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जैन आगम : वनस्पति कोश
बकुल के पर्यायवाची नाम
बकुलः सीधुगन्धश्च, मद्यगन्धो विशारदः।। मधुगन्धो गूढपुष्पः, शीर्षकेशरकस्तथा।।१४२।।
बकुल, सीधुगन्ध, मद्यगन्ध, विशारद, मधुगन्ध, गूढपुष्प, शीर्षकेशरक ये सब बकुल के पर्यायवाची नाम
(धन्व०नि०५/१४२ पृ०२६५) अन्य भाषाओं में नाम
पड़ते हैं तथा बारही मास हरेभरे रहते हैं। छाल धूसर एवं कुछ फटी हुई तथा काष्ठसार लाल रंग का होता है। पत्ते जामुन के पत्तों के समान ३.५ इंच लम्बे,१.७५ इंच चौड़े, नोकदार एवं किनारों पर लहरदार तथा पौन इंच दण्ड से युक्त होते हैं। फूल सफेद लगभग एक इंच गोल चक्राकार होते हैं और उनसे अत्यन्त सुगंधि आती है, जो इनके सूखने पर भी चिरकाल तक बनी रहती है। फल किंचित् लम्बाई लिये गोल पौन इंच से १ इंच लम्बे, ऊपर से साफ, कच्ची अवस्था में हरे रंग के और पकने पर पीले एवं कषाय मधुर हो जाते हैं, जिनमें एक बडा बीज रहता है। ग्रीष्म से शरद तक वह फूलता है तथा बाद में फलता है। (भाव०नि०पुष्पवर्ग०पृ०४६४,४६५)
ओवली। गु०-बोलसरी। क०-बकुल। ते०-पोगड। ताo-मगिलम | ले०-Mimusopselengi linn (मिम्युसोप्स एलेन्गी) Fam, Sapotaceae (सेपोटेसी)।
उत्पत्ति स्थान-शोभा तथा सुगंध के लिए यह सभी जगह बागों में लगाया हुआ पाया जाता है। दक्षिण तथा अंडमान में अधिक होता है।
बंधुजीवक बंधुजीवक (बन्धुजीवक) दुपहरिया
- भ०२२/५ प०१/३८/१
बकुल(मोलसरी) MIMUSOPS ELENGI, LINN.
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विवरण-इसके वृक्ष ५० फीट तक ऊंचे सघन, चिकने पत्तों से युक्त, झोपड़ाकार और सुहावने दिखाई
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