SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 535
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश ३७३ चाहिए। लेकिन मनुष्यों के सम्बन्ध में सर्वत्र नारकी की तरह कहना चाहिए। जिसके जितनी लेश्या हो उतने विवेचन करने चाहिए। ६ सम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ? एवं जहा पढमो उद्दे सओ। एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्दे सगा भवसिद्धीयसरिसा कायव्वा । कण्हलेम्ससम्मदिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते । कओ उववज्जति० ? एए वि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि वि उद्दे सगा कायव्वा । एवं सम्मदिट्ठीसु वि भवसिद्धीयसरिसा अट्ठावीसं उद्दे सगा कायव्वा । मिच्छादिट्ठीरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जति० ? एवं एत्थ वि मिच्छादिहिअभिलावेणं अभवसिद्धीयसरिसा अट्ठावीसं उद्दे सगा कायव्वा । -भग० श ४१ । उ ८५ से १४० । पृ० ६३७-३८ कृष्णलेशी सम्यग्दृष्टि राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में कृष्णलेशी राशियग्म जीवों की तरह चार उद्देशक कहने चाहिए। समदृष्टि राशियुग्म जीवों के भी भवसिद्धिक राशियुग्म जीवों की तरह अट्ठाईस उद्द शक कहने चाहिए । मिथ्यादृष्टि राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में अभवसिद्धिक राशियुग्म जीवों की तरह अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए। '७ कण्हपक्खियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति० ? एवं एत्थ वि अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उसगा कायव्वा । सुक्कपक्खियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति० ? एव एत्थ वि भवसिद्धीयसरिसा अहावीसं उद्द सगा भवंति । एवं एए सव्वे वि छन्नउयं उद्दसगसयं भवंति रासीजुम्मसयं । जाव सुक्कलेस्सा सुक्कपक्खियरासीजुम्मकलिओगवेमाणिया जाव-जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहेणं सिमंतिा । जव अंतं करेंति ? नो इण? समठे। -भग० श ४१ । उ १४१ से १६६ । पृ० ६३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy