________________
164
जैन आगम : वनस्पति कोश
बं०-नील झांटी।ले०-BarleriaStrigosa willd (वर्लेरिया स्ट्रिगोसा)।
शारव
दासी के पर्यायवाची नाम
काकजचा ध्वांसजङ्घा, काकपादा त लोमशा।। पारापतपदी दासी, नदीकान्ता प्रचीबला ।।२०।।
काकजंघा, ध्वांसजङ्घा, काकपादा, लोमशा, पारापतपदी, दासी, नदीकान्ता, प्रचीबला ये काकजंघा के पर्याय हैं।
(धन्व०नि०४/२० पृ० १८६) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-काकजंघा, मसी, चकगोनी। बं०-केडया टुंटी, काडपाठेंगा, कांटागुड़काड़ली गु०-अघाड़ी, बोड़ी। म०-कांग। ले०-Leea Acquata (लीआ एक्वेटा)।
उत्पत्ति स्थान-यह बूटी मध्य व पूर्व बंगाल, हिमालय के तटवर्ती प्रदेश, सिक्कम, सिलहट, आसाम, उड़ीसा तथा बिहार आदि प्रदेशों के जंगलों एवं विशेषतः आर्द्र या जलसमीपवर्ती भूमि में पाई जाती है।
विवरण-यह द्राक्षादि कुल (Vitaceae) की है। इसे बंगाल की ओर काकजंघा कहते हैं। इसके लंबे-लंबे रुप ४ से १० फीट ऊंचे होते हैं। इस सदाहरित पत्रयुक्त क्षुप का नूतन कोमल भाग कुछ रोमश एवं खुरदुरा होता है। इसकी शाखाएं ग्रंथियुक्त ऐंठी हुई, कर्कश एवं काक की जंघा के समान होने से इसका भी वही नामकरण हो गया है। पत्ते कंगूरेदार किनारीयुक्त, अग्रभाग में नुकीले ४ से १२ इंच लंबे तथा २ से ४ इंच चौड़े, ऊपरी भाग खुरदरा एवं निम्नभाग मृदुरोमश युक्त होते हैं। पुष्प श्वेत कुछ बड़े आकार के. छोटी-छोटी रोम युक्त मंजरियों में लगते हैं। पुष्पवृन्त बहुत छोटा होता है। फल कुछ दबा हुआ सा, गोल मटर जैसा, ३ से ४ इंच व्यास का, २ से ६ खंड वाला, कच्ची दशा में लाल तथा पकने पर काला पड़ जाता है।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० २०१, २०२)
उत्पत्ति स्थान-कटसरैया के क्षुप उष्ण पर्वतीय प्रदेशों में अधिक होते हैं। पंजाब, बंबई, मद्रास, आसाम लंका, सिलहट आदि प्रान्तों में विशेष पाए जाते हैं। यह बाग-बगीचों में शोभा के लिए बहुत लगाया जाता है।
विवरण-इसके क्षुप प्रायः २००० फीट की ऊंचाई पर अत्यधिक पाए जाते हैं। इसका क्षुप पीत और श्वेत कटसरैया के क्षुपों की अपेक्षा कुछ ऊंचा दिखाई देता है। शाखाएं बहुत सीधी, खुरदरी तथा गोल ग्रन्थियों से युक्त होती है। इसके नीले पुष्प बड़े सुहावने होते हैं । यह शीतकाल में ही विशेष फलता है।
(धन्वन्तरि वनौ०विशे०भाग 2 पृ० ४८)
देवदारु
दासि दासि (दासी) काक जंघा | भ० २२/४ प० १/३७/५ दासी-स्त्री० काकजंघावृक्ष, नीलाम्लान वृक्ष, पीताम्लानवृक्ष।
(शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ०८४) विमर्श-प्रज्ञापना (१/३७/५) में दासि शब्द गुच्छवर्ग के अन्तर्गत है। काकजंघा के पुष्प मंजरियों में आते हैं इसलिए यहां काकजंघा का अर्थ ग्रहण कर रहे हैं।
देवदारु (देवदारु) देवदार प०१/४०/२
देवदारु के पर्यायवाची नामदेवदारु स्मृतं दारुभद्रं दार्विन्द्रदारु च। मस्तदारु द्रुकिलिमं किलिमं सुरभूरुहः ।।
(भाव० नि० कार्पूरादिवर्ग पृ० १६७)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org