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लेश्या - कोश
किं बंधी ० पुच्छा ? गोयमा ! बंधी न बंधइ बंधिस्सइ । सलेस्से णं भंते! अनंतरोववन्नए नेरइए आउयं कम्मं किं बंधी० ? एवं चेव तइओ भंगो, एवं जाव अणागारोवउत्ते । सव्वत्थ वि तइओ भंगो । एवं मणुस्सवज्जं जाव वेमाणियाणं । मणुस्साणं सव्वत्थ तइय- चउत्था भंगा, नवरं कण्हपक्खिएस तइओ भंगो, सज्वेसिं नाणत्ताई ताई चेव ।
- भग० श २६ । उ २ । सू २-४ । पृ० ६०१
सलेशी अनन्तरोपपन्न नारकी यावत् सलेशी अनंतरोपपन्न वैमानिक देव पापकर्म का बंधन कोई प्रथम भंग से तथा कोई द्वितीय भंग से करता है । जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने चाहिये । अनन्तरोपपन्न अलेशी की पृच्छा नहीं करनी चाहिये, क्योंकि अनन्तरोपपन्नक अलेशी नहीं होता है ।
आयु को छोड़कर बाकी सातों कर्मों के सम्बन्ध में पापकर्म - बंधन की तरह ही सब अनन्तरोपपन्न सलेशी दण्डकों का विवेचन करना चाहिये ।
अनन्तरोपपन्न सलेशी नारको तीसरे भंग से आयुकर्म का बंधन करता है मनुष्य को छोड़कर दण्डक में वैमानिक देव तक ऐसा ही कहना चाहिये । मनुष्य कोई तीसरे तथा कोई चौथे भंग से आयुकर्म का बंधन करता है ।
जिसमें जितनी लेश्या हो उतने पद कहने चाहिये ।
*७५३ सलेशी परंपरोपपन्न जीव और कर्म-बंधन
परंपरोववन्नए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोमा ! अत्थेगइए पढम बिइया । एवं जहेब पढमो उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएहि वि उहे सओ भाणियव्वो, नेरइयाइओ तहेव नवदंडगसंगहि | अद्वह वि कम्मप्पगडीणं जा जस्स कम्मस्स वत्तव्वया सा तस्स अहीणमइरित्ता नेयव्वा जाव वैमाणिया अणागारोवउत्ता । - भग० श २६ । उ ३ । सू १ । पृ० १०१
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परंपरोपपन्न सलेशी जीव-दण्डक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना चाहिये, जैसे बिना परंपरोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दण्डक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म के बंधन के विषय में कहा है ।
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