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जैन आगम : वनस्पति कोश
धम्मरुक्ख धम्मरुक्ख (धर्मवृक्ष) पीपल प० १/४३/१ धर्मवृक्ष के पर्यायवाची नाम
पिप्पलः केशवावास श्चलपत्रः पवित्रकः । मङ्गल्यः श्यामलोश्वत्थो, बोधिवृक्षो गजाशनः ७१ श्रीमान् क्षीरद्रुमो विप्रः, शुभदः श्यामलच्छदः। पिप्पलो गुह्यपत्रस्तु, सेव्यः सत्यः शुचिद्रुमः।।७२ ।।
चैत्यद्रुमो धर्मवृक्षः, चन्द्रकर मिताहवयः ।।
पिप्पल, केशवावास, चलपत्र, पवित्रक, मंगल्य श्यामल, बोधिवृक्ष, गजाशन, श्रीमान्, क्षीरद्रुम, विप्र, शुभद, श्यामलच्छद, गुह्यपत्र, सेव्य, सत्य, शचिद्रम, चैत्यद्रुम, धर्मवृक्ष और चंद्रकर ये सब अश्वत्थ के पर्यायवाची नाम हैं। (धन्व०नि०५/७१,७२ कर्पूरादिवर्ग० पृ० २४०)
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में धम्मरुक्ख शब्द वलयवर्ग के अन्तर्गत है। इसकी छालश्वेत धूसर वर्ण की होती है।
देखें अस्सत्थ शब्द।
धव के पर्यायवाची नाम
धवः पिशाचवृक्षश्च, शकटाख्यो धुरन्धरः ।।
धव, पिशाचवृक्ष, शकटाख्य, धुरन्धर ये धव के पर्यायवाची नाम हैं। (शा०नि० फलवर्ग० पृ० ५२०) अन्य भाषाओं में नाम
हिo-धौरा, धौं, धव, धों, धव वृक्ष । बं०-घाउयागाछ। म०-धावडा, धामोडा, धवल । गु०-धावडो । क०-दिदुंग। ते०-वेल्लमदि। अ०-Axle Wood (अॅक्सेल वुड)। ले०-Anogeissus Latifolia Whall (एनो जिस्सस् लेटिफोलिया) Fam. Combretaceae (कॅम्ब्रेटेसी)।
उत्पत्ति स्थान-धव के वृक्ष जंगल में अधिक होते हैं। यह पूर्वबंगाल तथा आसाम को छोड़कर प्रायः सब प्रान्तों में कहीं न कहीं पाया जाता है।
विवरण-इसका वृक्ष बड़ा या मध्य ऊंचाई का होता है। छाल १/४ इंच मोटी, चिकनी, श्वेताभ धूसर एवं पपडी छूटने के कारण कुछ गढेदार होती हैं। पत्ते चौड़े आयताकार अंडाकार, २ से ४ इंच लंबे, कुंठित या गोलाग्र सनाल एवं पृष्ठ पर बिन्दुकित होते हैं। फरवरी में गहरे लाल रंग के पत्र गिरते हैं तथा मार्च, अप्रैल तक वृक्ष पर्णहीन रहता है। पुष्प छोटे हरिताभ मुंडक के रूप में सितम्बर से जनवरी तक आते हैं। फल चिपटे द्विपक्ष चोंचदार एवं दिसम्बर से मार्च तक पकते हैं। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत और लचकदार होती है। गाड़ी के धूरे तथा औजारों की मुट्ठियां आदि बनाने में काम आती है। इसका पर्याय धुरंधर तथा व्यापारी नाम Axle wood इसीलिए पड़ा है। (भाव०नि० वटादि वर्ग० पृ० ५४०)
धव धव (धव) धौंवृक्ष
भ० २२/३ ओ० ६, जीवा० १/७२, ३/५८३ प० १/३६/३
पत्र
NA
सारव
धायई धायई (धातकी) धाय भ० २२/२ प० १/३५/२ धातकी के पर्यायवाची नाम
धातकी ताम्रपुष्पी च, कुञ्जरा मद्यवासिनी। पार्वतीया सुभिक्षा च, वह्निपुष्पा च शब्दिता ।।८६ ।।
धातकी, ताम्रपुष्पी, कुञ्जरा, मद्यवासिनी, पार्वतीया सुभिक्षा, वह्निपुष्पा ये धातकी के पर्याय हैं।
(धन्व० नि० ३/८६ पृ० १६१)
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