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अल्पबहुत्व और उसका हेतु
नियमतः सादि पारिणामिक भाव प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य भी जानना चाहिए ।
में होते हैं । इसी द्रव्यों के भाव को
९. अल्पबहुत्व और उसका हेतु
'सव्वत्थोवाई नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाई दव्वट्टयाए, अणाणुपुव्विदव्वाइं दव्वट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्विदव्वाइं दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणाई । पएसट्टयाए - सव्वत्थोवाई नेगम-ववहाराणं अापुव्विदव्वाई अपएसट्टयाए, अवत्तव्वगदव्वाई पएसट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्विदव्वाई पट्टयाए अनंतगुणाई । दव्वटुपए सट्टयाए - सव्वत्थोवाई नेगमववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाइं दव्वट्टयाए, अणाणुपुव्विदव्वाइं दट्टयाए अपएसट्टयाए विसेसाहियाई, अवत्तव्वगदव्वाइं पट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्विदव्वाई दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणाई, ताइं चैव परसट्टयाए अनंतगुणाई ।
( अनु १३० )
नैगम और व्यवहार नय-सम्मत अवक्तव्य द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा सबसे कम हैं, अनानुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा अवक्तव्य द्रव्यों से विशेषाधिक हैं, आनुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्यों से असंख्येय गुण हैं ।
प्रदेशार्थ की अपेक्षा - नैगम और व्यवहार नय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य अप्रदेशार्थ की अपेक्षा सबसे कम हैं । अवक्तव्य द्रव्य प्रदेशार्थ की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्यों
विशेषाधिक हैं । आनुपूर्वी द्रव्य प्रदेशार्थ की अपेक्षा अवक्तव्य द्रव्यों से अनन्त गुण हैं ।
द्रव्यार्थ और प्रदेशार्थ की अपेक्षा - नैगम और व्यवहार नय सम्मत अवक्तव्य द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा सबसे कम हैं, अनानुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ और अप्रदेशार्थ की अपेक्षा अवक्तव्य द्रव्यों से विशेषाधिक हैं । अवक्तव्य द्रव्य प्रदेशार्थं की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्यों से विशेषाधिक हैं। आनुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा अवक्तव्य द्रव्यों से असंख्येय गुण हैं, प्रदेशार्थ की अपेक्षा वे ही अनन्त गुण हैं।
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आनुपूर्वी
द्रव्यार्थता की विवक्षा में एक-एक आनुपूर्वी द्रव्य की गणना होती है । प्रदेशार्थता की विवक्षा में प्रदेशों की गणना होती है । द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता की विवक्षा में द्रव्य और प्रदेश दोनों की गणना होती है ।
अवक्तव्वगदव्वा दव्वतो सव्वत्थोवा, कहं ? उच्यते; संघातभेदा उप्पत्तिहेतु अप्पत्तणतो । तेहितो अणाणुपुव्विदवा विसेसाहिया, कहं ? उच्यते, बहुतरासयउप्पत्तिहेतुत्तणतो । तेहितो आणुपुव्विदव्वा संखेज्जगुणा, कहं ? उच्यते, तिगादि एगपदेसुत्तरवुढिदव्वठाण बहुत्तणतो संघातभेददव्वबहुत्तणतो, एत्थ भावणविही इमा - एगदुतिचतुपदेसे य ठविता १-२-३-४, एत्थ संघातभेदयो पंच अत्तव्वगा दव्वा भवंति । दस अणाणुपुव्विदव्वा भेदतो भवंति । संघाततो वा एगकाले तिन्नि आणुपुव्विदव्वा भवंति । क्रमेण वा एगदुगादिसंजोगभेदतो एत्थ चउदस आणुपुव्विदव्वा भवति । ( अनुचू २६ ) अवक्तव्यक द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा सबसे अल्प हैं । इसका हेतु यह है - द्विप्रदेशी स्कन्धों को संघात और भेद के निमित्त कम मिलते हैं । इसलिए ये सबसे कम होते हैं। अनानुपूर्वी द्रव्य इनकी अपेक्षा विशेषाधिक होते हैं । इसका हेतु यह है कि परमाणु बहुतर द्रव्यों की उत्पत्ति में निमित्त बनते हैं । आनुपूर्वी द्रव्य इनसे असंख्य गुणा अधिक होते हैं । इसका हेतु है द्रव्य की प्रचुरता । तीन प्रदेश से आगे एक - एक प्रदेश बढ़ाते-बढ़ाते अनन्त प्रदेश तक चले जाते हैं । इस प्रकार इनके स्थान बहुत बन जाते हैं । इन्हें संघात और भेद के निमित्त भी बहुत मिलते हैं, इसलिए ये सबसे अधिक हैं। चूर्णिकार ने इसे स्थापना के द्वारा समझाया है ।
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कल्पना करें, चार द्रव्य हैं - एकप्रदेशी यावत् चतुष्प्र देशी - १ अनानुपूर्वी द्रव्य-उपर्युक्त द्रव्यों के भेद से अनानुपूर्वी द्रव्य दस बनेंगे ।
अवक्तव्यक द्रव्य - इन्हीं द्रव्यों को यदि संघात और भेद से स्थापित किया जाए तो अवक्तव्यक द्रव्य पांच बनेंगे ।
दव्या गाणे पुग्गलदव्वेसु जधासंभवतो पदेसगुणपज्जायाध । रया जा सा दव्वट्टता भण्णति, पदेसट्टया पुण आनुपूर्वी द्रव्य - इन्हीं द्रव्यों के विविध प्रकार के संघात - तेसु चैव दव्वेसु प्रतिपदेसं गुणपज्जायाधारया जा सा भेदों से आठ विकल्प करने पर आनुपूर्वी पदेसट्टया, उभतरूवा उभतट्ठया ।
( अनुचू पृ २६ )
द्रव्य चौदह बनेंगे ।
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