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निंबारग
निंबारग (निम्बरक निम्बकर) महानीम, बकायन
भ० २२/२
निम्बरकः । पुं । महानिम्बे (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ६०६) निम्बकर के पर्यायवाची नाम
महानिम्बो निम्बकरः, कामुको विषमुष्टिकः । रम्यको गिरिकोद्रेकः क्षारः स्यात् केशमुष्टिकः । ।४१।। महानिम्ब, निम्बकर, कामुक, विषमुष्टिक, रम्यक, गिरिक, अद्रेक, क्षार, केशमुष्टिक ये नाम बकायन के हैं। (मदन०नि० अभयादि वर्ग० १ / १४१ पृ० २६) अन्य भाषाओं में नाम
हि० - महानिम्ब, घोड़ाकरंज । बं०- महानिम | म० - महारूक्ष | गु० - मोटो असो, अरलबो । पं० - अरूअ । ता० - पेरूमरूत्तु । ते० - पेद्दमानु । क० - दोडुमणि । मल०पेरूमरम् । उरि० - महानिम, महाल। ले०- Ailanthus excelsa Roxb (एइलेन्थस, एक्सेल्सा राक्स) Fam. Simarubaceae (सिमारूबेसी) ।
विमर्श - महानीम के दो भेद होते हैं। एक भेद में फल में ५ बीज होते हैं, दूसरे भेद में एक फल में एक ही बड़ा-सा बीज होता है। (धन्व०वनौ० विशेषांक भाग ४ पृ० १६०) प्रस्तुतप्रकरण में निंबारगशब्द एगट्ठियवर्ग के अन्तर्गत है इसलिए दूसरा भेद ग्रहण किया जा रहा है। उत्पत्ति स्थान - यह भारत के कई प्रान्त - उत्तर
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जैन आगम वनस्पति कोश
प्रदेश, बिहार, पश्चिमी पेनिनसुला, कर्नाटक एवं गुजरात आदि में पाया जाता है।
विवरण - इसका वृक्ष ६० से ८० फीट ऊंचा होता है । छाल धूसर वर्ण की होती है। पत्ते २ से ३ फीट लंबे पक्षवत् संयुक्त पत्र होते हैं। पत्रक ३.५ से ६ इंच लंबे, २ से ३ इंच चौडे, अधरतल पर रोमश, नोकदार, दन्तुर, धारवाले, तिरछे आधार वाले, संख्या १० से १३ जोड़े, १ से २ इंच लंबे वृन्त से युक्त एवं आधार के पास दो रोमश ग्रंथियों से युक्त होते हैं। पत्तों में उग्रगंध आती है। पुष्प पीताभ बड़ी-बड़ी मंजरियों में आते हैं। फल छीमी की तरह बीच से फूला हुआ एवं अन्त में अकुड़ेदार होता है जिसमें एक बीज रहता है तथा उसमें अप्रिय गंध आती है । (भाव० नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ० ३३३) णिग्गुंडी
णिग्गुंडी (निर्गुण्डी) नील सम्हालू
निर्गुण्डी के पर्यायवाची नाम
प० १/३७/३
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पत्र
सिन्दुवारः श्वेतपुष्प, सिन्दुकः सिन्दुवारकः ।
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