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विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में तिमिर शब्द पर्वकवर्ग के अन्तर्गत है। नखरंजनवृक्ष (मेंहदी) के पर्व होते हैं। इसलिए तिमिर का अर्थ मेंहदी ग्रहण कर रहे हैं। तिमिर के पर्यायवाची नाम
तिमिर: कोकदंता च, द्विवृन्तो नखरंजकः ।। तिमिर, कोकदंता, द्विवृन्त, नखरंजक (मेदिका, राग गर्भा, रंजका, नखरंजिनी, सुगंधपुष्पा, रागांगी, यवनेष्टा) ये नखरंजक के पर्यायवाची नाम हैं।
(शा०नि० परिशिष्टभाग पृ०६१४ )
अन्य भाषाओं में नाम
I
हि० - मेंहदी, हीना । बं० - मेदी शुदी । म० - मेंदी | पं० - हिना मेंहदी पनवार । गु० - मेदी । तैलिंग - गोरंटम | फा०-हिना । अ० - हिन्ना अकान, काफलयुन । अं०Henna (हेना) । ले० - Lawsonia alba (लासोनिया आल्वा) । LAWSONIA INERMIS LINN.
फल
फल
पुष्प
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पुष्प
फलकाट
उत्पत्ति स्थान - समस्त भारतवर्ष में विशेष कर बाड़ के रूप में लगाई जाती है।
विवरण - यह मेहंदीकादि कुल की एक प्रसिद्ध झाड़ी होती है। मेहंदी का झाड़ ४ से ८ फीट और कहीं पर १६ फीट तक ऊंचा देखा जाता है। इसकी शाखाएं पतली, गोल, सीधी, लम्बी लकड़ी जैसी निकलती है।
जैन आगम वनस्पति कोश किसी-किसी वक्त इसकी कोमल और छोटी शाखाओं की नोक कांटे के समान तेज होती है। पान छोटे सनाय के पत्ते के समान अंडाकृति के होते हैं, जो आमने सामने आते हैं। पान चिकना, चमकता हरारंग का, १/२ से १.५ इंच चौड़ा होता है। पत्रदंड बहुत छोटा होता है। पान आगे से कुछ तीखे और पत्रदंड की ओर चौड़े होते हैं । पान दलदार, लाल किनारी वाला और कोमल, पान दोनों ओर लाल होते हैं । पत्तों को छाया में सुखाकर उनको पीस लिया जाता है। यही चूर्ण बाजार में मेहंदी के नाम से बिकता है। इसको जल में भिंगोकर हाथ पैरों में लगाने से वे लाल हो जाते हैं। फूल शाखाओं के किनारे पुष्प धारण करने वाली सलियां आती है। इन पर फूल सफेद खुशबूदार छोटे और आम की बोर की तरह झुमकों में आए हुए देखे जाते हैं। फूल फीका, पीला, धौला, ललाई लिये हुए रंग का सुवासित होता है। पुष्पदंड बहुत छोटा और फूल १/४ इंच व्यास का होता है। बीज गहरे भूरे रंग के १/२ से ३/४ लाइन लम्बे और १/४ लाइन चौड़े होते हैं। मेहंदी के झाड़ की डाली काटकर लगाने से यह जल्दी बड़ी हो जाती है। फूलने का समय - वर्षाकाल है । इसके पत्तों को पीसकर हाथ पांव लगाने से लाल हो जाते हैं तथा गरमी और हाथ पांव आदि की दाह दूर होती है।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ५ पृ०४५५)
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तिमिर
तिमिर (तिमिर ) जल मधूक, जल महुआ ।
भ०२१/१८ पं० १/४१/१
तिमिर |पु०क्ली० । जलजवृक्षभेदे, नखरंजन वृक्षे (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ४६८ ) जलजः ।पु० । हिज्जलवृक्षे, शैवाले, जलवेतसे कुचेलके, काकतिन्दुके, जलमधूके ।
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ४५५) नोट- तिमिर शब्द वनस्पतिवाचक दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है - जलजवृक्ष और नखरंजन वृक्ष | जलज शब्द के ६ अर्थ हैं। उनमें जलमधूक अर्थ ग्रहण किया
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