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जैन आगम : वनस्पति कोश
अन्य भाषाओं में नाम
आभाषट्पदमोदिनी ये सब बबूर के संस्कृत नाम हैं। हि०-बथुआ. रक्तबथुआ। बं०-वेतुया वेतोशाक ।
(भाव०नि० वटादिवर्ग पृ० ५२६) म०-चकवत, चाकवत। गौ०-वेतोशाक । गु०-टांको, अन्य भाषाओं में नामबथवों, बाथरो, चीलो। त०-परुपुकिरै। क०-विलिय हि०-बबूर, बबूल, कीकर। बं०-बाबला। चिल्लीके फा०-मुसेलेसा सरमक। अं-White Goose म०-वाभूल । गु०-बाबल । क०-पुलई । ते०- नल्लतुम्म। foot (ह्वाइट गूज फूट) ले०-PurpleGoose Foot (पर्पलगूज ता०-करूबेलमरम। फा०-मुगिलाँ। अ०फूट) ChenapodiumAlbum (चिनापोडियम अल्वम्) | C. अमुगिलाँ। ले०-Acacia Arabica Willd (अकेसिया Atripalisis (चिनापाड्यमएट्रीपालाइसिस)।
अरेबिका) Fam. Leguminosae (लेग्युमिनोसी)। उत्पत्ति स्थान-यह प्रायः समस्त भारत में तथा हिमाचल में, ४.५ फुट की ऊंचाई तक खेतों में बहलता से बिना बोए पैदा होता है।
विवरण-शाक वर्ग एवं अपने वास्तूक कुल का यह एक प्रधान पत्रशाक है। इसके १ से ३ फीट ऊंचे क्षुप के पत्र आकार में छोटे, बड़े, त्रिकोणाकार, नुकीले, कई प्रकार के कटे हुए स्थूल, स्निग्ध, हरित वर्ण के ४ से ६ इंच लंबे होते हैं। इसकी डंडियों के अंत में हरिताभ बारीक पुष्प तथा बीजकोषों के गुच्छे गोलाकार लगते हैं। बीज कुलफा के बीज जैसे, छोटे-छोटे काले रंग के होते हैं। शीतकाल में पुष्प और फल आते हैं। इसके पौधे
बबूर 1 कार्तिक मास के अंत तक जौ, गेहूं, चना, मटर के खेतों में स्वयमेव पैदा हो जाते हैं। पत्रशाकों में यह एक विशेष
उत्पत्ति स्थान-यह सिंध तथा डेक्कन का आदिवासी
होते हुए भी अब सभी स्थानों में पाया जाता है। महत्त्वपूर्ण, अतीव स्वास्थ्यप्रद शाक है।
विवरण-इसका वृक्ष मध्यमाकार का, कंटक युक्त, (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ४ पृ० ४२६)
होता है। छाल गहरे भूरे या काले रंग की एवं लंबाई में
फटी हुई होती है। पत्ते संयुक्त, उपपक्ष ४ से ६ जोड़े, वत्थुल
२.५ से.मी. लंबे; पत्रक १० से २५ जोड़े, ३ से ६४१.२ से वत्थुल (
प० १/३७/२ २ मि.मि. बड़े रेखाकार होते हैं। पुष्प चमकीले पीले, गोल विमर्श-प्रस्तुत आगम में वत्थुल शब्द (प० एवं मधुरगन्धि होते हैं। फली ३ से ६ इंच लंबी, ०.५ इंच १/३७/२) और (प० १/४४/१) में आया है। १/३७/२ चौड़ी, माला की तरह बीच-बीच में सिकुडी हुई, टेढ़ी, में गुच्छवर्ग के अन्तर्गत है और १/४४/१ में हरित वर्ग मृदुरोमश एवं ८ से १२ बीजों से युक्त होती है। कांटे सीधे, के अन्तर्गत है। वत्थुल शब्द दो बार आने से १/३७/२ नुकीले तथा पर्णवृन्त के नीचे जोड़ी में आते हैं। के पाठान्तर में बबुल शब्द है उसे ग्रहण कर रहे हैं। (भाव०नि० वटादिवर्ग० पृ० ५२६)
बबुल (बब्बूल) बबूल, बबूर बबूल के पर्यायवाची नाम
वत्थुसाय बब्बूल: किङ्किरातः स्यात्, किङ्किराट: सपीतकः। स एवं कथित स्तज्ज्ञैराभाषट्पदमोदिनी।।३६ ।। __ वत्थुसाय (वास्तुशाक) बथुआ का साग
उवा० १/२६ बब्बूल, किङ्किरात, किङ्किराट, सपीतक तथा
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