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________________ ४१२ लेश्या - कोश - को भी योग कहा जाता है । सम्यग् प्रकार का योग को कल्प वृक्ष व चिन्तामणि रत्न से उपमित किया गया है । चित्त की असहज चंचलता का प्रतिफल हैमानसिक अशान्ति । यह मानसिक अशान्ति तभी कम हो सकती है जब चित्त चित्त को चंचलता कम हो और इसका अमोघ उपाय है – ध्यान | हिंसा, क्रूरता और आतंकवाद के दबाव से मनुष्य वर्ग उच्चरक्त चाप, दिल के दौरे, अनिद्रा, नाड़ी तंत्रीय अस्त्रव्यस्तता से बुरी तरह से प्रभावित होता जा रहा है । भय और चिन्ता से उत्पन्न अधिक अम्लता एवं पाचन और श्वसन तंत्र की गड़बड़ी से व्यक्ति बुरी तरह पीड़ित है । प्रशस्त लेश्या के द्वारा प्रेक्षाध्यान का अवलम्बन लेकर उपर्युक्त समस्याओं का समाधान पा सकते हैं । तनाव व ग्रसित हिंसा से लसे हुए नागरिकों के लिए प्रेक्षा, शांति का पैगाम बन सकता है । • ६५७ व्याख्या - उपसंहार रौद्र ध्यान -- कावtयनीलकाला, लेसाओ तीव्व संकिलिट्ठाओ । रोहाणीवगयरस, कम्मपरिणामजणियाओ ॥ रौद्र ध्यान में उपगत जीवों में तीव्र संक्लिष्ट परिणाम वाली कापोत, नील, कृष्ण लेश्याएँ होती हैं । '६५८ आर्त्तध्यान कावोयनीलकाला, लेसाओ णाइसकिलिट्ठाओ । अट्टमाणोवगस्स, कम्मपरिणामणियाओ ॥ टीका - कापोतनीलकृष्णलेश्याः । किं भूताः ? नातिसंक्लिष्टा रौद्रध्यान लेश्यापेक्षया नातीवाशुभानुभावाः, भवन्तीति क्रिया । कस्येत्यत आह-आर्तध्यानोपगतस्य जन्तोरिति गम्यते । किं निबंधना एताः ? इत्यत आह- कर्मपरिणामजनिताः तत्र 'कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात, परिणामो य आत्मनः । स्फटिकस्येव तत्रायं लेश्याशब्द प्रयुज्यते । एताश्च कर्मोदयायत्ता इति गाथार्थः । - आव० अ ४ | टीका आर्त्तध्यान में उपगत जीवों में नातिसंक्लिष्ट परिणाम वाली कापोत, नील, कृष्ण लेश्याएं होती हैं । यह रौद्रध्यान में उपगत जीवों के लेश्या परिणामों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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