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जैन आगम वनस्पति कोश
देवदारु, दारुभद्र, दारु, इन्द्रदारु, मस्तदारु, टुकिलिम, किलिम और सुरभूरुह ये सब देवदारु के संस्कृत नाम हैं।
अन्य भाषाओं के नाम
हि०म० गु० - देवदार | बं०- देवदारु । पहा०केलोन । ने० – देवदारिचेट्टु । पं०- केलु। ता०देवदारुचेडि । फा०- देवदार। अं० - Himalayan Cedar (हिमालय सिडार) Pinus Deodar (पाइनस देवदार) ले०-Cedrus deodara (Roxb) (सेड्स देवदार ) Fam. Pinaceae (पिनॅसी)।
फल
फल परत
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देवदाली
देवदाली (देवदाली) घघरबेल, देवदाली
भ० २२/३ प० १/३६/२
विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में देवदाली शब्द बहुबीजक वर्ग के अन्तर्गत आया है। घघर बेल के फल में अनेक बीज होते हैं।
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देवदाली के पर्यायवाची नाम
देवदाली तु वेणी स्यात्, कर्कटी च गरागरी । देवताडो वृत्तकोशस्तथा जीमूत इत्यापि । । २६१ ।। देवदाली, वेणी, कर्कटी, गरागरी, देवताड, वृत्तकोश और जीमूत ये नाम देवदाली के हैं । (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ० ४६८ )
अन्य भाषाओं में नाम
हि०- देवदाली, सोनैया, बंदाल, घघर बेल, घुसरान । बं० - बिंदाल, घोषलता देवताड़ देयाताड । म० - देवडांगरी, कुकरबेल । गु० - कुकड़बेल । ने०पनिबिर | क० -देवडंगर । अंo - Bristty Luffa (ब्रिस्टिलि लुफा) । ले० - Luffa Cucurbitaceae (कुकुर बिटेसी) ।
उत्पत्ति स्थान- यह सिंध, गुजरात, बिहार, देहरादून, उत्तरी अवध, बुंदेलखंड, उत्तरप्रदेश और बंगाल आदि स्थानों में अधिक उत्पन्न होती है।
विवरण- इसकी लता खेकसा (कर्कोटकी) के समान होती है। कर्कोटकी का विस्तार अधिक सघन होता है परन्तु देवदाली का विस्तार बहुत कम होता है। इसके कांड पतले एवं पांच कोन वाले होते हैं। तन्तु द्विशाख शाखाओं वाले होते हैं । पत्ते १ से २.५ इंच के घेरे में गोलाकार, वृक्काकार, लट्वाकार, पञ्चकोणाकार अथवा पांच भाग वाले एवं गहरे कटे किनारे वाले तथा प्रत्येक भाग दन्तुर दीर्घवृत्ताभ होते हैं। पत्रदंड १ से २ इंच लंबा होता है । पुष्प श्वेत तथा व्यास में ५ से १ इंच होते हैं। पुपुष्प २ से ६ इंच लंबी मंजरियों में और उन्हीं पत्र कोणों में एकाकी स्त्रीपुष्प निकले रहते हैं। फल १ से १.५ इंच लंबे, लगभग आधा इंच मोटे, १/६ से १/४ इंच लंबे, सघन, कडे रोम (वाह्यवृद्धि) अथवा कोमल कांटों से आच्छादित रहते हैं। फल कच्चे होते हैं। कांटे हरे रंग के और सूखने पर भूरे रंग के हो जाते हैं। फलों के मुंह पर सूक्ष्म ढक्कन होता है। जब फल जाड़े में पककर सूख नाता है तब यह ढक्कन अपने आप फल से अलग होकर गिर जाता है और फल के अंदर के रेशे वाले तीन छिद्रों में से बीज निकलना आरंभ हो जाता है। इस लता का स्वाद बहुत कडवा होता है।
(भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ० ४६६ )
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