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________________ 96 जैन आगम : वनस्पति कोश फलकोष एक इंच से सवा इंच लंबे होते हैं। ये कोष तीन खिरनी के संस्कृत नामप्रखण्डों में विभक्त होते हैं। मूलकंद आग में भुनने के बाद राजादनो राजफलः, क्षीरवृक्षो नृपद्रुमः ।। खाने में यह परतदार कंद मीठा होता है। ताजी अवस्था निम्नबीजो मधुफलः, कपीष्टो माधवोद्भवः ।।७० ।। में यह कंद श्वेतवर्ण के होते हैं। औषधि संग्रह करने से क्षीरी गुच्छफलः प्रोक्तः, शुकेष्टो राजवल्लभः । पूर्व इन ताजे मूलकंदों को उबलते हुए पानी में उबाल श्रीफलोऽथ दृढस्कंधः, क्षीरशुक्लस्त्रिपञ्चधा |७१।। लेते हैं, ऐसा करने पर इनका जलीयांश नष्ट हो जाता राजादन, राजफल, क्षीरवृक्ष, नृपद्रुम, निम्बबीज, है और ये मूलकंद सडने से बच जाते हैं। पुष्पकाल अगस्त मधुफल, कपीष्ट, माधवोद्भव, क्षीरी, गुच्छफल, शुकेष्ट, सितम्बर। फलकाल सितम्बर से नवम्बर। राजवल्लभ, श्रीफल, दृढ़स्कंध तथा क्षीरशुक्ल ये सब (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ० ५०७, ५०८) खिन्नी (खिरनी) के पन्द्रह नाम हैं। (राज०नि० ११/७०,७१ पृ० ३५३) अन्य भाषाओं में नामखीरणी __ हि०-खिरनी, खिन्नी। म०-खिरणी, राजन, रायण। बं०-क्षीरखेजुर खीरखेजूर, क्षीरणी, राजणी । खीरणी (क्षीरणी) खिरनी ___ भ० २२/२ गु०-रायण, राणकोकडी। क०-खिरणी मारा। विमर्श-खीरणी यह बंग भाषा का शब्द है। हिन्दी ता०-पल्ल, पलै। ते०-पालमानु। ले०-Mimusops भाषा में खिरनी। मराठी भाषा में खिरणी बंगभाषा में Hexandra (माइमुसोप्स हेक्जेंड्रा)। क्षीरणी, खीरखेजूर और कन्नड भाषा में खिरणीमारा कहते उत्पत्ति स्थान-यह भारत का ही एक खास वृक्ष हैं । खिरनी इतिगुर्जरे प्रसिद्धः। है। यह बंबई, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, मद्रास आदि प्रायः सब स्थानों में पाया जाता है। विवरण-फलादि वर्ग एवं नैसर्गिक क्रमानुसार मधूककुल का यह प्रसिद्ध चिरहरित सदा हरे पर्णों से युक्त, वृक्ष २० से २५ फट ऊंचा होता है। कांड की छाल तीन स्तरों वाली (प्रथम स्तर धसर वर्ण की गहरी झरीदार, बीच की स्तर हरितवर्ण की तथा अन्तिम स्तर दुग्धपूर्ण कुछ काली सी) होती है। पत्र लंबगोल दोनों ओर चिकने २ से ४ इंच लंबे तथा १ से २ इंच चौड़े, चिमड़े होते हैं। पत्रवृन्त लगभग १/२ इंच का होता है। पुष्पदंड पत्रकोण से निकाला हआ, अनेक शाखायुक्त, जिस पर छोटे-छोटे चक्राकार आधा इंच व्यास की, पीताभ श्वेतवर्ण के सुगंधित पुष्प गुच्छों में प्रायः शीतकाल में लगते हैं। फल प्रायः वसंत में नीम के फल जैसे आध इंच लंबे गुच्छों में, कच्ची दशा में हरे व पकने पर पीले होते हैं। फलों में गाढा लसदार दूध निकलता है। बीज प्रायः प्रत्येक फल में एक, किसी-किसी में क्वचित दो बीज स्निग्ध, काले, चमकदार होते हैं। बीजों के भीतर का पुष्य की पीताभ गिरी या मज्जा से तैल निकाला जाता है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ३५७, ३५८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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