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जैन आगम : वनस्पति कोश
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देखें खज्जूरी शब्द।
होती है। इसके पत्ते गिलोय के समान मोटे, गोल, नोकदार और जोड़े। फूल लाल और सफेद तथा सुगंधित
और उनके ऊपर छत्री के आकार के तुर्रे रहते हैं। इसके खल्लूड
पत्ते मोडने से दूध निकलता है। इसकी डोडी नुकीली खल
प० १/४८/४७ होती है। इसके बीज लम्बे और पतले रहते हैं। इसकी विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में खल्लूड शब्द कंद नामों जड़े खाकी रंग की और जड़ों की छाल मोटी होती है। के साथ है। भगवती सूत्र७/६६ में खल्लूड के स्थान पर
(वनस्पति चन्द्रोदय भाग ४ पृ० ४८) खेलूड शब्द है। कंद के नामों में केलूट शब्द मिलता है, जो खेलूड के अति निकट है। इसलिए यहां खल्लूड का
खीरकाओली अर्थ केलूट (कौटुम्ब कंद) ग्रहण कर रहे हैं।
खीरकाओली (क्षीरकाकोली) क्षीरकाकोली केलूट (क) म्। क्ली० पु० । कन्दशाकविशेषे ।
भ० २२/८ प० १/४८/५ जलोदम्बरे। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ३१७)
क्षीरकाकोली के पर्यायवाची नाम
साली नामकेलूट के पर्यायवाची नाम
द्वितीया क्षीरकाकोली, क्षीरशुक्ला पयस्विनी। केलूटं स्वल्पविटपं, कन्दं तत् स्वादु शीतलम्।
वयस्था क्षीरमधुरा, वीरा क्षीरविषाणिका ।/१३४।। कोविदेन तु लोकेन, कोटुम्ब इति कथ्यते ।।१६३६ ।।
क्षीरकाकोली, क्षीरशुक्ला, पयस्विनी, वयस्था, केलूट का छोटा पौधा होता है और कंद मधुर तथा
क्षीरमधुरा, वीरा, क्षीरविषाणिका ये क्षीरकाकोली के पर्याय शीतल होता है। लोक में इसे कौटुम्ब कहते हैं।
(धन्व०नि० १/१३४ पृ० ५५) .(कैयदेव नि० ओषधिवर्ग पृ० ६४६,६४७)
उत्पत्ति स्थान-महामेदा के उत्पन्न होने का जहां
स्थान है वहीं क्षीरकाकोली भी उत्पन्न होती है। क्षीर खीर
काकोली का कंद पीवरी (शतावरी) के समान होता है खीर ( ) खीर बेल, छिर बेल और काटने पर उसमें से दूध निकलता है तथा यह
प० १/४२/१ प्रियगंध से युक्त होता है। यह मूलिका हिमालय में २७०० विमर्श-गुजराती भाषा में खीर बेल और हिन्दी मीटर से ३००० की ऊंचाई तक उपलब्ध है। भिलंगना भाषा में छिर बेल कहते हैं।
घाटी में पंवाली, गंगी, राजखर्क, किनकोलियाखाल, संस्कृत भाषा में नाम
ताली आदि स्थानों में उपलब्ध होती है। केदारनाथ घाटी अर्कपुष्पी, दुर्धषी, जलकांडका, जीवंती, क्षीरोदधि, में, रामवाडा केदारनाथ एवं वासुकी ताल आदि स्थानों शीतला, शीतपर्णी, सूर्यवल्ली।
में उपलब्ध होती है। इसी भांति भागीरथी एवं टौंसवन अन्य भाषाओं में नाम
खण्ड के हरकी, दन, नेटवाड मोरी आदि स्थानों में हि०-छिरबेल। बम्बई-दूदोली सीदोरी, उपलब्ध होती है। तुलतुली। गु०-खरनेर, खीर बेल। म०-शिरदोड़ी
विवरण-यह हरीतक्यादि वर्ग और रसोन कुल का तुलतुली, खानदोड़की। मुंडारी-अपंग । संथाल-अपंग क्षुप है जो कि ऊंचाई में ८ इंच से डेढ़ फीट के लगभग भोटो राख। ते०-पलेकिरे। ता०-पलपुर। होता है। डंठल सीधा मूल से निकलता है। पत्र स्टेम ले०-Holostemma Rheedii (होलोस्टेमो रेडी)। (Stem) के साथ जुड़े रहते हैं। पत्र क्रमानुसार एवं
उत्पत्ति स्थान-यह वनस्पति हिमालय, वर्मा और भालाकार होते हैं। शाखाओं और प्रशाखाओं पर फूल कोंकण में बहुत पैदा होती है।
खिलते हैं। खिलने पर ये पुष्प कुछ पीले व श्वेतवर्ण के विवरण-यह एक बड़ी जाति की झाड़ीनुमा बेल होते हैं तथा सूंघने पर इन पुष्पों से तीव्र सुगंध आती है।
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