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जैन आगम : वनस्पति कोश
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अन्य भाषाओं में नाम
हि०-बड, वरगद | बं०-वट,बडगाछ । म०-दड। क०-आल, आलदमारा। ते०-मारि। गु०-वड़। फा०-दरख्तेरीश। अ०-कविरूल अश्जार। अंo-Banyan Tree (बनियन ट्री) लेo-Ficus bengalensis Linn (फाइकस् बेंगालेन्सिस्) Fam. Moraceae (मोरेसी)।
वणलया वणलया (वनलता) निश्रेणिका
ओ० ११ जीवा० ३/५८४ प० १/३६/१ ज०२/११ वनवल्लरी। स्त्री० वनस्पति० निश्रेणिका। रस नसणारी रानवेल ।रस को नष्ट करने वाली वनबेल।
(आयुर्वेदिक शब्द कोश पृ० १२५८)
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ARRIA
RSHAN HTRA
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ANANDAवदाकुर
विमर्श-निघंटुओं तथा आयुर्वेदीय शब्द कोशों में वनलता शब्द नहीं मिला है। वनवलरी शब्द मिलता है। वल्लरी का अर्थ बेल होता है। वनवलरी को मराठी भाषा में रानवेल (जंगलीबेल) कहते हैं। इसीलिए वनलता के स्थान पर वनवल्लरी का अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। निश्रेणिका के पर्यायवाची नाम
निःश्रेणिका श्रेणिका च, नीरसा वनवलरी। निः श्रेणिका नीरसोष्णा, पशूनामबलप्रदा।।१३०।।
निःश्रेणिका, श्रेणिका, नीरसा तथा वनवल्लरी ये सब निःश्रेणिका के नाम हैं। निःश्रेणिका रस रहित तथा उष्ण है और यह पशुओं के बल को नष्ट करने वाली है। म०-निरोषो। (कोंकणे प्रसिद्धा)।
__(राज०नि० ८/१३० पृ० २५८)
मूल
पत्र
कटाफल
उत्पत्ति स्थान-यह सब प्रान्तों में उत्पन्न होता है। ग्राम के पास लोग इसको पवित्र जान कर लगाते हैं। हिमालय के जंगल और दक्खन के पहाड़ियों पर यह जंगली उत्पन्न होता है।
विवरण-इसका वक्ष बहत विशाल और शाखायें फली हुई प्रायः भूमि की ओर नत हो जाती है। पत्ते लंबे चौड़े और मोटे होते हैं। फल छोटे-छोटे झरबेर के समान कच्ची अवस्था में हरे रंग के और पकने पर लाल हो जाते हैं। शाखाओं से लाल तथा पीले रंग के अंकुर निकल कर भूमि की ओर बढ़ते हैं। इसको वटजटा वरोह या बड़ की दाढ़ी कहते हैं। यह जटा बढ़ते-बढ़ते पृथ्वी में घुस जाती है और खंभे के समान दीखाई देती हैं।
(भाव०नि० वटादिवर्ग० पृ० ५१३)
वत्थुल वत्थुल (वस्तुक) बथुआ, रक्त बथुआ
भ० २०/२० प० १/३७/२/१/४४/१ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में वत्थुल शब्द हरितवर्ग के अन्तर्गत है। इसके पत्रों का शाक होता है। वस्त वस्तुक, वास्तुक, वास्तूक शब्द बथुआ के हैं। निघंटुओं में वास्तुक शब्द अधिक मिलता है । वस्तुक के पर्यायवाची नाम दे रहे हैं। वस्तुक के पर्यायवाची नाम
वास्तुकं वास्तु वास्तूकं, वस्तुकं हिलमोचिका। शाकराजो राजशाकश्चक्रवर्तिश्च कीर्तितः ।।१२२ ।।
वास्तुक, वास्तु, वास्तूक. वस्तुक, हिलमोचिका, शाकराज, राजशाक तथा चक्रवर्ति ये सब वास्तूक (बथुआ) के नाम हैं। (राज०नि० ७/१२२ पृ० २१०)
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