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लेश्या-कोश कृष्णपाक्षिक राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में भी अभवसिद्धिक राशियुग्म जीवों की तरह अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए।
यावत् शुक्लपाक्षिक राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में भी भवसिद्धिक राशियुग्म जीवों की तरह अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए।
८९ सलेशी जीव और योग
"१ ( संसारसमावन्नगा ) तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा ते दुबिहा पन्नत्ता, तं जहा-संजया य असंजया य x x x तत्थ णं जे ते संजया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पमत्तसंजया य अप्पमत्तसंजया य xxx तत्थ णं ते पमत्तसंजया ते सुहं जोगं पडुच्च नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अणारंभा । असुभ जोगं पडुच्च आयारंभा वि जाव नो अणारंभा x x x ।
-भग० श १ । उ १ । सू ४८ संसार समापन्नक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं, संयत और असंयत । इनमें जो संयत हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत । जो प्रमत्तसंयत है, वे शुभयोग की अपेक्षा आत्मारम्भी, परारम्भी और तदुभयारम्भी नहीं हैं किन्तु अनारम्भी हैं और अशुभयोग की अपेक्षा आत्मारम्भी भी है, परारम्भी भी हैं और तदुभयारम्भी भी हैं किन्तु अनारम्भी नहीं हैं।
नोट-उपयोग पूर्वक सावधानता पूर्वक योग की प्रवृत्ति को शुभयोग कहते है। उपयोग के बिना प्रतिलेखनादि करना अशुभयोग है। कहा है
पुढवी आउक्काइए-तेऊ-वाऊ-वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणापमत्तो, छण्हं पि विराहओ होइ ।।
-भग० श १ । उ १ । सू ४८ । टीका '२ नेरइया णं भंते ! किं आयारंभा ? परारंभा ? तदुभयारंभा ? अणारंभा ? गोयमा ! आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अणारभा । से केणणं ? गोयमा ! अविरतिं पडुच्च । से तेणढणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-नेरइया अणारभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अणारंभा।
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