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आगम
आगम वाचना
वि अत्थस्स वि नो अत्तागमे, नो अणंतरागमे, परंपरागमे। शास्त्र के प्रकार
(अनु ५५१) .
अप्पक्खरं महत्थं महक्खरऽप्पत्थ दोसुऽवि महत्थं।। आगम के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं-आत्मागम,
दोसुऽवि अप्पं च तहा भणि सत्थं चउविगप्पं ।। अनन्तरागम और परम्परागम । तीर्थंकरों के लिए अर्थ आत्मागम है। गणधरों के
सामायारी ओहे नायज्झयणा य दिट्टिवाओ य । लिए सूत्र आत्मागम और अर्थ अनन्तरागम है। गणधर
लोइअकप्पासाई अणुक्कमा कारगा चउरो।। के शिष्यों के लिए सूत्र अनन्तरागम और अर्थ परम्परागम
(ओभा ११,१२)
शास्त्र के चार प्रकार हैंउसके पश्चात् सूत्र और अर्थ दोनों ही न आत्मागम १. अल्प अक्षर महान् अर्थ --जैसे ओघनिर्यक्ति । हैं, न अनन्तरागम हैं, किन्तु परम्परागम हैं।
२ महान् अक्षर अल्प अर्थ-जैसे ज्ञातधर्मकथा । अविवृतमत्थतो मुकुलकप्पं सुत्तं । तदेव हि विवेचितं ३. महान् अक्षर महान् अर्थ-जैसे दृष्टिवाद । समुत्फुल्लकमलकल्पं अत्थ इति ।
४. अल्प अक्षर अल्प अर्थ-जैसे कासिक आदि ' (आवचू १ पृ १०७,१०८)
लौकिक शास्त्र। ____ अर्थ से अविवेचित सूत्र मुकूल -अर्धविकसित कलिका के समान होता है। वही सूत्र अर्य से विवेचित होकर
६. आगम वाचना । विकसित कमल के समान हो जाता है।
आचार्य भद्रबाहु : पाटलिपुत्रीय वाचना आगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - लोइए लोगुत्तरिए य।
बारस वरिसो दुक्कालो उवट्टितो, (अनु ५४७)
संजता इतो इतो य समुद्दतीरे अच्छित्ता पुण रवि पाडलिपुत्ते आगम के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं-लौकिक और
मिलिता। तेसि अण्णस्स उद्देसओ अण्णस्स खंड । एवं लोकोत्तर।
संघाडितेहिं एक्कारस अंगाणि संघातिताणि, दिद्विवादो लौकिक आगम
नत्थि । लोइए आगमे ---जण्णं इमं अण्णाणिएहि मिच्छदि
नेपालवत्तणीए य भद्दबाहुस्सामी अच्छंति चोद्दसपुवी। ट्ठीहि सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं, तं जहा- भारहं, रामायणं,
तेसि संघेणं पत्थवितो संघाडओ दिट्ठिवादं वाएहित्ति । हंभीमासुरुत्तं, कोडिल्लयं, घोडमूह, सगभद्दियाओ,
गतो। निवेदितं संघकज्जं तं । ते भणंति -- दुक्कालकप्पासियं, नागसुहुमं, कणगसत्तरी, वेसियं, वइसेसियं,
निमित्तं महापाणं ण पविट्ठो मि, इयाणि पविट्ठो मि, तो बुद्धवयणं, काविलं, लोगायतं, सद्वितंतं, माढरं, पुराणं,
न जाति वायणं दातुं । पडिनियत्तेहिं संघस्स अक्खातं । वागरणं, नाडगादि। अहवा-बावत्तरिकलाओ चत्तारि
तेहि अण्णोवि संघाडओ विसज्जितो-जो संघस्स आणं वेया संगोवंगा।
(अनु ५४८)
अतिक्कमति तस्स को डंडो? ते गता। कहितं। तो ___ अजानी, मिथ्यादृष्टि और स्वच्छंद बुद्धि-मति द्वारा विरचित आगम लौकिक हैं। जैसे—महाभारत, रामायण,
अक्खाइ-उग्घाडेज्जइ । ते भणंति-मा उग्घाडेह, पेसेह भंभी, आसुरोक्त, कौटिल्य अर्थशास्त्र, घोटकमुख, शक
मेहावी । सत्त पाडिपुच्छगाणि देमि-१. भिक्खायरियाए भद्रिका, कासिक, नागसूक्ष्म, कनकसप्तति (सांख्य
आगतो, २. कालवेलाए, ३. सण्णाए आगतो, ४. वेयाकारिका), वैशिक (कामशास्त्र), वैशेषिक, बुद्धवचन,
लियाए, ५-७ आवस्सए पडिपुच्छा तिण्णि । कापिल, लोकायत, षष्टितन्त्र, माठर, पुराण, व्याकरण,
ताहे थूलभद्दसामिप्पमुक्खाणि पंच मेहावीणं सताणि नाटक आदि । अथवा बहत्तर कलाएं और अंग-उपांग गयाणि । ते य पपढिता, मासेण एक्केण दोहिं तिहिंति सहित चार वेद-ये लौकिक आगम हैं।
सव्वे ओसरिता, न तरंति पाडिपुच्छएणं पढितुं । लोकोत्तर आगम
थूलभद्दसामी ठितो। थोवावसेसे महापाणे पुच्छितो-न लोगुत्तरिए आगमे -जण्णं इमं अरहतेहिं भगवंतेहिं हु किलमसि ? न किलंमामि । खमाहि कंचि कालं, तो .."पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं..। (अनु ५४९)
दिवसं सव्वं वायणा होहिति । पुच्छति-किं पढितं ? अर्हतों द्वारा प्रणीत द्वादशांग गणिपिटक लोकोत्तर केत्तियं वा अच्छति ? आयरिया भणंति-अद्रासीति आगम है।
सुत्ताणि सिद्धत्थकेण, मंदरेण य उपमाणं । भणिओ य
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