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जैन आगम : वनस्पति कोश
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अन्य भाषाओं में नाम
भालाकार या लट्वाकार-भालाकार नोकदार तथा हि०-धातकी, धवई धाई, धावा, धाओला, धाय।। सरलधार होते हैं। पुष्प १/२ से ३/४ इंच, चमकीले बं०-धाइफुल । म०-धायटी, धावस। गु०-धावणी, लालरंग के नलिकाकार फूल आते हैं। यह शाखाओं के धावडी ना फूल । क०-धातकि । ते०-सेरिजि एर्रापुषु। संपूर्ण कांड से छोटे-छोटे गुच्छों में निकले रहते हैं। बीज उ०-जातिको। पं०-धा। अवधo-धेति ने०-दहिरि।। कोष छोटा और बीज चिकने भूरे रंग के होते हैं । औषधि ले०-WoodfordiaFruticosaKurz (खुडफोर्डिआ फूटिकोसा। के लिए इसके फूलों का व्यवहार किया जाता है तथा कुर्ज०) Fam. Lythraceae (लिफ्रेसी)।
इससे रेशम रंगने के लिए एक लाल रंग निकाला जाता
(भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग पृ० १०६)
नंदिरुक्ख नंदिरुक्ख (नन्दीवृक्ष) तून देखें णंदिरुक्ख शब्द
भ० २२/३
नग्गोह नग्गोह (न्यग्रोध) छोंकर, खेजडी
देखें णग्गोह शब्द।
भ० २२/३
नल नल (नल) नल, नरकट
देखें णल शब्द।
भ०२१/१८
नलिण
नलिण (नलिन) थोड़ा लाल कमल ५० १/४६ उत्पत्ति स्थान-धातकी के क्षुप प्रायः सब प्रान्तों
देखें णलिण शब्द। में कहीं न कहीं देखने में आते हैं। ये पहाड़ों में ५००० हजार फीट की ऊंचाई तक एवं देहरादून के जंगलों में
नागमाल बहुतायत से पाये जाते हैं तथा वाटिकाओं में भी रोपण नागमाल (नागमाल) शालिधान्य का भेद किये जाते हैं।
जं० २/८ विवरण-इसका क्षुप बड़ा तथा १० से १२ फीट नागमालः- शालिधान्यभेदे। तक ऊंचा होता है। शाखाएं लंबी फैली हुई और सघन रहती है। नवीन शाखाओं तथा पत्तियों पर काले-काले
नागरुक्ख त हैं। पत्ते समवर्ती या कुछ विषमवर्ती और कहीं-कहीं तीन-तीन पत्ते एक साथ गच्छों में दिखाई नागरुक्ख (नागवृक्ष) सेहुण्डवृक्ष भ० २२/२ पड़ते हैं। वे २ से ४ इंच लंबे, ३/४ से १.२५ इंच चौड़े,
देखें णागरुक्ख शब्द।
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