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आगम के प्रकार
आगम
शेष आगमनिर्माण की निषद्याएं अनियत हैं । गणधर करते हैं। उससे सूत्र का प्रवर्तन होता है। उन निषद्याओं से प्रश्न पूछकर किसी एक सूत्र का निर्माण गणधरदेवा हि मूलभूतमाचारादिकं श्रुतमुपरचयन्ति, करते हैं, जैसा भगवान् बतलाते हैं।
तेषामेव सर्वोत्कृष्टश्रुतलब्धिसम्पन्नतया तद्रचयितुमीशजदा य गणहरा सव्वे पव्वजिता ताहे किर एगनि- त्वात् ।
(नन्दीमत् प २०३) सेज्जाए एगारस अंगाणि, चोद्दसहिं चोद्दस पुवाणि । गणधरों में सर्वोत्कृष्ट श्रुतलब्धि होती है, उसी एवं ता भगवता अत्थो कहितो, ताहे भगवंतो एगपासे से वे मूलभूत आचार आदि आगमों की रचना करने में सुत्तं करेति, तं अक्खरेहिं पदेहिं वंजणेहिं समं । समर्थ होते हैं।
(आवचू १ पृ ३३७) अर्हत्प्रोक्तं गणधरदृब्धं प्रत्येकबुद्धदृब्धं च । गणधर प्रवजित हए। उन्होंने एक निषद्या में
स्थविरग्रथितं च तथा प्रमाणभूतं त्रिधा सूत्रम् ।। आचारांग आदि ग्यारह अंगों को तथा चौदह निषद्याओं
(ओनिवृ प ३) में चौदह पूर्वो को ग्रहण किया। अर्हत् महावीर ने अर्थ- अर्हतों द्वारा प्रतिपादित, गणधरों द्वारा सूत्रित, वाचना दी और गणधरों ने एक साथ उसे वर्ण, पद प्रत्येकबुद्ध और (पूर्वधर) स्थविरों द्वारा रचित आगमों और व्यं जन से परिपूर्ण सूत्र रूप में गुम्फित किया।
--सूत्रागम, अर्थागम और तदुभयागम को प्रमाण माना गौतमस्वामिना निषद्यात्रयेण चतुर्दशपूर्वाणि गृही- गया है। तानि । "भगवांश्चाचष्टे-उप्पण्णे इ वा विगमे इ वा
४. आगम की भाषा और निरूपण शैली धुवे इ वा-एता एव तिस्रो निषद्याः । आसामेव सकाशाद्
सर्वमपि हि गणभृतां 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सदिति' प्रतीतिरुपजायते,
प्रवचनमर्द्धमागधिकभाषात्मकम् , अन्यथा सत्ताऽयोगात । ततश्च ते पूर्वभवभावितमतयो
अर्द्ध मागधिकभाषया तीर्थकृतां देशनाप्रवृत्तेः। द्वादशाङ्गमुपरचयन्ति । (आवहाव १ पृ १८५)
(नन्दीमवृ प ८३) गणधर गौतम ने तीन निषद्याओं से चौदह पूर्वो को
(भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ ।) ग्रहण किया।
(समवाओ ३४।२२) भगवान् ने कहा--"उप्पण्णे इ वा, विगमे इ वा,
सारा प्रवचन (आगम) अर्द्धमागधी भाषा में निबद्ध धुवे इ वा'-.-ये ही तीन निषद्याएं हैं। इन्हीं के आधार
___ है, क्योंकि तीर्थंकर अर्द्धमागधी भाषा में धर्मदेशना देते हैं।
हा पर गणधरों को 'सत् उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से युक्त है'-----
एएहिं दिट्ठिवाए परूवणा सुत्त-अत्थकहणाए। इसकी प्रतीति होती है। तत्पश्चात् वे द्वादशांग की रचना
___इह पुण अणभुवगमो अहिगारो तीहिं ओसन्नं ॥ करते हैं। उनकी बुद्धि पूर्वजन्म में प्राप्त ज्ञान से भावित
(विभा २२७५) होती है।
दृष्टिवाद में सूत्र और अर्थ का निरूपण नैगम आदि ___ गणभृतः सर्वेऽपि तथाकल्पत्वाद् भगवदुपदिष्टं
बम सात नयों से होता है। कालिक श्रुत में सब नयों के उप्पन्ने इ वेत्यादि मातृकापदत्रयमधिगम्य सूत्रतः सकल
द्वारा व्याख्या आवश्यक नहीं है। श्रोता. के आधार पर मपि प्रवचनं दृब्धवन्तः ।
(नन्दीमव प ४८)
वहां अर्थ-निरूपण प्रायः नंगम, संग्रह, व्यवहार इन
वहा अथ-निरूपण प्रार अहंतों द्वारा उपदिष्ट तीन मातकापदों-.-.'उप्पन्ने तीन नयों से होता है। इ वा, विगमे इ वा, वे इ वा' की अवधारणा कर गण- ५. आगम के प्रकार धर समग्र प्रवचन का सूत्र रूप म गुफन करत ह' एसा आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्तागमे अत्थागमे करना गणधरों का आचार है।
तदुभयागमे।
' (अनु ५५०) ३. आगम रचनाकार
___ आगम के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं -सूत्रागम, अर्थागम अत्थं भासति अरहा, सुत्तं गंथंति गणधरा णिउणं । और तदुभयागम । सासणस्स हितढाए, ततो सुत्तं पवत्तती। आगमे तिविहे पण्णत्तं, तं जहा- अत्तागमे अणंतरागमे
(आवनि ९२) परंपरागमे । तित्थगराणं अत्थस्स अत्तागमे । गणहराण अर्हत् अर्थ का प्ररूपण करते हैं। गणधर शासन सुत्तस्स अत्तागमे, अत्थस्स अणंतरागमे । गणहरसीसाणं हित के लिए निपुणता के साथ उसका सूत्ररूप में गुंफन सुत्तस्स अणंतरागमे, अत्थस्स परंपरागमे । तेण परं सुत्तस्स
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