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आगम
आगमरचना और त्रिपदी
तप ज्योति है, जीव ज्योति-स्थान है। योग (मन,
६. आगमवाचना वचन और काया की सत् प्रवत्ति) घी डालने की
० आचार्य भद्रबाहु : पाटलिपुत्रीय वाचना। करछियां हैं। शरीर अग्नि जलाने के कण्डे हैं। कर्म इंधन है। संयम की प्रवृत्ति शांति-पाठ है । इस प्रकार मैं
• आचार्य स्कन्दिल : माथुरी वाचना ऋषि-प्रशस्त (अहिंसक) होम करता हूं।
* आगम वाचना की अहंता (द्र. शिष्य)
* आगमग्रहण-विधि (द्र. शिक्षा) यज्ञ का अधिकारी
* आगम व्याख्या के चार विभाग (द्र. अनुयोग) छज्जीवकाए असमारभंता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा।
आगमः ज्ञानगुणप्रमाण का भेद (द्र. ज्ञान) परिगई इथिओ माणमायं. एयं परिन्नाय चरंति दंता॥
प्रवचन का अर्थ-आगम (द्र. प्रवचन)
(उ १२॥४१) * आगम का मूल : विनय (द्र. विनय) मन और इन्द्रियों का दमन करने वाले छह जीवनिकाय की हिंसा नहीं करते, असत्य और चौर्य का १. आगम का निर्वचन और परिभाषा सेवन नहीं करते, परिग्रह, स्त्री, मान और माया का आगमो णाम अत्तवयण। (आवचू १ पृ २८) परित्याग करके विचरण करते हैं, वे ही यज्ञ के अधिकारी आ-अभिविधिना सकलश्रुतविषयव्याप्तिरूपेण होते हैं।
मर्यादया वा यथावस्थितप्ररूपणया गम्यन्ते-परिच्छिद्यसुसंवुडो पंचहिं संवरेहिं, इह जीवियं अणवक्खमाणो। न्तेऽर्था येन स आगमः । (नन्दीमवृ प २४९) वोसट्ठकाओ सुइचत्तदेहो, महाजय जयई जन्नसिढें ॥ आप्तवचन आगम कहलाता है।
(उ १२।४२) समस्त श्रुतगत विषयों से जो व्याप्त है, मर्यादित है, जो पांच संवरों से सुसंवत होता है, जो असंयम ___यथार्थ प्ररूपणा के कारण जिससे अर्थ जाने जाते हैं, वह जीवन की इच्छा नहीं करता, जो काय का व्युत्सर्ग आगम है । (केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, करता है, जो शुचि है और जो देह का त्याग करता है, चतुर्दशपूर्वी, दशपूर्वी और भिन्नदशपूर्वी - इनके द्वारा वही यज्ञ का अधिकारी है और वही यज्ञों में श्रेष्ठ रचित शास्त्र ही सूत्र-आगम हैं।) महायज्ञ करता है।
२. आगम-रचना और त्रिपदी आगम-यथार्थ ज्ञाता और यथार्थ वक्ता
आगमरचना के संदर्भ में तीन अभिमत प्राप्त हैंआगम कहलाते हैं । उपचार से उनके
तीहिं निसेज्जाहिं चोद्दसपुव्वाणि उप्पादिताणि । वचन को भी आगम कहा जाता
किं च वागरेति भगवं! उप्पन्ने विगते धुवेएताओ तिन्नि निसेज्जाओ। उप्पन्नेत्ति जे उप्पन्निमा
भावा ते उवागच्छति । विगतेत्ति जे विगतिस्सभावा ते १. आगम का निर्वचन और परिभाषा
विगच्छति । धुवा जे अविणासधम्मिणो। सेसाणं अणि२. आगम-रचना और त्रिपदी
यता णिमेज्जा । ते य ताणि पुच्छिऊण एगतमं ते सुत्तं * आगम-रचना और गणधर (द्र. गणधर)
करेति, जारिसं जहा भणितं । (आवचू १ पृ ३७०) ३. आगम रचनाकार
गणधर गौतम ने तीन निषद्याओं (प्रणिपत्य पृच्छा ४. आगम की भाषा और निरूपण शैली
निषद्या) से महावीरवाणी को ग्रहण कर चौदह पूर्वो का ५. आगम के प्रकार
निर्माण किया। प्रश्न है-भगवान महावीर ने क्या . लौकिक आगम
व्याकरण किया ? भगवान ने तीन निषद्याओं में त्रिपदी • लोकोत्तर आगम
(तीन पदों) का व्याकरण किया--- + लोकोत्तर आगम के प्रकार (द. अंगप्रविष्ट,
१. उत्पन्न-उत्पन्न होने वाले पर्याय । अंगबाह्य)
२. विगत-विनष्ट होने वाले पर्याय । • शास्त्र के प्रकार
३. ध्रुव-ध्रुव रहने वाला द्रव्य ।
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