक में हैं | अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समूचे लोक में
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नैगम और व्यवहार नय-सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य - एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग में नहीं हैं, असंख्यातवें भाग में हैं, संख्येय भागों में नहीं हैं, असंख्येय
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आनुपूर्वी
भागों में नहीं हैं और समूचे लोक में नहीं हैं । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समूचे लोक में हैं । इसी प्रकार अवक्तव्य द्रव्यों का प्रतिपादन करना चाहिए । सव्वलोए वा होज्ज त्ति यदुक्तं तत्राचित्तमहासमयावस्थायी स्कन्धः सर्वलोकव्यापक: सकललोकप्रमाणोऽवसेयः । (अनुहावृ पृ ३४) स्वाभाविक परिणमन से होने वाला अचित्त महास्कंध संपूर्ण लोक में व्याप्त हो जाता है । उसका अवस्थान एक समय तक रहता है। उसकी अपेक्षा एक द्रव्य को सर्वलोकव्यापी कहा गया है। -
यस्मादेकस्मिन्ना काशप्रदेशे सूक्ष्मपरिणामपरिणतान्यनन्तान्यानुपूर्वीद्रव्याणि विद्यन्त इति भावना । अनानुपूर्वी - अवक्तव्यकद्रव्ये तु एकं द्रव्यं प्रतीत्या संख्येयभाग एव वर्त्तन्ते, न शेषभागेषु । यस्मात्परमाणु रेक प्रदेशावगाढ एव भवति, अवक्तव्यकं त्वेकप्रदेशावगाढं द्विप्रदेशावगाढं ( अनुहावृ पृ ३५)
च ।
एक-एक आकाशप्रदेश में अनंत आनुपूर्वी द्रव्य विद्यमान हैं । इसका हेतु है - पुद्गल द्रव्य की सूक्ष्म परिणति ।
अनानुपूर्वी द्रव्य अथवा अवक्तव्य द्रव्य लोक के असंख्यातवें भाग में ही अवस्थित होते हैं, क्योंकि परमाणु एक प्रदेश का ही अवगाहन करता है । अवक्तव्य द्रव्य ( द्विदेशी स्कंध ) एक प्रदेश का भी अवगाहन कर सकता है और दो प्रदेशों का भी अवगाहन कर सकता है । ४. स्पर्शना
नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागं फुसंति ? ... एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागं वासंति, असंखेज्जइभाग वा कुसंति, संखेज्जे भागे वा फुसंति, असंखेज्जे भागे वा फुसंति, सव्वलोगं वा संति । नादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसति ।
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नेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाणं पुच्छा । एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागं फुसंति, असंखेज्जइभागं फुसंति, नो संखेज्जे भागे फुसंति, नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नो सव्वलोगं फुसंति । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं संति । एवं अवत्सव्वगदव्वाणि वि भाणियव्वाणि । ( अनु १२५ ) नैगम और व्यवहार नय-सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग का स्पर्श करते हैं ?
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