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जैन आगम : वनस्पति कोश
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खीरामलय
आमले सर्वोत्तम माने जाते हैं किन्तु खपत की अपेक्षा
इनकी उपज कम होने से ये दूसरी जगह से मंगाये जाते खीरामलय (क्षीरामलक) राज आमला
हैं और बनारसी के नाम से बेचे जाते हैं। ये प्रायः कच्ची उवा० १/२६
अवस्था में ही तोड़कर बेच लिए जाते हैं। परिपक्व विमर्श-डा० जीवराज घेलाभाई दोशी L.M. & S...
बनारसी आमला बहुत ही कम मिलता है। ने उवासगदशा का शब्दार्थ और भावार्थ पुस्तक में
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ० ३६१, ३६२) खीरामलक का अर्थ किया है-दूध सरीखं मधुर एवं खीर आंबलु (राय आंबलु)। (उवासगदशासूत्र, शुद्धमूल, शब्दार्थ भावार्थ सहित पत्र १८)
खीरिणी रायआंवला-आमला दो प्रकार का होता है। (१) खीरिणी (क्षीरिणी) गंभीरी कुंभेर प० १/३५/२ बागी-बाग -बगीचों में होने वाला और (२) जंगली । जो क्षीरिणी/स्त्री/काञ्चनक्षीरी (ऊंटकटीला), वराहक्रान्ता, आंवले बाग में लगाये जाते हैं. उनके दो भेद हैं-बीजू
(वराहक्रान्ता), काश्मीरी (कुम्भेर), दुग्धिका (दूधिया वृक्ष) (बीज से पैदा होने वाला) और कलमी (जो कलम द्वारा
कुटुम्बिनी (अर्क पुष्पी) । (शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ० २१६) लगाये जाते हैं।) बीजू के फल छोटे होते हैं, कलमी के
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में खीरिणी शब्द बहुत बड़े फल होते हैं। ये राजआमला, शाहआमला,
एकास्थिक वर्ग के अन्तर्गत है। ऊपर पांच अर्थ दिए गए आमलजु मूलक कहलाते हैं। काशी या बनारस का यह
हैं उनमें से काश्मीरी (कुम्भेर) अर्थ ग्रहण कर रहे हैं आमला प्रसिद्ध है। ये बनारसी कलमी आमले अमरूद
क्योंकि गंभीरी की गुठली होती है। के आकार के अत्यन्त गुदार, रेशारहित तथा अत्यन्त ही
क्षीरिणी के पर्यायवाची नामछोटी गुठली युक्त होते हैं।
स्यात् काश्मर्यः काश्मरी कृष्णवृन्ता। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ० ३६१)
हीरा भद्रा सर्वतोभद्रिका च।। विवरण-बीजू आमला के पेड़ मध्यामाकार होते
श्रीपर्णी स्यात् सिन्धुपर्णी सुभद्रा। हैं। राजपूताने में २० से ३० फीट तक और काठियावाड
कम्भारी सा कट्फला भद्रपर्णी।।३५ ।। में १५ से २० फीट तक ऊंचे इसके पेड़ लगाये जाते हैं।
कुमुदा च गोपभद्रा विदारिणी क्षीरिणी महाभद्रा। कलमी आंवले का पेड़ बीज, से भी छोटा कुछ विशेष
मधुपर्णी स्वभद्रा कृष्णा श्वेता च रोहिणी गृष्टिः ।३६ / लंबी शाखा युक्त फैलावदार होता है। पेड का तना सरल
स्थूलत्वचा मधुमती सुफला मेदिनी महाकुमुदा। या सीधा नहीं होता। लकड़ी कुछ ललाई लिये हुए सफेद
सुदृढ़त्वचा च कथिता विज्ञेयोनत्रिंशति नाम्नाम् ।।३७ ।। और मजबूत होती है। इसमें सारभाग बहुत ही कम होता
काश्मरी, कृष्णवृन्ता, हीरा, भद्रा, सर्वतोभद्रिका, है। लकड़ी के ऊपर का छिलका राख के रंग का चौथाई
श्रीपर्णी, सिन्धुपर्णी, सुभद्रा, कम्भारी, कट्फला, भद्रपर्णी, इंच मोटा होता है तथा प्रतिवर्ष उतरता रहता है। पत्ते
कुमुदा, गोपभद्रा, विदारिणी, क्षीरिणी, महाभद्रा, मधुपर्णी शमीपत्र जैसे या इमली के पत्ते जैसे किन्तु इससे बड़े
स्वभद्रा, कृष्णा, श्वेता, रोहिणी, गृष्टि, स्थूलत्वचा, लगभग आधे इंच लंबे होते हैं। बीजू आमले पौष मास
मधुमती, सुफला, मेदिनी, महाकुमुदा, सृदृढत्वचा ये सब में पकना आरंभ हो जाते हैं किन्तु ये उतने रस वीर्ययुक्त
उन्नीस नाम गंभारी के हैं। नहीं होते जितने माघ से लेकर चैत तक के परिपक्व चैती
(राज०नि० ६/३५, ३६, ३७ पृ० २७०, २७१) आमले होते हैं। कलमी आमला ५ तोले से भी अधिक देखने में आता है किन्तु यह प्रायः मुरब्बे के ही कार्य में हि०-गंभारी, खंभारी, कंभार, गंभार, गम्हार, अधिक आता है। इनमें बीजू आमले की अपेक्षा औषधि
कुम्हार, कासमर। बं0--गाभागरगाछ, गम्वार, पं0गणधर्म की कुछ न्यूनता पाई जाती है । बनारसी कलमी गंभारी खंभारी कंभार गंभार गम्हार कम्हार
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