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जैन आगम : वनस्पति कोश
अंबाडग
विवरण-इसका बड़ा वृक्ष आम के वृक्ष जैसा ही होता
है। इसी से यह जंगली आम कहलाता है। इसकी शाखाएं अंबाडग (आम्रातक) आमड़ा, अंबाडा
छिटकी हुई, फैली हुई होती हैं। छाल पीपल की छाल जैसी भ०२२।३ प०१॥३६१
सफेदी लिए हुए मटमैली या खाकी रंग की होती है। यह आम्रातक के पर्यायवाची नाम -
सुगंधयुक्त चिकनी या फिसलनी होती है। छाल में से एक आम्रातकः पीतनकः, कपिचताम्लवाटकः।
प्रकार का गोंद, बबूल के गोंद जैसा निकलता है, जो पानी शृङ्गी कपी रसाढ्यश्च, तनुक्षीर: कपिप्रियः॥
में डालने से खूब फूलता है। इसकी लकड़ी खाकी रंग की आम्रातक, पीतनक, कपिचूत, अम्लवाटक, श्रृंगी,
हलकी कच्ची जल्दी टूटने वाली होती है। पत्ते शाखा में बराबर कपी रसाढ्य, तनुक्षीर, कपिप्रिया (धन्व०नि० ५।२३ दोनों ओर, आकार में रामफल के पत्र जैसे किन्तु उनसे कुछ
पृ० २२३)
छोटे और कोमल होते हैं। लम्बाई में २ से ५ इंच तथा चौड़ाई अन्य भाषाओं में नाम -
में १ से ३ इंच होते हैं। फूल वसन्त ऋतु के प्रारम्भ में पत्तों हि०-अम्बाडा, अमड़ा, अमरा, आमड़ा। बं०-आमडा। के झड जाने पर आम के बोर जैसे स्वर्णमंजरी के रूप में लगते म०-अंबाडा, ढोरआंबा, आंवचार। गु०-अंबेडा, अंभेड़ा, हैं। उसी में छोटे-छोटे फल होते हैं। इसके बीज बहुत छोटे अम्बाडो, जंगली आंबो क०-अंवर।ते०-अंबालमु।आमाटम्। होते हैं। प्राय: करौंदे के बीज जैसे ही होते हैं। फूलों की मंजरी अं०-Hogplum (हागप्लम), Wild mango (वाइल्ड झड़ जाने पर फल स्पष्ट हरितवर्ण के दृष्टिगोचर होने लगते हैं। म्यंगो)।ले०-Spondias Mangifera (स्पांडियस् में गिफेरा)। बढ़ते-बढ़ते ये तिगुने करौंदे के समान हो जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु
में पकने पर ये कुछ पीले पड़ जाते हैं और उनके अन्दर जाली बंध जाती है तथा भीतर चार कली के भाग प्रत्यक्ष होते हैं। ये स्वाद में कच्ची कैरी जैसा बहुत खट्टा होता है। इसका अचार, चटनी, लौंजी आदि बनाई जाती है।
(धन्व० वनौ० विशे० भाग १ पृ० २३२.२३३)
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अंबिलसाय अंबिलसाय (अम्लशाक) कोकम
भ० २०/२० प० ११४४।२ अम्लशाक के पर्यायवाची नाम -
वृक्षाम्ल मम्लशाक स्यान्जुक्राम्लं तित्तिडीफलम् ।
शाकाम्लमम्लपूरं च, पूराम्लं रक्तपूरकम् ॥१२२॥ अनातक (अम्बाडा
वृक्षाम्ल, अम्लशाक, चुक्राम्ल, तित्तिडीफल,शाकाम्ल, अम्लपूर, पूराम्ल, रक्तपूरक आदि अट्ठारह नाम वृक्षाम्ल के हैं।
(राज. नि०६।१२२ पृ० १६०) उत्पत्ति स्थान-भारतवर्ष में प्राय: सर्वत्र जंगल प्रदेशों अन्य भाषाओं में नाम - में होता है। कोकंण और कर्णाटक की ओर बहुतायत से पाया हि०-विषांविल, कोकमाम०-अमसूल,कोकम,रतांवि, जाता है। हिमालय की तलहटी में तथा चिनाव नदी के पूर्व में भिरंड, बीरुंड। गु०-कोकम। क०-मुगिंन हुलि। गोवा०ब्रह्मा आदि प्रदेशों में एवं कई जगह बागों में भी लगाया जाता है। ब्रिडाओ।ता०-पुलि, मुर्गलाते०-चिण्ट।गौ०-तैतुलाअं०
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