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जैन आगम : वनस्पात काश
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___ भंगी भंगी (भंगा) भांग
भ०३/८ प०१/४८/५ भंगा के पर्यायवाची नाम
भङ्गा गआ मातुलानी, मादिनी विजया जया ।२३३।।
भङ्गा, गआ, मातुलानी, मादिनी, विजया, जया ये सब भांग के पर्यायवाची नाम हैं।
(भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग पृ०१४२) विमर्श-भंगा और गंजा दोनों भांग के पर्यायवाची नाम हैं फिर भी गुणधर्म की दृष्टि से दोनों में कुछ भेद
अन्य भाषाओं में नाम
हि०-भांग, भंग, बूटी। बं०-सिद्धि । म०-भांग। पं०-भांग। मा०-भांग गु०-भांग। ते०-गंजायि। ब्रह्मी०-बिन । मा०-बूटी। क०-भंगी। ता०-कंजा। फा०-कनब, बंग। अ०-हशीश, बर्षालख्याल ।
में उत्पन्न होता है तथा पंजाब से पूर्व की ओर बंगाल एवं बिहार तक तथा दक्षिण की ओर परती भूमि में बहुतायत से प्राप्त होता है। उत्तरप्रदेश के अल्मोड़ा, गढ़वाल तथा नैनीताल जिलों में इसकी उपज की जाती है। ट्रावनकोर तथा काश्मीर में भी अल्पमात्रा में इसकी उपज की जाती है।
विवरण-इसका क्षुप सीधा ३ से ८ फीट एवं कभी कभी १६ फीट तक ऊंचा होता है। पत्ते नीचे की समवर्ती और विषमवर्ती दोनों प्रकार के करतलाकार तथा आधार कटे हुए होते हैं। ऊपर वाले पत्ते १ से ५ भागों में विभक्त
और नीचे वाले ५ से ११ खंड में कटे हुए तथा ३ से ८ इंच के घेरे में रेखाकार, भालाकार दिखाई पड़ते हैं। इनके खंड तीक्ष्ण दन्तुर, लम्बाग्रयुक्त, आधार की तरफ संकुचित तथा इनका ऊर्ध्वपृष्ठ गहरे हरे रंग का खुरदरा एवं अधोपृष्ठ हलके रंग का मृदुरोमश होता है। फूल हलके पीत-हरित रंग के अद्विलिंगी एवं गच्छेदार होते हैं। फल बहुत छोटे, कुछ दबे हुए बीज के समान चर्मलफल स्थायी परिपुष्प से आवृत एवं एक-एक बीजों से युक्त होते हैं।
भांग के क्षुप स्त्री जाति और पुरुष जाति इन भेदों से दो प्रकार के होते हैं। स्त्री जाति का कुछ अधिक ऊंचा तथा उसमें पत्र बहुतायत से तथा गहरे वर्ण के होते हैं। इसका क्षुप पुरुषजाति के क्षुप की अपेक्षा ५.६ सप्ताह अधिक समय में परिपुष्ट होता है।
भांग उपज किए हए या अपने आप उत्पन्न इस क्षुप के एवं पुरुष जाति के सूखे हुए पत्तों को कहते हैं। इसमें पुरुष जाति के पुष्प भी होते हैं। पुरुष जाति के पुष्प, पत्रों की उपेक्षा अधिक मादक नहीं होते जैसा कि स्त्री जाति स्त्री के पुष्प होते हैं। जून एवं जुलाई के महीने में अधिक ऊंचाई पर होने वाले क्षुपों का एवं मई और जून में मैदानी प्रान्तों वाले क्षुपों का संग्रह किया जाता है। उन्हें काटकर ओस तथा धूप में बार-बार रखकर सुखाते हैं तथा सूखने पर दबाकर रखा जाता है।
(भाव०नि. हरीतक्यादि वर्ग०पृ०१४२,१४३)
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उत्पत्ति स्थान-इसका पौधा भारतवर्ष में हिमालय के निचले प्रदेशों में करीब-करीब अपने स्वाभाविक रूप
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