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जैन आगम : वनस्पति कोश
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का भी सेम के नाम से व्यवहार होता है। धन्वन्तरिवनौषधि दुर्लभा दुष्प्रधर्षा च, स्याच्चतुर्दशसंज्ञका।।५४ ।। विशेषांक भाग ६ में शिम्बिकल की ३ जातियों का वर्णन
(राज० नि०४/५३, ५४ पृ० ७२) है-सेम, सेमचमरिया और सुअरासेम। दधिपुष्पी के धन्वयास, दुरालम्भा, ताम्रमूली, कच्छुरा, दुरालभा, ऊपर लिखित पर्यायवाची नामों का इनमें विभाजन हो दुस्पर्शा, धन्वी, धन्वयवासक, प्रबोधिनी, सूक्ष्मदला, गया है। समेचमरिया का संस्कृत नाम दधिपुष्पी और विरूपा, दुरभिग्रहा, दुर्लभा तथा दुष्प्रधर्षा ये सब धमासा सुअरासेम का संस्कृत नाम-कोलशिम्बि, कृष्णफला, के चौदह नाम हैं। सूकरपादिका दिया है। प्रस्तुत प्रकरण में दधिपुष्पी शब्द अन्य भाषाओं में नामहै। इसलिए कोष द्वारा सुअरासेम अर्थ ग्रहण न कर हि०-धमासा, हिंगुआ, धमहर, बं०-दुरालभा। सेमचमरिया अर्थ ग्रहण कर रहे हैं।
मा०-धमासो । गु०-धमासो | म०-धमासा | पं०-धमाह, अन्य भाषाओं में नाम
धमाहा। फा०-बादाबर्द। अ०-शुकाई। ले०-Fagonia सं०-दधिपुष्पी। हि०-करिय, सेमचमरिया।। arabica Linn (फॅगोनिया अरेबिका लिन०) Fam. बं०-कटराशिम। गु०-अडदवेल्य, कागडोलिया। Zggophyllaceae (झाइगोफाइलेसी)। कर्णाo-कुगरी। ले०-Mucuna monosperma D.C. मुक्युना मोनोस्परम)।
उत्पत्ति स्थान-हिमालय, खासिया पर्वत, आसाम, चिट्टागोंग और पश्चिमी घाट की पर्वतश्रेणियों में होती है।
विवरण-यह शाकवर्ग और शिम्बिकुल की एक जाति है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ० ३८०, ३८१)
दधिवासुय दधिवासुय (दधिवास्तुका) धमास. जवास
जीवा० ३/२६६ दधिवास्तुका स्त्री। गोदन्त हरिताले । दुरालभा भेदे ।
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ५३०) विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण वनस्पति का है इसलिए
पुष्पको दधिवास्तुका के दो अर्थों में दुरालभा अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। दुरालभा धमासा अर्थ में प्रयुक्त होता है। धमासा और जवासा यद्यपि दो हैं पर कैयदेवनिघंटकार दुरालभा के पर्यायवाची नामों में जवासा को लेकर दोनों को एक मानते हैं। भावप्रकाशनिघंटुकार धमासा और
फलकार जवासा को भिन्न मानते हैं। धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक उत्पत्ति स्थान-यह पंजाब, पश्चिम राजपुताना, में धमासा को जवासा की ही एक जाति मानी जाती है। राजस्थान) दक्षिण, प० खानदेश, कच्छ, सिंध, बलूचिस्तान, इसका स्पष्टीकरण नीचे धमासा के विवरण में देखें। बजीरिस्तान तथा पश्चिम में अफगानिस्तान तक पाया दुरालभा के पर्यायवाची नाम
जाता है। धन्वयासो दुरालम्भा, ताम्रमूली च कच्छुरा। विवरण-इसका क्षुप फीके हरे रंग का अनेक दुरालभा च दुःस्पर्शा, धन्वी धन्वयवासकः ।।५३।। शाखाओं वाला, छोटा, फैला हुआ, १ से ३ फीट ऊंचा प्रबोधनी सूक्ष्मदला, विरूपा दुरभिग्रहा। तथा तीक्ष्ण कांटेदार होता है। पत्र विपरीत, पत्रक १ से
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