________________
जैन आगम वनस्पति कोश
कुछ कडुआ तथा लबाबदार होता है।
मुसुंढी
मुढी (
काली मुसली भ०२३ / २५०१ / ४८/१ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में मुसुंढी शब्द है । भ० (७/६६) में मुसंढी शब्द है। मुसंढी शब्द कंद वर्ग के शब्दों के साथ है। प्रस्तुत प्रकरण का मुसुंढी शब्द भी कंदवर्ग के शब्दों के साथ है। मुसुंढी शब्द की अपेक्षा मुसंढी शब्द मुली शब्द के अति निकट है इसलिए मुसंढी शब्द की व्याख्या की गई है ।
देखें मुढी शब्द |
(भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ०३६० )
मुढी ( देखें मुसंढी शब्द |
....
मुसुढी
) काली मूसली उत्त०३६/६६
Jain Education International
....
मूलगबीय
मूलगबीय (मूलकबीज) मूली के बीज ५०१ / ४५/२ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में मूलगबीय शब्द ओषधिवर्ग (धान्यवाची शब्दों के साथ है। इसलिए यहां मूलग के साथ बीय शब्द ग्रहण किया गया है। मूलक के पर्यायवाची नाम
मूलकं हरिपर्णं च मृत्तिकाक्षारमेव च ।
नीलकन्दं महाकन्दं, रुचिष्यं हस्तिदन्तकम् ।। ३० ।। हरिपर्ण, मृत्तिकाक्षार, नीलकन्द, महाकन्द, रुचिष्य और हस्तिदन्तक ये पर्याय मूलक के हैं।
( धन्व० नि०४ / ३० पृ० १८७, १८८)
अन्य भाषाओं में नाम
हि० - मूली, मुरई बं० - मूला । म० - मुळा । गु० - मूला । क० - मुलखी । ता०० - मुलंगि । ते० - मुल्लङ्गि । फा० - तुरव, तुर्ब। अ० - फज़ल, हुजल । अंo - Radish (रॅडिश)। ले० - Raphanus Sativus linn (रॅफेनस् सेटाइवस) Fam. Cruciferae (कुर्सीफेरी) ।
उत्पत्ति स्थान- यह सभी प्रान्तों में बोई जाती है।
मूली
विवरण- इसका कंद गाजर के समान पर सफेद होता है। पत्ते नवीन सरसों के पत्तों के समान कुछ सफेद सरसों के फूल के आकार के और फल भी सरसों ही के समान किन्तु उससे कुछ मोटा और लगभग १ से २ इंच लम्बा होता है। बीज सरसों से बड़े होते हैं ।
भावप्रकाशकार इसके दो भेद छोटी मूली(चाणक्यमूली) तथा बड़ीमूली - (नेपालमूलक) लिखते हैं । बड़ी मूली नेपाल इत्यादि की तरफ होती है। इसमें गंध कम होती है। छोटी मूली के भी आकार के अनुसार लम्बी, दीर्घवृत्ताभ एवं शलजमाकार ये ३ भेद होते हैं। (भाव०नि० शाकवर्ग० पृ०६६७)
239
मूलय
मूलय (मूलक) मूली
For Private & Personal Use Only
भ०७/६६ : २३/२ जीवा ०१ / ७३ उत्त०३६ / ६६ देखें मूल शब्द |
****
www.jainelibrary.org