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लेश्या-कोश सलेशी परंपराहारक जीव-दंड के सम्बन्ध में वैसे ही कहना चाहिए, जैसे परंपरोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दंडक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म बंधन के विषय में कहा है। •७५.८ सलेशी अनंतरपर्याप्त जीव और कर्म-बन्धन
अणंतरपज्जत्तए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गौयमा ! जहेव अणंतरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसं ।
-भग० श २६ । उ ८ । सू १ । पृ० १०२ सलेशी अन्तरपर्याप्त जीव-दंडक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना चाहिये, जसे अनंतरोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दंडक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टबंधन के विषय में कहा है। '७५.६ सलेशी परंपरपर्याप्त जीव और कर्म-बन्धन
परंपरपज्जत्तए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उदेसो तहेव निरवसेसो भाणियव्वो।
-भग० श २६ । उ ६ । सू १ । पृ० ६०२ सलेशी परम्परपर्याप्त जीव-दण्डक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना चाहिए, जैसे परम्परोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दण्डक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म बन्धन के विषय में कहा है। '७५.१० सलेशी चरम जीव और कर्मबन्धन___ चरिमेणं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव चरिमेहिं निरवसेसो।
-भग० श २६ । उ १० । सू १ । पृ० ६०२ सलेशी चरम जीव-दण्डक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना चाहिए, जैसे परम्परोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दण्डक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म बंधन के विषय में कहा है।
टीकाकार के अनुसार चरम मनुष्य के आयुकर्म के बंधन की अपेक्षा से केवल चतुर्थ भंग ही घट सकता है । क्योंकि जो चरम मनुष्य है उसने पूर्व में आयु बांधा है, लेकिन वर्तमान में बांधता नहीं है तथा भविष्यत् काल में भी नहीं बांधेगा।
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