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लेश्या - कोश
कृष्णलेशी भवसिद्धिकराशियुग्म कृतयुग्म नारकियों के विषय में जैसे कृष्णलेशी राशियुग्म के चार उद्देशक कहे गये हैं, वैसे ही चार उद्देशक कहने चाहिए । इसी प्रकार नीललेशी भवसिद्धिक राशियुग्म तथा कापोतलेशी भवसिद्धिक राशियुग्म के चार-चार उद्देशक कहने चाहिए ।
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तेजोलेशी भवसिद्धि राशियुग्म जीवों के भी औधिक तेजोलेशी राशियुग्म जीवों की तरह चार उद्देशक कहने चाहिए । पद्मलेशी भवसिद्धिकराशियुग्म जीवों के भी औधिक पद्मलेशी राशियुग्म जीवों की तरह चार उद्देदेशक कहने चाहिए । शुक्ललेशी भवसिद्धिक राशियुग्म जीवों के भी औधिक शुक्ललेशी राशियुग्म जीवों की तरह चार उद्ददेशक कहने चाहिए। जिसके जितनी लेश्या हो उतने विवेचन करने चाहिए ।
*५ अभवसिद्धीयरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति० ? जहा पढमो उद्दे सगो, नवरं मणुस्सा नेरइया य सरिसा भाणियव्वा । सेसं तहेव xxx एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देगा ।
कण्हलेस्सअभवसिद्धियरासी जुम्मकडजुम्मने रइया णं भंते! कओ उववज्जंति ? एवं चैव चत्तारि उद्देसगा । एवं नीललेस्सअभवसिद्धीयरासीजुम्मकडजुम्मनेरइयाणं चत्तारि उद्देसगा । एवं काउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्द ेगा । तेऊलेस्सेहि वि चत्तार उद्दे सगा । पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उह सगा । सुक्कलेस्सअभवसिद्धिए वि चत्तारि उद सगा । एवं एएस अट्ठावीसाए वि अभवसिद्धीय उद्दे सएस मणुस्सा नेरइयमेणं नेयव्वा ।
-भग० श ४१ । उ५७ से ८४ । पृ० ३७
अभवसिद्धिक राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में जैसा प्रथम उद्देशक में कहा गया है, वैसा ही कहना चाहिए लेकिन मनुष्य और नारकी का एक-सारिखा वर्णन करना चाहिए । चारों युग्मों के चार उद्देशक कहने चाहिए ।
इसी तरह कृष्णलेशी अभवसिद्धिकराशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में चार उद्देशक कहने चाहिए । इसी तरह नीललेशी अभवसिद्धिक राशियुग्म यावत् शुक्ललेशी अभवसिद्धिकराशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में प्रत्येक के चार-चार उद्ददेशक कहने
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