________________
238
जैन आगम : वनस्पति कोश
सुंगधित होते हैं। फूल तथा फल गुच्छों में आते हैं। उत्पत्ति स्थान-यह बंगाल, बिहार, युक्त प्रान्त, ___ अंगूर, किसमिस, दाख, बड़ी दाख, सब एक ही दक्षिण देश के बांस के वनों में तथा हिमालय में युमना जाति की लताओं के फल हैं। कच्चे, पक्के, बीजहीन, से खासिया पहाड़ तक, प्राय: सर्वत्र उत्पन्न होती है। तथा छोटे-बडे सखे आदि फलों के भेद से यह भिन्न-भिन्न नामों से पुकारे जाते हैं।
___ अफगानिस्तान और फारस आदि देशों के अंगूर अच्छे होते हैं। काश्मीर में किसमिस, मुनक्का, होंसानी और मस्का नामक कई जातियों के अंगूर उत्पन्न होते हैं। औरंगाबाद का अंगूर लाल और स्वादिष्ट होता है। दौलताबाद के अंगूर देश देशान्तरों में भेजे जाते हैं। सब जगह की जलवायु भिन्न होती है। इस कारण प्रत्येक स्थान के फलों में कुछ न कुछ भेद होता है।
(भाव०नि० आम्रादिफलवर्ग०पृ० ५८५,५८६)
पुष्पशाख
मुसंढी मुसंढी ( ) काली मुसली भ०७/६६ जीवा०१/७३
विमर्श-मुसंढी शब्द प्रस्तुत प्रकरण में कंदवर्ग के शब्दों के साथ हैं। इससे लगता है यह कोई कंद का नाम होना चाहिए। निघंटुओं में तथा आयुर्वेद के कोषों में मुसंढी शब्द नहीं मिलता। कंदवर्ग में इसके अधिक निकट मुसली शब्द मिलता है। इसलिए यहां मुसली शब्द ग्रहण किया जा रहा है। नुशली का अर्थ कालीमूसली
मुसली (मुशली) के पर्यायवाची नाम
तालमूली तु विद्वद्भिर्मुशली परिकीर्तिता।।।
विद्वान् लोग तालमूली को ही मुशली कहते हैं। अर्थात् तालमूली, मुशली ये दो नाम कालीमूसली के हैं।
(भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग०पृ०३६१) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-स्याहमूसली, कालीमूशली। गु०-काली मूसली। म०-कालीमूसली। बं०-तालमूली। क०-नेलताल । ते०-नेलतडिगड्डा । ता०-निलधनैका। प०-स्याह मूसली। मा०-काली मूसली। फा०-मुशली स्याह। अ०-मुसली अबियज। ले०-Curculigo orchioides gaertn (कर्युलिगो ऑर्किओइडिस् गार्टे)।
विवरण-काली मूसली तृणजातीय वनौषधि, वर्षा ऋतु में घास अथवा दूसरे वृक्षों की छाया में देखने में आती है । ४ से ५ पत्ते वाले खजूर के वृक्ष की तरह इसका नवीन क्षुप होता है। मूलस्तम्भ सीधा और मोटा होता है। पुरानी चक्राकार पत्रसंधिओं के कारण यह तालवृक्ष के स्कन्ध जैसा दिखलाई देता है। इसकी संधिओं से सूत्राकार परन्तु मांसल उपमूल निकलते रहते हैं और शीर्ष से लगभग ३या ४ पत्ते भूमि के ऊपर निकलते रहते हैं। इसके पत्ते बिना डंठल के खजूर के पत्तों से कुछ पतले, सकरे और प्रासवत् होते हैं। इसकी लम्बाई ६ से १८ इंच तक और चौड़ाई १ से १.५ इंच तक होती है। पुष्पदंड छोटा बीच से निकला हुआ, ऊपर की ओर क्रमशः मोटा और कुछ चिपटा होता है। इसके फूल नलिकाकार, पीले रंग के, दो कतारों में होते है। इसके मूलस्तंभ का चिकित्सा में व्यवहार होता है। यह बाहर से काले भूरे रंग का तथा अंदर से श्वेत होता है। दो वर्ष पुराने क्षुप का कन्द प्रयोग में लाना चाहिए। इसका स्वाद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org