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जैन आगम : वनस्पति कोश
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ये १५ नाम तिन्दु के हैं। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०४६७) कहते हैं।
(भाव०नि०आम्रादिफलवर्ग०पृ०५६७) अन्य भाषाओं में नाम
___तेंदु के वृक्ष अत्यन्त ऊंचे-ऊंचे होते हैं। पत्ते हिo-तेंदू, गाब, गाभ । बं०-गाब । म०-टेंबुरणी। गोल-गोल नोकदार सीसम के से होते हैं। छाल गु०-टींबरू । तेल-तुमिवि । ता०-तुम्बिक । अंo-Gaub काली-काली होती है, उसमें खार होता है। इसकी लकड़ी Persimon (गॉब पर्सिमॉन)।ले०-Diospyrosembryopteris स्थान आदि को बनाने के काम में आती है। इसके भीतर Pers (डायोस्पाईरॉस एम् ब्रीओप्टेरिस्)।
का सार काला और वजनदार होता है। हिन्दुस्तानी लोग इसको आवनूस कहते हैं। तेंदु के फल गोल और शोभायमान, नींबू के समान हरे-हरे होते हैं। पकने पर पीले पड़ जाते हैं।
(शा०नि० फलवर्ग०पृ०४५१)
तिंदुय
तिंदुय (तिन्दुक) तेंदू
प०१/४८/४८ तिन्दुक के पर्यायवाची नाम
तिन्दुकः स्फूर्जकः कालस्कन्धश्चासितकारकः ।
तिन्दुक, स्फूर्जक, कालस्कन्ध तथा असितकारक ये सब तेंदु के संस्कृत नाम हैं
(भाव०नि० आम्रादिफलवर्ग०पृ०५६७) देखें तिंदु शब्द।
तिगडुय
तिगडुय (त्रिकटु) सूंठ, पीपल और कालीमिरच। उत्पत्ति स्थान-यह प्रायः सब प्रान्तों में पाया जाता
उत्त० ३४/११ है। विशेष कर बंगाल में अधिक होता है। त्रिकटु ।क्ली०। शुण्ठीपिप्पलीमरिचेषु । विवरण-इसका वृक्ष मध्यमाकार का,शाखा-प्रशाखा
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०५१६) करके सघन और बारही मास हराभरा रहता है। छाल त्रिकटु के पर्यायवाची नामभूरे रंग की होती है। पत्ते २ इंच चौड़े, ५ से ६ इंच लम्बे, त्र्यूषणं, व्योषं, कटुत्रिकं कटुत्रयं । किंचित् अंडाकार, आयताकार, चिकने, चर्मसद्दश और
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ५१६) चमकीले होते हैं। फूल सफेद पत्रदण्ड के पास झुमकों विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में यह तिगडुय शब्द रस में आते हैं। फल २ से ३ इंच घेरे में गोलाकार और पकने की तुलना के लिए प्रयुक्त हुआ है। कृष्ण लेश्या का रस पर कुछ पीले रंग के हो जाते हैं। ये रक्तकिट्टावरण से इन तीनों के रस से अनंतगुणा होता है। ढके रहते हैं। इसके भीतर लसीली गूदी होती है। मल्लाह लोग सन के साथ इसकी गूदी को मिलाकार नाव के
तिमिर छेदों को बंद करते हैं। बीज ४ से ८ रहते हैं। इसको
तिमिर (तिमिर) मेहंदी भ०२१/१८ प०१/४१/१ बंदर बहुत खाते हैं। इसी आधार पर इसे मर्कटतिन्दुक
तिमिर |पुं०,क्ली० /जलजवृक्षभेदे । नखरंजन वृक्षे ।
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