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लेश्या-कोश
२९९ '७५.४ सलेशी अनंतरावगाढ जीव और कर्म-बंधन
अणंतरोगाढए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए० एवं जहेव अणंतरोववन्नएहिं नवदंडगसंगहिओ उद्देसो भणिओ तहेव अणंतरोगाढएहि वि अहीणमइरित्तो भाणियव्वो नेरइयादीए जाव वेमाणिए।
-भग० श २६ । उ ४ । सू १ । पृ० ६०१ सलेशी अनंतरावगाढ जीव-दण्डक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना चाहिये, जैसे अनंतरोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव, दण्डक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म के बंधन के विषय में कहा है। टीकाकार के अनुसार अनन्तरोपपन्न तथा अनंतरावगाढ में एक समय का अन्तर होता है । ७५.५ सलेशी परंपरावगाढ जीव और कर्म-बन्धन
परंपरोगाढए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० ? जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो सो चेव निरवसेसो भाणियत्वो।
-भग० श २६ । उ ५ । सू १ पृ. ६०१-६०२ सलेशी परंपरावगाढ जीव-दण्डक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना चाहिए, जैसे परंपरोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दण्डक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म बन्धन के विषय में कहा है। '७५-६ सलेशी अनंतराहारक जीव और कर्म-बन्धन
अणंतराहारए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेव अणंतरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरबसेसं।
-भग० श २६ । उ ६ । सू १ । पृ० ६०२ सलेशी अनंतराहारक जीव-दण्डक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना चाहिए, जैसे अनंतरोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दण्डक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म बंधन के विषय में कहा है। •७५ ७ सलेशी परंपराहारक जीव और कर्म-बन्धन
परंपराहारए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं० किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियन्वो।
-भग० श २६ । उ ७ । सू १ । पृ० ६०२
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