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जैन आगम : वनस्पति कोश
उत्पत्ति स्थान-इसको वाटिकाओं में लगाते हैं। पश्चिम हिमालय, खासिया पहाड, आबू, पश्चिम घाट, कोंकण, लंका आदि जगहों में यह आप ही आप जंगली उत्पन्न होता है।
३ इंच लंबे, अखंड, रेखाकार दीर्घवृत्ताकार होते हैं। दो पत्र, चार कांटे तथा एक पुष्प यह चक्राकार क्रम में एक साथ रहते हैं। पत्रकोण में फीकेगुलाबी रंग के फूल आते हैं। फल पांच खंडों वाला तथा शीर्ष पर एक कांटा रहता है। वास के रंग के इसके टुकड़े बाजार में बिकते हैं। इसका स्वाद लुआवदार तथा जल में डालने पर ये चिपचिपे हो जाते हैं।
(भाव० नि० गुडूच्यादि वर्ग० पृ० ४१२) गुडूच्यादि वर्ग एवं गोक्षुरकुल के इस फीके हरितवर्ण के बहुशाखायुक्त १ से ३ फीट के क्षुप होते हैं।
यह जवासा की ही एक जाति विशेष, किन्तु उससे भिन्न कुल एवं भिन्न स्वरूप की है। इसे मरुस्थल का जवासा कहा जाता है । गुणधर्म में दोनों बहुत एक समान होने से, को कोई इसे ही जवासा मान लेते हैं। किन्तु वास्तविक जवासा इससे भिन्न है।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ० ५१०)
दब्भ
दब्भ (दर्भ) डाभ।
देखें डब्भ शब्द
भ० २१/१६
विवरण-इसके क्षुप ४ से ८ फीट ऊंचे एवं गंधयुक्त होते हैं। पत्ते नीचे के २ से ४ इंच लंबे, १ से २ इंच चौड़े, सनाल, लट्वाकार, एक या दो बार पक्षाकार क्रम से विच्छिन्न, दोनों पृष्ठों पर रोमश एवं नीचे के पृष्ठ पर राख या श्वेतवर्ण के होते हैं। ऊपर के पत्ते प्रायः विनाल, रेखाकार भालाकार, सरलधारवाले तथा तीन विच्छेदों से युक्त होते हैं।
(भाव०नि० पुष्पवर्ग० पृ० ५११)
दमणग दमणग (दमनक) दौना, दवना।
जं० ५/५८ प० १/४४/३ दमनक के पर्यायवाची नाम
उक्तो दमनको दान्तो, मुनिपुत्रस्तपोधनः । गन्धोत्कटो ब्रह्मजटो, विनीतः कलपत्रकः ।।६७।।
दमनक, दान्त, मुनिपुत्र, तपोधन, गन्धोत्कट, ब्रह्मजट, विनीत और कलपत्रक ये सब दौना के पर्याय
(भाव० नि० पृ० ५१०, ५११) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-दौना, दवना। बं०-दोना। म०-दवणा। गु०-डमरो। अ०-अफसंतीन |ले०-ArtemisiaVulgaris Linn. (अर्टिमिसिया बल्गॅरिस)| Fam. Compositae (कम्पोजिटी)।
दमणय दमणय (दमनक) दौना, दवना। ज० ३/१२, ८८
देखें दमणग शब्द।
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हैं।
दमणा दमणा (दमनक) दौना, दवना।
भ० २१/२१ रा० ३० जीवा० ३/२८३ देखें दमणग शब्द।
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