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________________ 182 जैन आगम : वनस्पति कोश __ पाठा, अम्बष्ठा, अम्बष्ठकी, प्राचीना, पापचेलिका, पाणी वरतिक्ता, बृहत्तिक्ता, पाठिका, स्थापनी, वृकी, मालती, पाणी ( ) पानि बेल प०१/४०/४ वरा, देवी और त्रिवृत्ता ये सभी पाठा के पर्यायवाची हैं। विमर्श-पाणि शब्द हिन्दी और बंगला भाषा का है। (धन्व०नि०१/६६ पृ०३६) प्रस्तुत प्रकरण में यह पाणि शब्द वल्लीवर्ग के अन्तर्गत अन्य भाषाओं में नामहि०-पाठा, पाठ, पाढ, पाठी, पाढी, पुरइनपाढी। है। इसलिए यहां पानि बेल अर्थ उपयुक्त है। संस्कृत में इसे अमृतम्रवा और तोयवल्ली कहते है। बं०-आकनादि, निमुक, एकलेजा। म०-पहाड बेल । अन्य भाषाओं में नामगु०-वेणीबेल, करेढियुं । क०-पडवलि । ता०-अप्पाट्टा हि०-पानिबेल ब०-पानि बेल. मसल, गोविल। पोंमुतूतै। गोवा०-पारवेल। ते०-पाटा, विरुबोड्डि मा०-पानीबेल, मुसल, मुरीया ।म०-गोलिंदा।ले०-Vitis अंo-Velvet leaf (वेल्वेट लीफ)। ले०-Cissampelos latifolia (विटिज लेटिफोलिया)। गु०-जंगलीदाख । pareira linn (सिसॅम्पेलॉस्पॅरेरा लिन०) Fam, पोरबंदर-जंगलीदाख। ते०-बदसरिया। Menispermaceae (मेनिस्पर्मेसी)। (वनौषधि चन्द्रोदय भाग ३ पृ० १४०) उत्पत्ति स्थान-इस देश के सभी उष्ण एवं उत्पत्ति स्थान-देहरादून के जंगलों में प्रायः शाल साधारण भागों में सिंध, पंजाब, शिमला, देहरादून तथा आदि ऊंचे वृक्षोंपर फैली हुई यह लता पायी जाती है। दक्षिण में कोंकण से लंका तक पाई जाती है। एशिया, विवरण-द्राक्षाकुल की इस बड़ी लता का कांड पूर्व अफ्रीका तथा अमेरिका के उष्णप्रदेशों में भी होती है। विवरण-यह लता खुली हई पथरीली जगहों में। बहुत मुलायम, छिद्रल, बाहर की ओर नालीदार होता है। पत्र साधारण ३ से ७ इंच लम्बे, ४ से ८ इंच चौड़े, प्रायः छोटे वृक्षों और झाड़ियों पर फैली हुई पाई जाती है। शाखाएं पतली सीधी एवं क्चचित् लोमयुक्त होती है। गोलाई लिये हुए आधार पर ताम्बूलाकार, धार पर ५ कोण या विच्छेद वाले होते हैं। इसका कांड काट देने से प्रचुर पत्र लट्वाकार या कभी-कभी वृत्ताकार-वक्काकार मात्रा में स्वादिष्ट जल निकलता है, जिसे पीकर जंगल हृदयाकृति एकांतर १ से ४ इंच बड़े, नोकरहित एवं के कुली (मजदूर) अपनी प्यास शांत करते हैं । इस लता क्वचित् नुकीले रहते हैं। पर्णनाल प्रायः पृष्ठभाग से जुड़ा __का वर्णन राजनिघंटुकार ने अमृतस्रवा के नाम से किया हुआ तथा पृष्ठ के बराबर या अधिक लम्बा होता है। पुष्प _है। (धन्वतरि वनौषधि विशेषांक भाग ४ पृ०२३२) एकलिंग छोटे श्वेताभ किंचित पीतवर्ण के, वर्षाकाल में इसकी बेल पतली, लम्बी, संधियों वाली और आते हैं। नरमंजरी लम्बी, अनेक पुष्पों से युक्त, मृदुरोमश बैंगनी रंग की होती है। इसके पत्ते द्राक्ष के पत्तों की तरह तथा पत्रकोणों से निकली रहती है। फल रक्त या होते हैं। पत्तों के सामने की ओर से तन्तु निकलते हैं। नारंगवर्ण के कुछ गोलाकार ४ मि.मी. बड़े एवं रोमावृत रहते हैं। बीज मुड़े हुए होते हैं। इसकी सूखी हुई जड़ इन तंतुओं पर बहुत सुंदर लाल रंग के फूलों के गुच्छे के लम्बे गोल अंडाकार या दबे हुए टुकड़े कभी-कभी लगते हैं। इसके फल कुछ गोलाई लिये हुए काले रंग लम्बाई में टूटे हुए मिलते हैं। ये व्यास में १/२से ४ इंच के करौंदे की तरह होते हैं। इसके बेल, पत्ते, फूल और तक मोटे एवं ४ इंच से लेकर ४ फीट तक लम्बे होते फल सब द्राक्ष से मिलते-जुलते होते हैं। मगर वे खाने के काम में नहीं आते। (वनौषधि चन्द्रोदय भाग ३ पृ०१४०) हैं। बाहर से ये भूरे बादामी रंग के तथा लम्बाई में झुरींदार अमृतम्रवा के पर्यायवाची नामहोते हैं। इन झुर्रियों पर अनुप्रस्थ चक्राकार कुछ उभार . रहते हैं। इसका स्वाद प्रारंभ में कुछ मधुर एवं सुगंधित ज्ञेयाऽमृतस्रवा वृक्षरुहाख्या तोयवल्लिका तथा बाद में अत्यन्त कडुवा होता है। घनवल्ली सितलता, नामभिः शरसम्मिता ।।१४०/ अमृतस्रवा, वृक्षरुहा, तोयवल्लिका, घनवल्ली तथा (भाव० नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ०३६५,३६६) सितलता ये सब अमृतस्रवा के पांच नाम हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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