________________
जैन आगम : वनस्पति कोश
211
बीयय
सफेद सपक्ष त्रिकोणाकार तथा लगभग १ इंच लम्बे बीज
होते हैं। बीजों को सफेद मरिच भी कहते हैं। इससे गोंद बीयय (बीजक) श्वेत सहिजन
भी निकलता है, जो पहले दुधिया रहता है किन्तु बाद प०१/३८/१
में वायु का संपर्क होने पर ऊपर से गुलाबी या लाल हो बीजकः ।पुं। प्रियालवृक्षे, मातुलुङ्गवृक्षे, श्वेतशिग्रौ।
जाता है। इसकी कच्ची सेमों का साग और अचार बनाते _ विद्यक शब्द सिन्धु पृ०६६०) है। इसकी छाल के रेशों से कागज, चटाई डोरी आदि विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में बीजक शब्द गल्मवर्ग के ।
बनाते हैं। जानवार-विशेष कर ऊंट इसकी टहनियों को अन्तर्गत है। ऊपर बीजक के ३ अर्थ दिए गए हैं। उनमें खाते हैं। श्वेतशिग्र अर्थ ग्रहण कर रहे हैं, क्योंकि प्रियाल और
(भाव०नि० गुडूच्यादि वर्ग०पृ०३४०) मातुलुङ्ग के वृक्ष बड़े होते हैं। श्वेतसहिजन के अर्थ में बीजक शब्द वैद्यकनिघंटु में मिलता है। वह उपलब्ध न होने से बीजक के पर्यायवाची नहीं दे रहे हैं। अन्य भाषाओं में नाम
बीयय कुसुम हि०-सहिजना, सहिजन, सहजन, सहजना, बीयय कुसुम (बीजक कुसुम) पीले पुष्पवाली सैजन, मनगा। बं०-सजिना। म०-शेवगा, शेगटा। कटसरैया
रा०२८ मा०-सहिजनो, सहिंजणो। क०-नुग्गे। ते०-मुनगी देखें बीयग कुसुम शब्द । गु०-से कटो, सरगवो ता०-मोरुहै. मुरिणकै । पं०-सोहजना । मलाo-मुरिण्णा । ब्राह्मी-डोडलों बिन । यूल-सिनोह। फा०-सर्वकोही। अंo-llorse Radish Tree (हार्स रेडिश ट्री) Drum Stick tree (ड्रम स्टिक ट्री)।
बीयरुह ले०-Moringapterygospermagaerin (मोरिङ्गा टेरीगोस्पर्मा
बीयरुह (बीजरुह) शालि षाष्टिक, मूंग आदि गेट) Fam. Moringaceae (मोरिंगेसी)। ।
भ०२३/१ प०१/४८/३ उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के निचले प्रदेशों में
शाल्यादयो बीजरुहाः चेनाव से लेकर अवध तक जंगली रूप में तथा भारत
(हेम० अभिधान चितामणी श्लोक० । १२०१) के प्रायः सभी प्रान्तों में एवं वर्मा में लगाया जाता है।
बीजरुहः ।पुं। शालिधान्यादौ । विवरण-इसका वृक्ष साधारण वृक्षों के समान
(वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०६६१) छोटा, २० से २५ फीट ऊंचा होता है। छाल चिकनी, मोटी, कार्कयुक्त भूरे रंग की एंव लम्बाई में फटी हुई
और लकड़ी कमजोरी होती है। पत्ते संयुक्त प्रायः त्रिपक्षवत् तथा १ से ३ फीट, क्वचिद् ५ फीट तक लम्बे
बोंडइ होते हैं। पत्रक अंडाकार, लट्वाकार, विपरीत एवं करीब
बोंडई (
) बोंदरी १/२ से ३/४ इंच लम्बे होते हैं। कार्तिक महीने से वसंत
प०१/३७/१ ऋतु के आरंभ तक फूलों के गुच्छे टहनियों के अंत में
विमर्श-बोंडई शब्द संस्कृत भाषा का नहीं है दिखाई पड़ते हैं। पुष्प श्वेतवर्ण के तथा मधु की तरह गंध इसलिए निघंटुओं में इसके पर्यायवाची नाम नहीं मिलते। वाले होते हैं । फलियां गोल, त्रिकोणाकार, अंगुलिप्रमाण मध्यप्रदेश के देहाती लोग बोंदरी नाम से पकारते हैं। मोटी, ६ से २० इंच लम्बी, बीजों के बीच-बीच में पतली
उत्पत्ति स्थान-मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में एवं बड़ी-बड़ी खड़ी ६ रेखाओं से युक्त होती है। उनमें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org