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जैन आगम : वनस्पति कोश
बोर
यह बूटी होती है। अक्षय तृतीया के बाद धूप की तेजी के अनेक शीतल पहाड़ों पर बोया जाता है। भारतवर्ष में बढ जाने पर खेतों में पैदा होती है।
विशेषतः काश्मीर, कुमाऊं, गढ़वाल, महाबलेश्वर, विवरण-पौधा जमीन से लगा हुवा छछलता रहता कांगड़ा, पंजाब, नीलगिरि आदि स्थानों के पहाड़ों में है। पत्ते खुरदरे रेखादार, कटे किनारी के होते हैं। यहां इसके वृक्ष लगाये जाते हैं। अब यह सिन्ध, मध्यभारत के देहाती लोग बोंदरी कहते हैं। यह स्वाद में कडुआ, और दक्षिण तक फैल गया है। काश्मीर और उत्तर पश्चिम कसैला एवं अतिशीतल है। इसका रस लू लगने पर हिमालय में यह कहीं-कहीं ६००० फीट की ऊंचाई पर पिलाया जाता है।
जंगली भी देखा जाता है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ५ पृ०२३५) विवरण-यह फलवर्ग और सेवादि कुल, का एक
सुप्रसिद्ध सुगन्धित और स्वादिष्ट फल है। जिसकी बहुत सी किस्में हैं। इसका पतनशील पातयुक्त छोटा वृक्ष ३० फीट तक ऊंचा होता है। सब नूतन अंग सफेद पतले
रेशम जैसे होते हैं। पात अण्डाकार, ऊपर नोकदार, २ बोर (बदर) सेव
भ०२२/३ से ३ इंच लम्बे, दांतेदार तथा पात के अंत का हिस्सा बदर:-सेवफले कश्चिद् राजनिघंटुः।
सफेद और रोएंदार होता है । वृन्त सामान्य पात से आधा (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०७२३) लम्बा। पुष्प लाल छीटें सहित, सफेद या गलाबी, १से विमर्श-प्रज्ञापना सूत्र १/३६/१,२,३ में जितने २ इंच चौड़े प्रायः गुच्छों में । पुष्प वृन्त १ से १.५ इंच लम्बा शब्द आए हैं वे सब शब्द भगवती सूत्र (२२/३) में हैं। रोएंदार । पुष्पबाह्यकोष नलिका घण्टाकार। पंखुड़ियां केवल बोर शब्द अधिक है। प्रज्ञापना सूत्र १/३६ के शब्द नख युक्त। फल चिकना, गोलाकार, दोनों सिरे बहुबीजक वर्ग के अन्तर्गत है। इससे लगता है बोर शब्द पुष्पबाह्यकोष नलिका के खण्ड से दृढ़ लगा हुआ, २ से भी बहुबीजक है। सामान्यतया बोर शब्द से बदर यानि ३ इंच व्यास का, छोटे वृन्त सह। फल कच्चा होने पर बेर का अर्थ ग्रहण होता है। बेर में बहुबीज नहीं होते हरा, पकने पर हल्का पीला और कुछ भाग लाल । कच्चा इसलिए यहां सेव अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। फल तुरस याने खट्टापन युक्त फीका होता है। पकने पर बदर के पर्यायवाची नाम
इसका स्वाद मीठा और विशेष स्वादिष्ट हो जाता है। मष्टिप्रमाणं बदरं, सेवं सिञ्चतिकाफलं। काश्मीर का सेव बहुत मधुर होता है और काबुल का खट्टा मुष्टिप्रमाण, बदर, सेव, सिञ्चतिकाफल
होता है। ये सेवफल के नाम हैं।
नैसर्गिक उत्पन्न फल बहुत खट्टे, कषैले और (शालि०नि०फलवर्ग०पू०४३२) छोटे होते हैं, वे कच्चे नहीं खाए जाते। उनका उपयोग अन्य भाषाओं में नाम
मुरब्बे में अच्छा होता है। जो अभी खाया जाता है उसकी सं०-महाबदर । हि०-सेव सफरजंग । बं0-सेब। उत्पत्ति अति श्रम से हुई है। जंगल की अनेक अच्छी क०-सूत। सिं०-सूफ। शिमला-पालो, सरहिन्द। अच्छी जातियों को एक दूसरे के साथ कलम कर अनेक अफगानिस्तान-शेव। उ०-सेव। म०-मोठे बोर वर्षों तक बोने पर सेवफल स्वाद बनता है। पाइनी ने सफरचंद | गु०-शेव सफरजन। अ०-तुफाह । फा०-सेव लिखा है कि जंगल की २२ जातियों का शोध किया है। कतल । अ०-Apple (अॅपल) ले०-Pyrus malus (पाइरस उनमें से इस समय मिश्र उपजातियां लगभग २००० मेलस)।
संसार में बोयी जाती है। उत्पत्ति स्थान-मूल योरोप और एशिया के शीतल
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०३८५) पहाड़ी प्रदेश, जैसे-काश्मीर और काबुल । हाल में पृथ्वी
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