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जैन आगम : वनस्पति कोश
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suaveolens D.C. (स्टेरिओ स्पर्मम् स्वावियोलेन्स डीसी)।
उत्पत्ति-यह प्रायः समस्त भारत, हिमालय की तराई से ट्रावनकोर और टेनसरीम तक तथा सिलोन के आर्द्र भागों में विशेष पाए जाते हैं।
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युक्त होते हैं। फलियां १८ से २४ इंच तक लम्बी, गोल एवं पृष्ठ पर बिन्दुकित होती हैं। बीज सपक्ष होते हैं और कार्कसदृश और लंबगोल रचनाओं में छिपे रहते हैं।
(भा०नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ०२७६,२८०) नामों के अर्थ-पाटला (पाटल अर्थात् रक्त वर्ण के पुष्प होने से) अंबुवासिनी (अनूप देशज होने से), पुष्प को जल में डालने से जल सुवासित होता है इसलिए भी इसे संस्कृत में अम्बुवासिनी कहा जाता है। कुबेराक्षी (करंज जैसे बीज होने से), हिन्दी में अधकपारी (इसके फल के भीतर के लम्बगोल टुकड़े निकाल कर जुलपित्ती तथा अधकपारी या अर्धावभेदक, आधाशीशी में बांधे जाते हैं। धन्वन्तरि वनौषधि विषेषांक भाग ४ पृ० २२१, २२२)
पाढा
पाढी भ०२३/६ प०१/४८/४
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सारव
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विवरण-इसका वृक्ष ३० से ६० फुट तक ऊंचा एवं सुन्दर होता है । इसके ऊंचे स्तम्भ पर शाखाएं दिखाई पड़ती हैं। इसके नवीन भाग चिपचिपे रोमश और ग्रन्थिमय होते हैं। छाल चौथाई इञ्च मोटी, लगभग चिकनी, धूसर और काटने पर हलके पीले रंग की होती है। और उसमें कड़े तथा मुलायम पर्त बारी-बारी से निकलते हैं। पत्ते विपरीत १ से २ फीट लम्बे और अयुग्मपक्षाकार होते हैं। पत्रक संख्या में ५ से ६ प्रायः ७, अण्डाकार या आयताकार, ३ से ८ इंच लम्बे, २ से ३ इंच चौड़े, लम्बाग्र, अवृन्त या छोटे वृन्त वाले, प्रायः मृदुरोमश परन्तु छोटे पौधे के पत्रक खुरखुरे और तीक्ष्ण दन्तुर होते हैं। वसन्त ऋतु में इसके पुराने पत्ते गिरकर नवीन पत्ते निकल आते हैं और प्रायः उसी समय वक्ष पर नलिकाकार फल आते हैं। पुष्प संगधित १ से १.५ इंच लम्बे, बाहर से लाल परन्त भीतर से पीली रेखाओं से
पाठा के पर्यायवाची नाम
पाठाऽम्बष्ठाऽम्बष्ठकी च प्राचीना पापचेलिका। वरतिक्ता बृहत्तिक्ता, पाठिका स्थापनी वृकी।।६६ ।। मालती च वरा देवी, त्रिवृत्ताऽन्या शुभा मता।।
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